सेकुलर पाखंड पर वागीश मेहता :
वोट बड़ा या देश ज़रूरी ,
बहस हो चाहे ,बुरी भली ,
राजनीति धंधे बाज़ों ने ,
फाड़ी लोकलाज चुनरी।
लूमड़ लक्क्ड़बग्घों ने मिल ,
रौंदी सारी रंग पुरी ,
किसकी बारी कब आजाए ,
मची हुई अफरा तफरी।
थुक्क्ड़ थूकें आसमान पर ,
अपने मुंह पर आन पड़ी ,
कम्युनल कौन कौन है सेकुलर ,
व्यर्थ विवादों में नगरी।
भारत भाव का सागर कम्युनल ,
सेकुलर है हिंसक मकड़ी।
(मगरमच्छ का स्त्रीलिंग मकड़ी । )
टिप्पणी :ये कविता बिहार के सेकुलर पाखंड को समर्पित है जहां महाठगिए दुर्योग से एक जगह आ गए हैं -लूमड़ लक्कड़बग्घे बन। हूप हूप करने वाले थुक्क्ड़ हैं ये सबके सब जो ईर्ष्याग्नि में झुलसते हुए मोदी मोदी करते हुए आसमान की और थूक रहें हैं।
सेकुलर पाखंड को समर्पित कविता पढ़िए डॉ. वागीश मेहता जी की :
लूमड़ लक्क्ड़बग्घों ने मिल ,
रौंदी सारी रंग पुरी
वोट बड़ा या देश ज़रूरी ,
बहस हो चाहे ,बुरी भली ,
राजनीति धंधे बाज़ों ने ,
फाड़ी लोकलाज चुनरी।
लूमड़ लक्क्ड़बग्घों ने मिल ,
रौंदी सारी रंग पुरी ,
किसकी बारी कब आजाए ,
मची हुई अफरा तफरी।
थुक्क्ड़ थूकें आसमान पर ,
अपने मुंह पर आन पड़ी ,
कम्युनल कौन कौन है सेकुलर ,
व्यर्थ विवादों में नगरी।
भारत भाव का सागर कम्युनल ,
सेकुलर है हिंसक मकड़ी।
(मगरमच्छ का स्त्रीलिंग मकड़ी । )
टिप्पणी :ये कविता बिहार के सेकुलर पाखंड को समर्पित है जहां महाठगिए दुर्योग से एक जगह आ गए हैं -लूमड़ लक्कड़बग्घे बन। हूप हूप करने वाले थुक्क्ड़ हैं ये सबके सब जो ईर्ष्याग्नि में झुलसते हुए मोदी मोदी करते हुए आसमान की और थूक रहें हैं।
सेकुलर पाखंड को समर्पित कविता पढ़िए डॉ. वागीश मेहता जी की :
लूमड़ लक्क्ड़बग्घों ने मिल ,
रौंदी सारी रंग पुरी
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें