ये कृष्ण हैं कौन भैया ?
राधा तू बड़ भागिनी ,कौन तपस्या कीन ,
तीन लोक तारण तरण ,सो तेरे आधीन।
राम यदि मर्यादा पुरुषोत्तम हैं तो कृष्ण ?
कृष्ण का चरित्र बड़ा अद्भुत है। कृष्ण शील ,सौंदर्य के ,माधुर्य और प्रेम के ,ज्ञान और विचार के देवता है ,दर्शन तत्व हैं।
उन जैसा कोई गुरु नहीं उन जैसा कोई शिष्य नहीं। उन जैसा कोई सारथी नहीं (दूसरा विश्वप्रसिद्ध सारथी कंस था। कंस भी सारथी था देवकी के रथ का। क्या किया था उसने देवकी के साथ जब आकाश से देव वाणी हुई थी मूर्ख जिसका तू रथ हाँक रहा है उसकी आठवीं संतान तेरा काल होगी ,सब जानते हैं ये वृत्तांत ).
उन जैसा कोई पिता नहीं उन जैसा कोई पुत्र नहीं मीत नहीं प्रेमी नहीं। तीन तीन माताएं हैं कृष्ण की एक देवकी ,दूसरी यशोदा और तीसरी पूतना। उसकी भी वह सद्गति करते हैं। माता का दर्जा देते हैं उसे भी यद्यपि वह स्तनाग्र पर कालकूट विष लगाकर उनके प्राण लेने आई थी।
माता गांधारी का अभिशाप भी वह सहर्ष स्वीकार करते हैं। एक बहेलिये के हाथों वह मारे जाते हैं और पूरा यदुवंश उनके सामने विनष्ट हो जाता है। द्वारका नगरी समुद्र में डूब जाती है। आज भी गूगल पे जाके एंशिएंट द्वारका टाइप करके एनटर करो -प्राचीन द्वारका के भव्य प्रासाद गोचर हो जाएंगे।
उन जैसा कोई यौद्धा नहीं। उन जैसा कोई योगी नहीं। सब कुछ पल भर में त्याग कर नष्टोमोहा हो जाते हैं। कृष्ण।
कृष्ण का अर्थ ही है जो सबको आकर्षित करे। यशोदा -यश दा हैं। सबको यश दिलवाती हैं जो भी उनके संपर्क में आता है। कृष्ण कुब्जा के सौंदर्य हैं इसलिए कहा गया -
यशोदा के लाल ,कंस के काल ,
बलि की सुतल नगरी के द्वारपाल।
सुदामा की संपत्ति ,सखु के सेवक ,
नानक के नूर ,नामदेव के विठ्ठला ,
शंकराचार्य के ब्रह्म ,कुब्जा के सौंदर्य।
राधा के प्राण ,ब्रज के दुलार।
कितने ही पर्यायवाची हैं कृष्ण के -गोविन्द जो गयियन(गायों )के इंद्र हैं ,इन्द्रियों को आकर्षित करते हैं। गोपाल गौओं के पालक है गोचारण लीला करने ही ब्रज में पधारते हैं। केशी राक्षस का दमन करते हैं इसीलिए केशव हैं। घुंघराले बाल होने की वजह से भी केशव कहाये हैं।
मधु राक्षस का वध करते हैं इसीलिए मधुसूदन हैं। मुर राक्षस का वध करते हैं इसलिए मुरारी हैं। मोक्ष प्रदाता हैं इसीलिए मुकुंद हैं। माधव यानी विष्णु रूप में सौभाग्य की देवी लक्ष्मी के पति हैं (धव माने धणी पति राजस्थानी डिंगल पिंगल में ,मा -सौभाग्य की देवी लक्ष्मी ).
कृष्ण के ज्यादातर नाम लीला मूलक हैं। रस्सी से बांधे जाते हैं यशोदा के हाथों इसलिए दामोदर हैं (दाम माने रस्सी ,उदर जिनका रस्सी से बांधा गया ).
अच्युत जो निष्पाप हैं सदैव ही ,अचूक हैं। गिरिधरण लीला करते हैं इसीलिए गिरधारी हैं। काम को जीत लेते हैं इसीलिए मदनमोहन हैं। मुरलीधर हैं -ओठों पे मुरली विराजती है जिनके। वंशीधर भी कहाये हैं राधा के।आदित्य हैं अदिति के। नंदनंदन ,देवकीनन्दन ,नंदलाल ,ऋषिकेश -बोले तो इन्द्रियों को नियंत्रित करने वाले। जनार्दन -जन जन के रक्षक . इंद्र के छोटे भाई उपेन्द्र हैं बावन रूप में।
महेंद्र बोले तो इंद्र के भी इंद्र। पार्थसारथी (पृथु /कुंती के पुत्र अर्जुन बोले तो पार्थ के सारथी ). वास है जिसका सर्वत्र वासुदेव। हमारी आत्मा कृष्ण का शरीर है। वह सर्वात्माओं का आत्मा है। कृष्ण और उसके शरीर में भेद नहीं हैं। यहां १०८ पर्यायवाची में से हमने कुछ लोकप्रिय नाम ही गिनाये हैं।
अनंत कोटि ब्राह्माण हैं उनमें अनंत कोटि अवतार हैं कृष्ण के मात्र २४ अवतार नहीं हैं जैसा कुछ लोग मान लेते हैं।
जैश्रीकृष्णा !
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