ईश्वर : सर्वभूतानां हृद देशे अर्जुन तिष्ठति ।
भ्रामयन् सर्वभूतानि यन्त्रारूढानि मायया ॥
(भगवद्गीता १८. ६१ )
हे अर्जुन ,ईश्वर अर्थात श्रीकृष्ण ही सभी प्राणियों के अन्त :करण में स्थित होकर अपनी माया के द्वारा प्राणियों को यंत्र पर आरूढ़ कठपुतली की तरह घुमाते रहते हैं।
O Arjuna ,The Omni dwells in the hearts of all living beings ; they being mounted on the machine
(body with the senses ) causes them to revolve (according to their gunas)by means of His Prakriti
(Materail Energy , The Maya ).
प्रभु ने कर्म विधान सब प्राणियों के नियंता के रूप में बनाये हैं। इसलिए व्यक्ति को वह सब ,जो भाग्य उस पर डालता है ,प्रभु के शरण लेकर और उनके आदेशों का पालन करते हुए सहर्ष सहन करना सीखना चाहिए। (तुलसी रामायण २ . २ १८. ०२ ).
वेदों की घोषणा है कि कर्मों के माध्यम से प्रभु हमें वैसे ही नचाता है ,जैसे मदारी को बंदर,जैसे कांग्रेस को सोनिया मायनो। कर्म विधान के बिना शास्त्र निर्देशों ,निषेधों और आत्मप्रयासों का कोई मूल्य नहीं होगा। कर्म शाश्वत न्याय और शाशवत अधिनियम है। शाश्वत न्याय की कार्य पद्धति के परिणामस्वरूप हमारे कर्मों के परिणामों से कोई बचाव नहीं हो सकता . हम अपने अतीत के चिंतन और कर्म की उपज हो जाते हैं।
हमारा आज हमारे कल के कर्मों का परिणाम है।
Our present is our past with little modification ,our future will be our present with little modification .
इसलिए शास्त्रों का मार्गदर्शक के रूप में उपयोग करते हुए हमें वर्तमान क्षण में बुद्धिपूर्वक चिंतन और कर्म करना चाहिए .
कर्म और पुनःजन्म का सिद्धांत कुरआन की दो आयतों में भी मिलता है -अल्लाह वह है ,जिसने तुम्हें पैदा किया और फिर तुम्हारा पोषण किया ,तुम्हें मारा और जो तुम्हें फिर जीवन देता है (सूरा ३०. ४० ).
"It is Allah ,Who has created you .Further ,He has provided for your sustenance ;then He will cause you to die ; and again He will give you life .Are there any of your (false )'partners 'who can do any single one of these things ?Glory to Him ! And high is He above the partners they attribute (to him )!
(Surah 30.40)
वह उन्हें जो अच्छे कर्म करते हैं और जिनमें आस्था है ,पुरुस्कृत करता है। उसके कर्म फल के विधान से कोई बचने में समर्थ नहीं (सूरा ३०. ४५ ). लोग अपने कर्म के परिणामों से नहीं बच सकते,क्योंकि जैसा तुम बोवोगे वैसा काटोगे।
You reap what you sow.
कारणों और परिणामों को अलग नहीं किया जा सकता, क्योंकि कार्य अर्थात परिणाम कारण में वैसे ही विद्यमान रहता है जैसे फल बीज में । अच्छे और बुरे कर्म हमारी छाया की भाँति हमारे साथ चलते हैं।
बाइबिल का कहना है -जो भी आदमी का खून बहाता है ,आदमी द्वारा उसका खून बहाया जाएगा (जेनेसिस ६. ०६ ). यह विश्वास किया जाता है कि बाइबिल से कर्म और पुनर्जन्म के सारे सन्दर्भों को दूसरी शती में इस महान उद्देश्य से निकाल दिया गया था कि व्यक्ति इसी जन्म में पूर्णता के लिए महा परिश्रम करे। जो लोग पुनर्जन्म में विश्वास करते हैं ,उन्हें आलसय और प्रमाद से हटकर आध्यात्मिक साधना पर ज़ोर देना चाहिए और इसी जन्म में आत्म ज्ञानप्राप्त (Knowledge of the real I ,The Self ,The Soul ,आत्मन )करने का पूरा प्रयास करना चाहिए जैसे कि पुनर्जन्म है ही नहीं। यह सोचकर जियो कि यह दिन पृथ्वी पर तुम्हारा अंतिम दिन है। आलस्य और प्रमाद से कोई कुछ भी नहीं पा सकता।
कोई भी इस जगत से मृत्यु के बाद उस लोक में संपत्ति (ATM CARD ,PASS BOOK,आदि ),यश ,शक्ति आदि अपने साथ नहीं ले जा सकता है। मृत्यु भी व्यक्ति के कर्म को नहीं छू सकती ,फांसी और आत्महत्या भी नहीं ,शेष बचा प्रारब्ध अगले जन्म में भोगना पड़ेगा । जिन्होनें पूर्व जन्म में अत्यंत पवित्रता के साथ कर्म किया है ,वे बिना किसी विशेष प्रयत्न के इस जन्म में यश पा लेंगें।
भ्रामयन् सर्वभूतानि यन्त्रारूढानि मायया ॥
(भगवद्गीता १८. ६१ )
हे अर्जुन ,ईश्वर अर्थात श्रीकृष्ण ही सभी प्राणियों के अन्त :करण में स्थित होकर अपनी माया के द्वारा प्राणियों को यंत्र पर आरूढ़ कठपुतली की तरह घुमाते रहते हैं।
O Arjuna ,The Omni dwells in the hearts of all living beings ; they being mounted on the machine
(body with the senses ) causes them to revolve (according to their gunas)by means of His Prakriti
(Materail Energy , The Maya ).
प्रभु ने कर्म विधान सब प्राणियों के नियंता के रूप में बनाये हैं। इसलिए व्यक्ति को वह सब ,जो भाग्य उस पर डालता है ,प्रभु के शरण लेकर और उनके आदेशों का पालन करते हुए सहर्ष सहन करना सीखना चाहिए। (तुलसी रामायण २ . २ १८. ०२ ).
वेदों की घोषणा है कि कर्मों के माध्यम से प्रभु हमें वैसे ही नचाता है ,जैसे मदारी को बंदर,जैसे कांग्रेस को सोनिया मायनो। कर्म विधान के बिना शास्त्र निर्देशों ,निषेधों और आत्मप्रयासों का कोई मूल्य नहीं होगा। कर्म शाश्वत न्याय और शाशवत अधिनियम है। शाश्वत न्याय की कार्य पद्धति के परिणामस्वरूप हमारे कर्मों के परिणामों से कोई बचाव नहीं हो सकता . हम अपने अतीत के चिंतन और कर्म की उपज हो जाते हैं।
हमारा आज हमारे कल के कर्मों का परिणाम है।
Our present is our past with little modification ,our future will be our present with little modification .
इसलिए शास्त्रों का मार्गदर्शक के रूप में उपयोग करते हुए हमें वर्तमान क्षण में बुद्धिपूर्वक चिंतन और कर्म करना चाहिए .
कर्म और पुनःजन्म का सिद्धांत कुरआन की दो आयतों में भी मिलता है -अल्लाह वह है ,जिसने तुम्हें पैदा किया और फिर तुम्हारा पोषण किया ,तुम्हें मारा और जो तुम्हें फिर जीवन देता है (सूरा ३०. ४० ).
"It is Allah ,Who has created you .Further ,He has provided for your sustenance ;then He will cause you to die ; and again He will give you life .Are there any of your (false )'partners 'who can do any single one of these things ?Glory to Him ! And high is He above the partners they attribute (to him )!
(Surah 30.40)
वह उन्हें जो अच्छे कर्म करते हैं और जिनमें आस्था है ,पुरुस्कृत करता है। उसके कर्म फल के विधान से कोई बचने में समर्थ नहीं (सूरा ३०. ४५ ). लोग अपने कर्म के परिणामों से नहीं बच सकते,क्योंकि जैसा तुम बोवोगे वैसा काटोगे।
You reap what you sow.
कारणों और परिणामों को अलग नहीं किया जा सकता, क्योंकि कार्य अर्थात परिणाम कारण में वैसे ही विद्यमान रहता है जैसे फल बीज में । अच्छे और बुरे कर्म हमारी छाया की भाँति हमारे साथ चलते हैं।
बाइबिल का कहना है -जो भी आदमी का खून बहाता है ,आदमी द्वारा उसका खून बहाया जाएगा (जेनेसिस ६. ०६ ). यह विश्वास किया जाता है कि बाइबिल से कर्म और पुनर्जन्म के सारे सन्दर्भों को दूसरी शती में इस महान उद्देश्य से निकाल दिया गया था कि व्यक्ति इसी जन्म में पूर्णता के लिए महा परिश्रम करे। जो लोग पुनर्जन्म में विश्वास करते हैं ,उन्हें आलसय और प्रमाद से हटकर आध्यात्मिक साधना पर ज़ोर देना चाहिए और इसी जन्म में आत्म ज्ञानप्राप्त (Knowledge of the real I ,The Self ,The Soul ,आत्मन )करने का पूरा प्रयास करना चाहिए जैसे कि पुनर्जन्म है ही नहीं। यह सोचकर जियो कि यह दिन पृथ्वी पर तुम्हारा अंतिम दिन है। आलस्य और प्रमाद से कोई कुछ भी नहीं पा सकता।
कोई भी इस जगत से मृत्यु के बाद उस लोक में संपत्ति (ATM CARD ,PASS BOOK,आदि ),यश ,शक्ति आदि अपने साथ नहीं ले जा सकता है। मृत्यु भी व्यक्ति के कर्म को नहीं छू सकती ,फांसी और आत्महत्या भी नहीं ,शेष बचा प्रारब्ध अगले जन्म में भोगना पड़ेगा । जिन्होनें पूर्व जन्म में अत्यंत पवित्रता के साथ कर्म किया है ,वे बिना किसी विशेष प्रयत्न के इस जन्म में यश पा लेंगें।
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