रविवार, 26 जुलाई 2015

ये स्पोक्स पर्सन क्या बला है साहब ?

ये स्पोक्स पर्सन क्या बला है साहब ?

पंडिताऊ भाषा में बात करें तो यह कोई ऐसा व्यक्ति होता है जो किसी  और व्यक्ति या संस्था द्वारा उसकी

तरफ


से बोलने के लिए अधिकृत किया जाता है।स्पोक्समैन तथा स्पोक्सवुमेन इसके पर्यायवाची समानार्थक शब्द हैं

लेकिन स्पोक्सपर्सन पुरुष और स्त्री दोनों के लिए प्रयुक्त हो सकता है।

वैसे वकील भी यही काम करता है वह अपने मुवक्किल का प्रवक्ता ही तो होता है। बात वह  न्याय दिलवाने की

करता है लेकिन इसका झुकाव और इसके आर्थिक हित  सीधे सीधे अपने मवक्किल से जुड़े होते हैं।

राजनीति में एक शब्द चिरकुट भी चल पड़ा है प्रवक्ता के लिए।

किसी संस्था का प्रबंधक भी यही काम करता है स्वागत अधिकारी भी। सांस्थानिक प्रवक्ता कई मर्तबा मन

मसोस कर ऐसी बात भी बोलता है जो उसके अपने हितों के खिलाफ जाती है। नौकर जो ठहरा संस्था विशेष

का। राजनीति में तो अक्सर ये होता है.गनीमत है शशि थरूर को सोनिया कांग्रेस ने कांग्रेसी प्रवक्त नहीं बनाया

वरना वह अपनी साफगोई के चलते  उनके गले की हड्डी बनके रह  जाते।

बात घर परिवार की  करें तो घर घर में किस्म किस्म के प्रवक्ता मौजूद हैं।पति को अपना सिरबचाने के लिए

अक्सर ये रोल अदा करना पड़ता है।पूछा जा सकता है क्या पत्नी गूंगी है या राजनीति के सोनियातत्व से

प्रभावित है।

ऐसे प्रवक्ता को (पत्नी के प्रतिनिधिक और पत्नी द्वारा अधिकृत व्यक्ति को जो रिश्ते में उसका पति होता है

लोग तरह तरह के अलंकरण से विभूषित  करते हैं। कुछ बानगियाँ देखिये :

बीवी का पिस्सू ,जोरू का गुलाम ,बीवी का चमचा।

कई समाज विज्ञानियों के अनुसार घर में  चलने वाली कुटिल राजनीति का एक पुर्जा बनके रह जाता है कथित

प्रवक्ता  जिसका अपना व्यक्तित्व इस प्रक्रिया में स्वाहा हो जाता है।अक्सर बीवी द्वारा प्रायोजित राजनीति

के यज्ञ में वह बेचारा हव्य सामग्री बनके रह जाता है।यज्ञ को ज़ारी रखने के लिए अब उसे कोई और व्यक्ति हव्यसामिग्री

के रूप में   चाहिए जिसे समिधा के रूप में इस्तेमाल करके वह कह सके ओम स्वाहा  और इस



सांस्कृतक क्रिया को आगे बढ़ा सके। बीवी का प्रवक्ता चाकर या पिस्सू यही तो सांस्कृतक कर्म करता रहता है।

      

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