तारीफ़ मत कर देना किसी की उसके सामने। तन बदन सुलग जाएगा उसका। उसकी जेनेटिक प्रोग्रॅमिंग में तारीफ़ सुनना नहीं लिखा गया है। जींस की अपनी प्रवृत्ति होती है। बातें करने का बड़ा शौक है उसे और बातें भी क्या तेरी मेरी उसकी किसी की भी निंदा का आलेख तैयार करना उसे बड़ा माफिक आता है। यूं कहियेगा शौक है उसका व्यसन की हद तक। आप कहेंगे आखिर है कौन वह।तो ज़नाब
वह किसी की भी बहु हो सकती है,आपकी मेरी या फिर किस और की । अब बहु है तो किसी न किसी की बेटी भी होगी ही । बहन भी होगी और माँ भी। अलबत्ता एक बात तो अपनी माँ की उसमें जस की तस चली आई है :गलती तस्दीक न करना , अपने किए को रह रहकर जस्टिफाई करते रहना ,सही सिद्ध करना । तर्क सम्मत ठहराना।
'मैं उसकी शिकायत न करती तो क्या करती 'हमेशा का चिर परिचित राग ही उसने अलापा था। बाकी टीचर्स भी उससे कोई कम परेशान नहीं थीं सो हमने मिलकर उस कोर्डिनेटर की लिखित शिकायत कर दी।
उसी ने एक दिन सहर्ष ,सगर्व बताया था :उस कोर्डिनेटर को स्कूल प्रशासन ने न सिर्फ हटा दिया है , उसकी बदली भी कर दी गई है । अब वह मेरी ही तरह एक टीचर है वह भी छोटे से एक नर्सरी सेक्शन में ।
अब चैन से हैं ये मोतरमा एक और टेलेंट इनकी भेंट चढ़ गया। सभ्रांत, नफासत पसंद कोई भी व्यक्ति इन्हें फूटी आँख नहीं सुहाता अलबत्ता आधे अधूरे टूटे फूटे व्यक्तित्व इन्हें रास आते हैं। यारी के अनुकूल लगते हैं ,ऐसे तमाम लोगों से इन मोतरमा को अपने वजूद को कोई ख़तरा दिखलाई नहीं देता। दुनिया भर के तमाम कोम्प्लेक्सीज़ का पुलिंदा है ये औरत इसीलिए हर अच्छी चीज़ को नकारना इसका स्वभाव बन गया है। फिर चाहे कोई बढ़िया भाषा बोलता हो या करीने से कपड़े पहनता हो। या फिर बेहद सलीका पसंद हो।इसे फ़ौरन अपने लिए ख़तरा महसूस होने लगता है और ये चींटी की तरह छिद्र बनाने लगती है। छिद्रान्वेषी जो है।
जीवन के एक बड़े सुख से वंचित है ये महिला। आप कभी भी इसके मुख से किसी की तारीफ़ नहीं सुनेंगे।इसे नहीं पता किसे के सुख में नाचने का सुख क्या होता है। निंदा रस ही उगलेगी ये दुर्मुखा। कुलदेवी बनी बैठी है ये कुलक्षिणी जबकि फूल तो क्या कोई इसे घास भी नहीं डालता । घर की परिभाषा इसने सीमित कर दी है। घर का मतलब इसकी माँ इसका एक अदद पति और दो बच्चे भर रह गए हैं। कौन जाना चाहेगा इस मनहूसा के पास ?जो किसी की तारीफ़ के दो बोल नहीं सुन सकती ।
टारगेट बनाके चलती है जीवन में। किसी न किसी को अपने निशाने पे लिए रहना इसका शगल है. ज्यादाद खड़ी करना इसका दूसरा फेवरिट पास टाइम है। गरीब को कभी भी उसका पूरा मेहनताना न देगी ये मनहूस। जबकि भगवान ने इसे सब कुछ दिया है। स्टेटस ,एकल माता पिता वाला पति। कोई जिम्मेवारी नहीं जो करेगी सब मैड करेगी।इसकी औलाद के जूते भी मैड उतारेगी।
इसे नहीं पता क्या कि इस देश में एक ऐसा राष्ट्रपति भी हुआ है जो अपने जूते हर मौके पे खुद उतारता और पहनता था जबकि हर तीसरे दिन गांधी समाधि पे रीथ चढाने वीआईपीज़ के साथ जाता था।
ये किसी अफ़लातून की बेटी है। न न इसका बाप अपने सब काम खुद करता है घर में मैड का प्रवेश नहीं है। माँ को ही पौछा लगाना पड़ता है चाहे फिर सर्दी हो या गर्मी।
अपनी महनत नहीं शादी के बाद ओढ़े गए पति की पदप्रतिष्ठा से ये अपना रूतबा बनाये हुए है। गुण कैसे? अजी गुण कहाँ हैं इसमें। न संगीत में रूचि न साहित्य में न अध्यात्म में बस एक ही रूचि है :परनिंदा रसपान ,परनिंदा रसिक है ये।
वह किसी की भी बहु हो सकती है,आपकी मेरी या फिर किस और की । अब बहु है तो किसी न किसी की बेटी भी होगी ही । बहन भी होगी और माँ भी। अलबत्ता एक बात तो अपनी माँ की उसमें जस की तस चली आई है :गलती तस्दीक न करना , अपने किए को रह रहकर जस्टिफाई करते रहना ,सही सिद्ध करना । तर्क सम्मत ठहराना।
'मैं उसकी शिकायत न करती तो क्या करती 'हमेशा का चिर परिचित राग ही उसने अलापा था। बाकी टीचर्स भी उससे कोई कम परेशान नहीं थीं सो हमने मिलकर उस कोर्डिनेटर की लिखित शिकायत कर दी।
उसी ने एक दिन सहर्ष ,सगर्व बताया था :उस कोर्डिनेटर को स्कूल प्रशासन ने न सिर्फ हटा दिया है , उसकी बदली भी कर दी गई है । अब वह मेरी ही तरह एक टीचर है वह भी छोटे से एक नर्सरी सेक्शन में ।
अब चैन से हैं ये मोतरमा एक और टेलेंट इनकी भेंट चढ़ गया। सभ्रांत, नफासत पसंद कोई भी व्यक्ति इन्हें फूटी आँख नहीं सुहाता अलबत्ता आधे अधूरे टूटे फूटे व्यक्तित्व इन्हें रास आते हैं। यारी के अनुकूल लगते हैं ,ऐसे तमाम लोगों से इन मोतरमा को अपने वजूद को कोई ख़तरा दिखलाई नहीं देता। दुनिया भर के तमाम कोम्प्लेक्सीज़ का पुलिंदा है ये औरत इसीलिए हर अच्छी चीज़ को नकारना इसका स्वभाव बन गया है। फिर चाहे कोई बढ़िया भाषा बोलता हो या करीने से कपड़े पहनता हो। या फिर बेहद सलीका पसंद हो।इसे फ़ौरन अपने लिए ख़तरा महसूस होने लगता है और ये चींटी की तरह छिद्र बनाने लगती है। छिद्रान्वेषी जो है।
जीवन के एक बड़े सुख से वंचित है ये महिला। आप कभी भी इसके मुख से किसी की तारीफ़ नहीं सुनेंगे।इसे नहीं पता किसे के सुख में नाचने का सुख क्या होता है। निंदा रस ही उगलेगी ये दुर्मुखा। कुलदेवी बनी बैठी है ये कुलक्षिणी जबकि फूल तो क्या कोई इसे घास भी नहीं डालता । घर की परिभाषा इसने सीमित कर दी है। घर का मतलब इसकी माँ इसका एक अदद पति और दो बच्चे भर रह गए हैं। कौन जाना चाहेगा इस मनहूसा के पास ?जो किसी की तारीफ़ के दो बोल नहीं सुन सकती ।
टारगेट बनाके चलती है जीवन में। किसी न किसी को अपने निशाने पे लिए रहना इसका शगल है. ज्यादाद खड़ी करना इसका दूसरा फेवरिट पास टाइम है। गरीब को कभी भी उसका पूरा मेहनताना न देगी ये मनहूस। जबकि भगवान ने इसे सब कुछ दिया है। स्टेटस ,एकल माता पिता वाला पति। कोई जिम्मेवारी नहीं जो करेगी सब मैड करेगी।इसकी औलाद के जूते भी मैड उतारेगी।
इसे नहीं पता क्या कि इस देश में एक ऐसा राष्ट्रपति भी हुआ है जो अपने जूते हर मौके पे खुद उतारता और पहनता था जबकि हर तीसरे दिन गांधी समाधि पे रीथ चढाने वीआईपीज़ के साथ जाता था।
ये किसी अफ़लातून की बेटी है। न न इसका बाप अपने सब काम खुद करता है घर में मैड का प्रवेश नहीं है। माँ को ही पौछा लगाना पड़ता है चाहे फिर सर्दी हो या गर्मी।
अपनी महनत नहीं शादी के बाद ओढ़े गए पति की पदप्रतिष्ठा से ये अपना रूतबा बनाये हुए है। गुण कैसे? अजी गुण कहाँ हैं इसमें। न संगीत में रूचि न साहित्य में न अध्यात्म में बस एक ही रूचि है :परनिंदा रसपान ,परनिंदा रसिक है ये।
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