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हो।
आखिर एक मुज़रिम की दूसरे से सहानुभूति क्यों न हो सल्लू और याकूब ,दोनों मुज़रिम ,मौसरे भाई। खुद तो एक
व्यक्ति की जानलेकर जमानती
बन बैठे हैं अब दूसरे पे (याकूं मेनन )क़ानून का शिकंजा कसा है तो उसका विरोध कर रहें हैं ।हठधर्मिता और बे -शर्मी
देखिये अभी भी जनाब फरमा रहें हैं मैं ने अपनी ट्वीट अब्बा जान के कहने पे वापस ली है।
ये वे प्रमुख राजनेता,अभिनेता,खिलाड़ी,पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्त्ता हैं जिन्होंने आतंकी याक़ूब की फांसी रोकने के लिए राष्ट्रपति को लिखी चिट्ठी में हस्ताक्षर किये हैं।
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