बुधवार, 30 मई 2018

क्या महाठगबंधन के पास एक भी मोदी है

जनता को सिर्फ मोदी विरोध नहीं कार्यक्रम और मुद्दे चाहिए। गठबंधनियाँ राजनीतिक पार्टियां  कांग्रेस के सबसे अल्पबुद्धि उस बालक के नेतृत्व में शामिल नहीं दिखना चाहतीं जिस अबुध कुमार ने मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए -२ का निर्णय रद्दी कागज़ की तरह फाड़ दिया। 

ज़ाहिर है जनता  उस षड़यंत्र का हिस्सा नहीं दिखना चाहती जिसकी पटकथा पाकिस्तान जाकर लिखवाई जाती है और कहा जाता है मोदी हटाओ हमें लाओ। 

क्या महाठगबंधन  के पास एक भी मोदी है जो निष्काम भाव से देश हित में २४x ७ x३६५ काम करने की क्षमता और जिगर रखता हो। अगर नहीं तो बजाते रहो गठबंधन की डुगडुगी। और है तो उसे आगे लाओ। भारतधर्मी समाज स्वागत करेगा। वरना अपने आप चुल्लू भर पानी में डूब मरो.  

मंगलवार, 29 मई 2018

नाटक तो अब कर्नाटक में शुरू हुआ है।अभी तक विदूषक की ही मंच पे आवाजाही थी

मनमोहन -२ 

उतना लाचार नहीं है कर -नाटक का मनमोहना-२  जितना की मनमोहना -१ था, तकरीबन -तकरीबन ज़र खरीद गुलाम सा.उसी की सरकार के निर्णय को कांग्रेस के सबसे अल्पबुद्धि राजकुमार ने फाड़ के फैंक दिया था। तब एक शायर ने इस स्थिति पर कहा था :

ज़ुल्म की मुझपर इंतिहा कर दे ,

मुझसा बे -जुबां फिर कोई मिले न मिले। 

  नाटक तो अब कर्नाटक में शुरू हुआ है।अभी तक विदूषक की ही मंच पे आवाजाही थी। 

कुमार -सामी (आसामी नहीं )अपने पिता -श्री  -जी के साथ हुई बदसुलूकी भूले नहीं हैं। गौड़ा -देव-जी  अभी जीवित है। मल्लिका से पाई -पाई का हिसाब लिया जाएगा। 

कैसी दया ?दया और मल्लिका ?

ये राजनीति की उलटबासी है दोस्तों। मंत्रालय बन ने दो।  

रविवार, 20 मई 2018

महाठगबंधन का बिकाऊ माल

महाठगबंधन का बिकाऊ माल 

दो फिसड्डी छात्र थे परीक्षा में नकल करते पकड़े गए। बरसों ये विश्वविद्यालय में डेरा डाले रहे। आखिर इम्तिहान में धर लिए गए। रस्टीकेट कर दिए गए। दोनों ने मिलकर एक स्कूल खोला और उसके प्राचार्य और उपप्राचार्य बन गए। 'कर -नाटक 'में यही हुआ है। 'नाटक' अभी ज़ारी है। इन पंद्रह दिनों में कुछ भी हो सकता है। 'विषकन्या कांग्रेस' और ' जनता द बल बडगौड़ा' दोनों तरफ के विधायकों  में गहरी चिंता व्याप्त है। हालांकि अमित शाह शांत हैं भारतीय जनता पार्टी सुकून में है। लेकिन विधयाकों का रेवड़ बे -चैन है कहीं फिर हमें नज़रबंद न कर दिया जाए।४८ घंटे बड़ी बे -चैनी में बीते थे।  कुछ राजनीति के धंधेबाज़ों की मांग है हमें एक बार फिर 'सुप्रीम -कोर्ट' को आधी रात गए खुलवाना चाहिए। पहले से ही बे -चैन 'अपेक्स -कोर्ट' राजी हो जाएगा और महाठगबंधन को  बहुमत सिद्ध करने के लिए दिए गए समय को अपनी ही हालिया नज़ीर के मद्दे नज़र घटाकर पुन : ४८ घंटे कर देगा।

भारतधर्मी समाज के राष्ट्रीय प्रवक्ता और विचारक डॉ. वागीश मेहता नन्दलाल ने हमसे एक गैर -औपचारिक बातचीत में उक्त उदगार व्यक्त करते हुए जोड़ा: दोनों तरफ बिकने को आतुर विधायक बिकने को तैयार हैं सबको सबकुछ नहीं मिलने वाला है ,बिकाऊ माल सत्ता में अपना हिस्सा न मिलने पर कब जूता निकाल ले इसका कोई निश्चय नहीं। 

 'पुरोहित' यजमान से रुष्ट है वह बिना पानी का नारियल यजमान (कर्नाटक की जनता) के माथे पे झांसा देकर फोड़ने से बाज़ नहीं आएगा। कौन है ये पुरोहित 'नर 'है या 'मादा' ,हमें भी बतलाइये। 

जैश्रीकृष्णा !जयजय  'कर -नाटक 'के किरदार। 

गुरुवार, 3 मई 2018

अनशन की परम्परा को लज्जित ,कलंकित करता अनशन

अनशन की परम्परा को लज्जित ,कलंकित करता अनशन

"राहुल गांधी लाओ देश बचाओ।" पांच घंटे का अनशन करो और फिर पांच घंटे का अलार्म बजते ही छोले भठूरे अन्य खाद्यों पर टूट पड़ो।अनशन से पहले भी कुछ टूंग लो।  गांधी कुमार उर्फ़ राहुल विन्ची को ये मुगालता है ,राष्ट्र पिता मोहनदास कर्म चंदगाँधी को इन्हीं कथित राहुल गांधी की वजह से जाना जाता है। और पांच घंटे का (अन्+अशन =बिना अन्न ग्रहण )नाटक  करके उनके-कच्छे का लालरंग देखके  उन को हनुमान भक्त घोषित करने  वाले चाटुकारों से अपनी जय बुलवाकर वे वर्तमान राजनीतिक प्रबंध का स्थान ले लेंगे। जनेऊ दिखलाकर खुद को सुर्जेवालों से सनातन धर्मी घोषित करवा लो। कोई नादानी सी नादानी है।

किसी सिब्बल ने इन्हें अनशन का अर्थ नहीं समझाया। क्रान्तिवीरों के १३० दिनी अनशन के बारे में नहीं बतलाया। अनशन एक पावित्र्य लिए रहा है। वर्तमान पीढ़ी जान ले नेहरू के वंशज वर्णसंकर ज़रूर  हैं जिन्होंनें संविधान में होने वाले परिवर्तन की तरह गोत्र बार बार -बार बदला है।

गूगल बाबा से पूछ लो पारसियों में कोई गांधी गोत्र नहीं होता। होता तो बचेखुचे पारसियों में कम से कम एक तो और गांधी होता। फ़िरोज़ खान साहब को महात्मा गांधी ने नेहरू के रोने धोने पर  गोद ले लिया था। और फ़िरोज़ खान फ़िरोज़ गांधी हो गए।
भले ला सकते हो ,राहुल लाओ गांधी को कैसे लाओगे जिसे नेहरुवियन तुष्टिकरण की नीति ने कब का मार दिया। उस नाथूराम गोडसे ने भी दो दिन का उपवास रखा था (ईशवर के निकट   रहना उपवास )पाकिस्तान से अंग भंग ट्रेनें हिंदुओं को ला रही  थीं।माहौल में उत्तेजना थी आक्रोश था।  गांधी मारे गए लेकिन तुष्टिकरण का जिन्ना (जिन्न )आज भी जीवित है।