आज का ब्लॉगपक्ष
गुरुवार, 29 अक्तूबर 2015
श्रीमद देवीभागवद पुराण इस सृष्टि की रचना देवी पराम्बा ने की अपनी (योग )माया से की थी सकल पदार्थ हैं जग माहिं , कर्महीन कछु पावत नाहिं। कथा सुनने तो आपको खुद ही आना पड़ेगा। इतना पुरुषार्थ (सेल्फ एफर्ट )तो आपको करना ही पड़ेगा। और एक बार नहीं अनेक बार आप आयेंगे तभी नया संस्कार पड़ेगा।
श्रीमद देवीभागवद पुराण
इस सृष्टि की रचना देवी पराम्बा ने की अपनी (योग )माया से की थी
सकल पदार्थ हैं जग माहिं ,
कर्महीन कछु पावत नाहिं।
कथा सुनने तो आपको खुद ही आना पड़ेगा। इतना पुरुषार्थ (सेल्फ एफर्ट )तो आपको करना ही पड़ेगा। और एक बार नहीं अनेक बार आप आयेंगे तभी नया संस्कार पड़ेगा।
बिन सत्संग विवेक न होई।
राम कृपा बिन सुलभ न सोई
जब बहुकाल करे सत्संगा ,
तब होवे सब संशय ,भंगा।
हनुमान को अपनी भूली हुई शक्ति का स्मरण जामवंत न कराया था। वानर के रूप में ऋषियों के आश्रम में खुराफात मचाते थे ,वानर प्रवृत्ति थी। ऋषियों के शाप से हनुमान की शक्ति क्षीण हो गई। हनुमान जी ने क्षमा माँगी ऋषियों से कहा गलती हो गई ऋषियों ने कहा -ठीक है कोई याद दिलाएगा तो याद भी आ जाएगी।
गणपति ,विष्णु ,शिव ,पराम्बा आदि शक्ति ,सूर्यनारायण हम इन पांच प्रमुख देवों की उपासना बिम्ब रूप में भी और पिंडी रूप में भी होती है।
आप शैव हैं ,शौर हैं ,वैष्णव हैं या गाणपत्य माँ की आराधना तो आपको करनी ही पड़ेगी।माँ का उपासक शाक्त बनना ही पड़ेगा। षोडश संस्कारों में बालक का यगोपवीत संस्कार होता है जिसमें गायत्री मंत्र की सबसे पहले दीक्षा दी जाती है।
गायत्री माँ की ही उपासना है। विश्वामित्र ने शक्ति की उपासना की।
वशिष्ठ जी ने तो अपने बेटे का ही नाम शक्ति रख दिया। शक्ति के पराशर हुए पराशर के वेद व्यास।वेदव्यास के शुकदेव ,शुकदेव के गौड़पादाचार्य ,गौड़पादाचार्य के शंकराचार्य। सबके सबने माँ भगवती की उपासना की है।
श्रीमददेवीभागवद पुराण सतयुग का ग्रन्थ है इसीलिए आज इसकी चर्चा कम है। चर्चा श्रीकृष्ण की आज सबसे ज्यादा है क्योंकि वह द्वापर के देवता हैं और द्वापर को गए अभी कोई सवा पांच हज़ार साल ही तो हुए हैं। तो भी 'श्रीजी' के बिना ,राधा के बिना ,श्रीकृष्ण अधूरे हैं काले कलूटे ही रह जाते हैं।कृष्ण ही रह जाते हैं। राधा ने दी है उन्हें 'श्री ',राधा ने दी है उन्हें आभा। वृन्दावन में आपको रिक्शेवाला भी राधा -राधा कहते ही मिलेगा। कृष्ण तो अपने आप चले आते हैं पीछे पीछे।
इस सृष्टि की रचना देवी पराम्बा ने की अपनी (योग )माया से की थी
सकल पदार्थ हैं जग माहिं ,
कर्महीन कछु पावत नाहिं।
कथा सुनने तो आपको खुद ही आना पड़ेगा। इतना पुरुषार्थ (सेल्फ एफर्ट )तो आपको करना ही पड़ेगा। और एक बार नहीं अनेक बार आप आयेंगे तभी नया संस्कार पड़ेगा।
बिन सत्संग विवेक न होई।
राम कृपा बिन सुलभ न सोई
जब बहुकाल करे सत्संगा ,
तब होवे सब संशय ,भंगा।
हनुमान को अपनी भूली हुई शक्ति का स्मरण जामवंत न कराया था। वानर के रूप में ऋषियों के आश्रम में खुराफात मचाते थे ,वानर प्रवृत्ति थी। ऋषियों के शाप से हनुमान की शक्ति क्षीण हो गई। हनुमान जी ने क्षमा माँगी ऋषियों से कहा गलती हो गई ऋषियों ने कहा -ठीक है कोई याद दिलाएगा तो याद भी आ जाएगी।
गणपति ,विष्णु ,शिव ,पराम्बा आदि शक्ति ,सूर्यनारायण हम इन पांच प्रमुख देवों की उपासना बिम्ब रूप में भी और पिंडी रूप में भी होती है।
आप शैव हैं ,शौर हैं ,वैष्णव हैं या गाणपत्य माँ की आराधना तो आपको करनी ही पड़ेगी।माँ का उपासक शाक्त बनना ही पड़ेगा। षोडश संस्कारों में बालक का यगोपवीत संस्कार होता है जिसमें गायत्री मंत्र की सबसे पहले दीक्षा दी जाती है।
गायत्री माँ की ही उपासना है। विश्वामित्र ने शक्ति की उपासना की।
वशिष्ठ जी ने तो अपने बेटे का ही नाम शक्ति रख दिया। शक्ति के पराशर हुए पराशर के वेद व्यास।वेदव्यास के शुकदेव ,शुकदेव के गौड़पादाचार्य ,गौड़पादाचार्य के शंकराचार्य। सबके सबने माँ भगवती की उपासना की है।
श्रीमददेवीभागवद पुराण सतयुग का ग्रन्थ है इसीलिए आज इसकी चर्चा कम है। चर्चा श्रीकृष्ण की आज सबसे ज्यादा है क्योंकि वह द्वापर के देवता हैं और द्वापर को गए अभी कोई सवा पांच हज़ार साल ही तो हुए हैं। तो भी 'श्रीजी' के बिना ,राधा के बिना ,श्रीकृष्ण अधूरे हैं काले कलूटे ही रह जाते हैं।कृष्ण ही रह जाते हैं। राधा ने दी है उन्हें 'श्री ',राधा ने दी है उन्हें आभा। वृन्दावन में आपको रिक्शेवाला भी राधा -राधा कहते ही मिलेगा। कृष्ण तो अपने आप चले आते हैं पीछे पीछे।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें