क्योंकि राष्ट्र की सुरक्षा का दायित्व राष्ट्रपति पर होता है …।
यद्यपि कलाम साहब का देहांत हो चुका है लेकिन एक भूतपूर्व राष्ट्रपति के रूप में उनकी ये चिंता बरकरार थी कि संविधान के तहत प्राप्त विशेषाधिकार और विपक्ष को मिले अधिकार के तहत सोनिया मायनो कांग्रेस आखिर इन अधिकारों का दुरोपयोग करके संसद को ही तोड़ने की साजिश के तहत संसद को चलने क्यों नहीं दे रही है। ये कैसे लोग है जो राष्ट्रीय संकट की घड़ी में भी जब की देश के एक प्रमुख प्रांत पंजाब पर आतंकी हमला होता है काली पट्टी बांधे संसद में चले आ रहे हैं।
कैसे लोग हैं ये जो याकूब मेमन की फांसी के विरोध में अपने बिलों से निकल आये हैं। शर्म आनी चाहिए इन्हें।
वर्तमान राष्ट्रपति प्रणव दा पर ऐसा कौन सा नैतिक दवाब है जो वे इस दुर्भाग्यपूर्ण एवं राष्ट्र के लिए अति गंभीर स्थिति में भी मौन साधे बैठे हैं। वे क्यों नहीं कथित विपक्ष का आवाहन इस बात के लिए करते कि शोक की इस घड़ी में तो वे बंदरों की तरह संसद में मत उछलें कूदें। कुछ विधाई काम होने दें।
सोनिया मायनो की अगली पीढ़ी के काम को आगे ले जाने वाला एक और नमूना दिल्ली के मुख्यमंत्री के रूप में यही काम कर रहा है। उसे आज तक विधाई भाषा न लिखनी आई है न बोलनी। दिल्ली के उपराज्यपाल नजीब जंग को लिखे पत्र में इस नमूने का प्रलाप देखिए -माना की हम हार गए और मोदी जीत गए अब तो आप महिला आयोग की अध्यक्षा के लिए नामित पत्र पर अपने हस्ताक्षर कर दें ।
नजीब साहब को इस व्यक्तिनुमा नमूने को समझाना चाहिए ये मुख्यमंत्री द्वारा लिखे जाने वाले पत्र की भाषा नहीं है पहले भाषा सीख कर आओ फिर हस्ताक्षर कर दूंगा। उन्हेंपत्र वापस कर देना चाहिए था।
इंसान के भेष में संसद में शाखा मृग बने कांग्रेसी भी यही काम कर रहे हैं संविधान की आड़ लेकर ये संविधान को ही तोड़ देना चाहते हैं ।
एक भी समझदार आदमी क्या कांग्रेस में नहीं है जो इस राष्ट्रीय संकट को भांप सके और संसद में विधाई कार्य क्यों नहीं हो पा रहा है इसका जायजा लेकर सही पहल करे हाथ में आईना लेकर ।
यद्यपि कलाम साहब का देहांत हो चुका है लेकिन एक भूतपूर्व राष्ट्रपति के रूप में उनकी ये चिंता बरकरार थी कि संविधान के तहत प्राप्त विशेषाधिकार और विपक्ष को मिले अधिकार के तहत सोनिया मायनो कांग्रेस आखिर इन अधिकारों का दुरोपयोग करके संसद को ही तोड़ने की साजिश के तहत संसद को चलने क्यों नहीं दे रही है। ये कैसे लोग है जो राष्ट्रीय संकट की घड़ी में भी जब की देश के एक प्रमुख प्रांत पंजाब पर आतंकी हमला होता है काली पट्टी बांधे संसद में चले आ रहे हैं।
कैसे लोग हैं ये जो याकूब मेमन की फांसी के विरोध में अपने बिलों से निकल आये हैं। शर्म आनी चाहिए इन्हें।
वर्तमान राष्ट्रपति प्रणव दा पर ऐसा कौन सा नैतिक दवाब है जो वे इस दुर्भाग्यपूर्ण एवं राष्ट्र के लिए अति गंभीर स्थिति में भी मौन साधे बैठे हैं। वे क्यों नहीं कथित विपक्ष का आवाहन इस बात के लिए करते कि शोक की इस घड़ी में तो वे बंदरों की तरह संसद में मत उछलें कूदें। कुछ विधाई काम होने दें।
सोनिया मायनो की अगली पीढ़ी के काम को आगे ले जाने वाला एक और नमूना दिल्ली के मुख्यमंत्री के रूप में यही काम कर रहा है। उसे आज तक विधाई भाषा न लिखनी आई है न बोलनी। दिल्ली के उपराज्यपाल नजीब जंग को लिखे पत्र में इस नमूने का प्रलाप देखिए -माना की हम हार गए और मोदी जीत गए अब तो आप महिला आयोग की अध्यक्षा के लिए नामित पत्र पर अपने हस्ताक्षर कर दें ।
नजीब साहब को इस व्यक्तिनुमा नमूने को समझाना चाहिए ये मुख्यमंत्री द्वारा लिखे जाने वाले पत्र की भाषा नहीं है पहले भाषा सीख कर आओ फिर हस्ताक्षर कर दूंगा। उन्हेंपत्र वापस कर देना चाहिए था।
इंसान के भेष में संसद में शाखा मृग बने कांग्रेसी भी यही काम कर रहे हैं संविधान की आड़ लेकर ये संविधान को ही तोड़ देना चाहते हैं ।
एक भी समझदार आदमी क्या कांग्रेस में नहीं है जो इस राष्ट्रीय संकट को भांप सके और संसद में विधाई कार्य क्यों नहीं हो पा रहा है इसका जायजा लेकर सही पहल करे हाथ में आईना लेकर ।
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