आयु : सत्त्वबलारोग्य -सुखप्रीतिविवर्धना :।
रस्या : स्निग्धा : स्थिरा हृद्या ,आहारा : सात्त्विकप्रिया :। ।
Foods dear to those in the mode of goodness increase the duration of life ,purify one's existence and
give strength ,health ,happiness and satisfaction .Such foods are juicy ,fatty, wholesome ,and
pleasing to the heart .
Fats here are derived from animal fat milk only and its products in the referred fatty foods .
आयु ,बुद्धि ,बल ,स्वास्थ्य, सुख और प्रसन्नता बढ़ाने वाले ; रसयुक्त चिकने और स्थिर रहने वाले तथा शरीर
को शक्ति देने वाले आहार सात्त्विक व्यक्ति को प्रिय होते हैं।
व्यक्ति को जीवन की रक्षा और पोषण के लिए शुद्ध सात्त्विक भोजन वैसे ही ग्रहण करना चाहिए ,जैसे
रोगी जीवन रक्षा के लिए औषधि का सेवन करता है (महाभारत १२। २१२। १४ )ज़ो कुछ भी व्यक्ति खाता है
उसके इष्टदेव भी उसी का सेवन करते हैं (वाल्मीकि रामायण २. १०४. १५ ).(गीता ८. २४ भी देखें ).
(क्योंकि )मैं तुम हूँ और तुम मैं हो (ब्रह्म सूत्र ३. ३.३७. ). जो भोजन हम करते हैं ,वह तीन भागों में विभाजित हो
जाता है। भोजन का स्थूलतम भाग शौच (Human excreta )में परिवर्तित हो जाता है ,मध्यम भाग से मांस
,रक्त ,मज्जा (bone marrow )और अस्थि(bones )। सूक्ष्मतम भाग वीर्य
(Sperms,spermatozoan,spermatozoa ) ,ऊर्ध्वगामी होकर प्राणों (5 Life forces) से मिलकर मस्तिष्क और
शरीर के सूक्ष्म अवयवों का पोषण करता है (छान्दोग्य उपनिषद ६. ०५. ०१. -६. ० ६. ०२ ). भोजन को जीवन
वृक्ष
की जड़ कहा जाता है तथा आध्यात्मिक जीवन में सफलता के लिए स्वस्थ तन और मन अनिवार्य हैं। मन
स्वस्थ तभी होगा ,जब तन स्वस्थ हो। सात्त्विक वृत्ति वाले व्यक्ति शाकाहारी भोजन करते हैं ,शाकाहारी भोजन
करने से व्यक्ति आर्ष पुरुष बन सकता है ,क्योंकि व्यक्ति वैसा ही बनता है ,जैसा वह भोजन करता है।
You become what you eat .
रस्या : स्निग्धा : स्थिरा हृद्या ,आहारा : सात्त्विकप्रिया :। ।
Foods dear to those in the mode of goodness increase the duration of life ,purify one's existence and
give strength ,health ,happiness and satisfaction .Such foods are juicy ,fatty, wholesome ,and
pleasing to the heart .
Fats here are derived from animal fat milk only and its products in the referred fatty foods .
आयु ,बुद्धि ,बल ,स्वास्थ्य, सुख और प्रसन्नता बढ़ाने वाले ; रसयुक्त चिकने और स्थिर रहने वाले तथा शरीर
को शक्ति देने वाले आहार सात्त्विक व्यक्ति को प्रिय होते हैं।
व्यक्ति को जीवन की रक्षा और पोषण के लिए शुद्ध सात्त्विक भोजन वैसे ही ग्रहण करना चाहिए ,जैसे
रोगी जीवन रक्षा के लिए औषधि का सेवन करता है (महाभारत १२। २१२। १४ )ज़ो कुछ भी व्यक्ति खाता है
उसके इष्टदेव भी उसी का सेवन करते हैं (वाल्मीकि रामायण २. १०४. १५ ).(गीता ८. २४ भी देखें ).
(क्योंकि )मैं तुम हूँ और तुम मैं हो (ब्रह्म सूत्र ३. ३.३७. ). जो भोजन हम करते हैं ,वह तीन भागों में विभाजित हो
जाता है। भोजन का स्थूलतम भाग शौच (Human excreta )में परिवर्तित हो जाता है ,मध्यम भाग से मांस
,रक्त ,मज्जा (bone marrow )और अस्थि(bones )। सूक्ष्मतम भाग वीर्य
(Sperms,spermatozoan,spermatozoa ) ,ऊर्ध्वगामी होकर प्राणों (5 Life forces) से मिलकर मस्तिष्क और
शरीर के सूक्ष्म अवयवों का पोषण करता है (छान्दोग्य उपनिषद ६. ०५. ०१. -६. ० ६. ०२ ). भोजन को जीवन
वृक्ष
की जड़ कहा जाता है तथा आध्यात्मिक जीवन में सफलता के लिए स्वस्थ तन और मन अनिवार्य हैं। मन
स्वस्थ तभी होगा ,जब तन स्वस्थ हो। सात्त्विक वृत्ति वाले व्यक्ति शाकाहारी भोजन करते हैं ,शाकाहारी भोजन
करने से व्यक्ति आर्ष पुरुष बन सकता है ,क्योंकि व्यक्ति वैसा ही बनता है ,जैसा वह भोजन करता है।
You become what you eat .
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