नौ दुर्गे ,नवरात्र पर विशेष
राधा की सत्ता कृष्ण हैं। राधा बिना कृष्ण आधे हैं। एक मर्तबा तमाम देवता कृष्ण के पास गए बोले भगवन कभी आप "बावन" बनके आते हैं ,कभी "कच्छप" ,कभी "मत्स्य" और कभी "मोहिनी" तो कभी वराह : ,ये सब तो आपके अवतार हैं। आपकी असली सत्ता क्या है।आप हैं कौन ?
कृष्ण मुस्कुराये और फिर -
कृष्ण के चारों तरफ देखते ही देखते एक ब्रह्म ज्योति एक तीव्र प्रकाश का घेरा बढ़ता गया देवता बोले इस आँखों को चौंधिया देने वाले प्रकाश में तो प्रभु कुछ दिखलाई नहीं देता। आप अपने आपको गोचर करो स्पष्ट करो। अचानक एक गौरवर्णा अद्भुत वदना स्त्री प्रकट हो गई। देवताओं ने पूछा ये कौन हैं। अचानक कृष्ण के मुख से निकला ये राधा हैं ये ही मेरी सत्ता हैं।
ज़रा सोचिये बिना शक्ति के कोई भी कार्य संपन्न होगा ?
शिव तो शव हैं उमा के बिना। फिर दिन रात समाधि में रहतें हैं। करते धरते कुछ नहीं हैं।असली करता धरता तो उमा हैं। वो जो सबसे बड़े हैं वे क्षीरसागर में शेष शैया पर सोते रहते हैं। जब तक गाय न रम्भाये इनकी नींद नहीं खुलती।लक्ष्मी जी इनके सिर्फ पाँव ही नहीं दबातीं सब कुछ वही करती हैं।
और ब्रह्मा वे तो बस दिनरात उत्पादन में ही लगे रहते हैं। बुद्धि ,प्राण ,योग्यता दात्री तो ब्रह्माणी हैं। क्षमता योग्यता ,जीवन,प्राण कौन दे रहा है ?ब्रह्माणी ही हैं इन सबके पीछे।
सब बड़े बड़े पोर्टफोलियों इन तीन देवियों के ही पास हैं।
जब समस्त देवता एक एक करके गाय के शरीर में समाने लगे तो लक्ष्मी जी अकेली रह गईं। इन्होनें अपना लोक छोड़ के जाने से मना कर दिया। जब अकेली पड़ गईं तो गाय के पास जाकर बोलीं माते मुझे भी स्थान दो। गाय बोली अब तो कोई स्थान खाली नहीं है मेरे रोम रोम में देवताओं का वास है। लक्ष्मीजी बोली बस आप हाँ कर दो आवास मैं ढूंढ लूंगी। लक्ष्मी जी ने हाँ कर दी। लक्ष्मी जी ने गाय के अपशिष्ट गोबर (गौ -वर )का वरण किया। अद्भुत पदार्थ है यह जो मानव शरीर की तरह अपना तापमान बनाये रहता है। कभी जेठ की तप्ती दोपहरी में ऊँगली गढ़ा के गोबर का तापमान (टेम्प्रेचर )देखिये। बाहर के तापमान से कम मिलेगा।अक्सर ३७ सेल्सियस ही मिलेगा नॉर्मल बॉडी टेम्प्रेचर जैसा।
पंच गकारों (गुरु ,गौ ,गंगा ,गीता और गायत्री )में से गाय एक प्रमुख गकार हैं। आधार है सनातन धर्म का। गाय से प्राप्त प्रत्येक पदार्थ अद्भुत है।
गोमूत्र को उबालिए मावा (खोवा ,Milk Cake )बन जाएगा।
गोवर को जो सफेद झिल्ली ढके रहती है वह करीषणी कहलाती है। यह पर्जन्य (बादलों )का वाहन करती है। धरती की अवांछित गंध को समेट लेती है अन्न को सड़ने से बचाती है। महामारी को टालती है।
गाय से प्राप्त छाछ (शीत ,मठ्ठा ,बटर मिल्क ) शरीर से टॉक्सिन्स को बाहर निकालता है। शिरोवेदन (तेज़ सर का दर्द )गाय को छूने से थोड़ी ही देर में भाग जाता है।इसीलिए गौ ग्रास निकालने का विधान रखा गया ताकि आप किसी बिध गाय के नज़दीक पहुंचें।
कभी अपने दोनों हाथों में गुड़ लेकर गाय को खिलाइये - एक पॉजिटिव एनर्जी आपको उत्प्राणित कर देगी। तरोताज़ा कर देगी। गाय की पूंछ से सकारात्मक ऊर्जा रिसती है। इसीलिए गाय की पूंछ से पंखा झलके नज़र उतारी जाती है। कृष्ण जब पूतना का वध कर देते हैं तब गोपियाँ उन्हें गौशाला में लेजाकर गोबर से स्नान करके गाय की पूंछ का झाड़ा देकर उनकी नज़र उतारती हैं।
ये मात्र कथाएँ नहीं हैं। वेदान्त का दर्शन हैं।
गाय के कान का मैल गौ -रोचन कहलाता है इसकी गंध कस्तूरी से हज़ार गुना ज्यादा है। इसके एक कण का स्पर्श चित्त को शांत कर देता है।
उत्तरायण से दाक्षिरायण तक (प्रतिपदा से पूर्णिमा से गिनती करें ,या पूर्णिमा से अमावस्या तक ,नक्षत्र आधारित गणना करनी चाहिए )यानी छ :माह तक आप सिर्फ गाय से प्राप्त पदार्थ ही शरीर में जमा करें। अन्य पदार्थों का सेवन न करें। घर से जितनी भी रिफाइंड चीज़ें उन्हें बाहर कर दें।महिषासुर की बहन भैंस से प्राप्त पदार्थ भी इस बहिष्करण में शामिल हैं। कामेषणा बढ़ाता है भैंस का दूध।
मानसिक व्याधियां ,मीग्रैन से छुटकारा मिल जाएगा छ :माह तक गाय से प्राप्त पदार्थों का सेवन करने से । अनिद्रा रोग जाता रहेगा।
जड़ता लाता है धमनियों को अवरुद्ध करता है भैंस से प्राप्त घी दूध । गाय का बछड़ा दूध पीने के बाद कुलांचे मारता है। कटड़ा (भैंस का बच्चा ) भैस का दूध पीने के बाद सो जाता है। गाय अपने बछड़े को एक लाख बछड़ों में भी पहचान लेती है और बछड़ा एक लाख गायों में अपनी माँ को पहचान लेता है। कटड़ा ऐसा नहीं कर सकता।
बिना गाय के यज्ञ सम्पन्न नहीं हो सकता। गाय का रज ,गौ मूत्र ,गोवर ,गौ घृत ,गौ दुग्ध के बिना यज्ञ संपन्न नहीं हो सकता। भैस के घी से किया गया यज्ञ पर्यावरण में विकृति लाएगा। गाय का घृत ऑक्सीजन मुक्त करेगा।
(ज़ारी )
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