संसार की माया जब आपको घेरने लगे तब इस महामाया को याद कर लेना। महामाया के सामने माया की एक नहीं चलती। सुद्युम्न को लेकर श्राद्ध देव गुरु वशिष्ठ को साथ लेकर देवी भगवती पराम्बा जगदम्बा के पास पहुंचे। जय सर्व सुर आराधे। बोले श्राद्धदेव -माँ हम आपकी शरण में आये हैं। आप तो चारों पदार्थ दे सकती हो धर्म ,अर्थ ,काम और मोक्ष। माँ ने पूछा क्या चाहिए। माँ श्रद्धदेव ने कहा मेरे पुत्र को सदा के लिए पुरुष बना दो।
देवी के दो ही रूप हैं एक कन्या और दूसरा ज्योति।विधि का विधान अटल है ब्रह्माजी ने जो रच दिया कोई उसे बदल नहीं सकता लेकिन माँ पराम्बा ऐसा कर सकतीं हैं।
किसी नाल राग नहीं ,किसी नाल द्वेष नहीं।
ज़िंदगी आनंद मेरी, कोई भी कलेश नहीं।
तुलसी मीठे वचन से ,सुख उपजै ,चहुँ ओर ,
वशीकरण एक मन्त्र है ,परिहर वचन कठोर।
इस वैष्णवी सृष्टि में भगवान ने हर चीज़ के जोड़े बनाये हैं। सुख है तो दुःख भी है ,लाभ है तो हानि भी है।यहां भी देवीभागवद्पुराण में आठ राक्षषों की कथा आई हैं । ये जोड़े हैं -मधु -केटव ,रक्तबीज -महिषासुर , चंड ,मुंड और शुम्भ -निशुम्भ। यहां भी जोड़ा जोड़ा है -दो दो राक्षषों का जोड़ा है।
किसी से राग अनुराग का होना ही मधु है द्वेष का होना केटव है। किसी ने कोई कड़वी बात कह दी वह केटव हो गया।
मद और मत्सर -महिषासुर और रक्बीज़ हैं। चंड -मुंड क्या हैं -लोभ और मोह और शुम्भ -निशुम्भ काम और क्रोध हैं।
अपने अंदर के दो दो विकारों को मारना है।
ऐसी वाणी बोलिए मन का आपा खोय ,
औरन को शीतल करे आपहु शीतल होय।
ऐसा बोलो ,सामने वाले को ऐसी शान्ति मिले आनंद आ जाए -कहे क्या वाणी है कितना सुन्दर बोलता है। आज अंदर मिठास ज्यादा हो गई है। उतनी ही जबान कड़वी होती जा रही है। जबान में मिठास नहीं रही।भारत में ४० फीसद से ज्यादा लोग डायबेटिक हैं अंदर की मिठास लिए हैं। जबान के कड़वे हैं। दोनों की उत्पत्ति कहाँ से हुई कानों से। जो कान अच्छा सुनते हैं किसी की स्तुति करते हैं वह मधु ,जो निंदा करते हैं वह केटव।
सृष्टि का लय हो चुका है। भगवान विष्णु वटपत्र पर लेटे हुए सोच रहे हैं। हमारी उत्पत्ति कैसे हुई ?क्या है प्रयोजन हमारी उत्त्पत्ति का ?
आप जानते हैं -भगवान विष्णु क्षीर सागर में शेषशैया पर लेटे रहते हैं। जल तो एक रस है इसको धारण करने वाला पात्र कौन सा है -भगवान सोचने लगे।
तभी माँ पराम्बा प्रकट हुईं। उन्होंने वह आधा श्लोक सुना दिया जिसमें पूरी देवीभागवद पुराण समाहित थी और कहा जब इस सृष्टि में कुछ भी नहीं था तब भी हम थीं। मैं ही इस सृष्टि का आदि स्रोत हूँ। सनातन हूँ।जब कुछ भी शेष नहीं रहता तब भी हम होती हैं ।
सत्संग के फूल : देविभागवदपुराण से कुछ अंश
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें