प्रकृति की व्यवस्था बड़ी विलक्षण है शेखर भाई। परमात्मा ने औरत को ज्यादा चैतन्य तत्व दिया है मर्दों की बनिस्पत। जानकारी पुरुष के पास ज्यादा है समझ महिला के पास इफरात में है। सिक्थ सेन्स (अतिरिक्त चैतन्य तत्व )की स्वामिनी है शतरूपा ।सुन्दर बनाया है अनेक रूपा नारी को ब्रह्मा जी ने। मनु जानकारी में अग्रणी हैं। महिला आँखों को देख के समझ लेती है बच्चे को पर्स चाहिए या नाश्ता ,पति को क्या चाहिए ,बूढ़े अशक्त माँ बाप को क्या चाहिए दवा या कुछ और।सामने वाली की आँखों में कहीं एंडोस्कोप तो नहीं लगा महिला भांप लेती है और तदनुरूप प्रतिक्रिया करती है।
पशु -पक्षी जगत में ब्रह्मा जी नर का मादा से ज्यादा सुंदर बनाया है मुर्गा कलगी पहने है ,मोर नृत्य करता है पंख खोल के। मोरनी कभी नहीं करती। शेर कभी शिकार को नहीं जाता है तब जाता है जब शेरनी गर्भ से होती है प्रसव के निकट होती है खान पान रसोई की व्यवस्था पशुजगत में भी मादा के हाथ में है और अगर पशुओं की मादा कहीं नर से ज्यादा सुंदर होती उसे अपना सतीत्व बचाना बड़ा मुश्किल हो जाता।
प्राणियों में मनुष्य ही वस्त्र पहनता है और मनुष्यों में भी कई नंगा बीच हैं यहां अमरीका में और अन्यत्र भी जहां लोग वस्त्र नहीं पहनते। कोई हिंस्र व्यवहार नहीं है। नंगापण आँखों में होता है देह में कहाँ।
परमहंस शुकदेव मुनि (व्यासदेव के पुत्र ) पूर्ण नग्न रहते थे -एक वस्त्र पर एक और वस्त्र क्या पहनना (देह वस्त्र ही तो है ).एक मर्तबा गोपियाँ यमुना में स्नान कर रहीं थीं शुकदेव महाराज वहां से गुज़रे गोपियों ने उन्हें मन ही मन प्रणाम किया वह शुकदेव जो देहभान से परे हैं । पीछे पीछे व्यासदेव आ रहे थे जैसे ही वह नज़दीक पहुंचे गोपियों ने अपने अंग ढ़क लिए -व्यासदेव ने पूछा मैं तो बूढ़ा आदमी हूँ जब मेरा युवा पुत्र गुज़रा तब तो तुमने ऐसा नहीं किया। बोलीं गोपी वह देहातीत थे उन्हें देखने पर हमें अपने स्त्री होने का भान ही नहीं हुआ। न उनके पुरुष होने का जब सामने से तुम आये तो हमने देखा एक पुरुष आ रहा है।
शेखर भाई ने सही कहा -शरीर हमारी आत्मा का वस्त्र है।
हमारी आत्मा परमात्मा का शरीर है। परमात्मा का शरीर और परमात्मा अलग अलग नहीं हैं। परमात्मा की हरेक चीज़ दिव्य है। इसीलिए प्रत्येक वेद से संबंद्ध किसी उपनिषद का एक महावाक्य है :
अहम ब्रह्मास्मि।
अयं आत्मा ब्रह्म।
सत्यम ज्ञानम् अनन्तं
पशु -पक्षी जगत में ब्रह्मा जी नर का मादा से ज्यादा सुंदर बनाया है मुर्गा कलगी पहने है ,मोर नृत्य करता है पंख खोल के। मोरनी कभी नहीं करती। शेर कभी शिकार को नहीं जाता है तब जाता है जब शेरनी गर्भ से होती है प्रसव के निकट होती है खान पान रसोई की व्यवस्था पशुजगत में भी मादा के हाथ में है और अगर पशुओं की मादा कहीं नर से ज्यादा सुंदर होती उसे अपना सतीत्व बचाना बड़ा मुश्किल हो जाता।
प्राणियों में मनुष्य ही वस्त्र पहनता है और मनुष्यों में भी कई नंगा बीच हैं यहां अमरीका में और अन्यत्र भी जहां लोग वस्त्र नहीं पहनते। कोई हिंस्र व्यवहार नहीं है। नंगापण आँखों में होता है देह में कहाँ।
परमहंस शुकदेव मुनि (व्यासदेव के पुत्र ) पूर्ण नग्न रहते थे -एक वस्त्र पर एक और वस्त्र क्या पहनना (देह वस्त्र ही तो है ).एक मर्तबा गोपियाँ यमुना में स्नान कर रहीं थीं शुकदेव महाराज वहां से गुज़रे गोपियों ने उन्हें मन ही मन प्रणाम किया वह शुकदेव जो देहभान से परे हैं । पीछे पीछे व्यासदेव आ रहे थे जैसे ही वह नज़दीक पहुंचे गोपियों ने अपने अंग ढ़क लिए -व्यासदेव ने पूछा मैं तो बूढ़ा आदमी हूँ जब मेरा युवा पुत्र गुज़रा तब तो तुमने ऐसा नहीं किया। बोलीं गोपी वह देहातीत थे उन्हें देखने पर हमें अपने स्त्री होने का भान ही नहीं हुआ। न उनके पुरुष होने का जब सामने से तुम आये तो हमने देखा एक पुरुष आ रहा है।
शेखर भाई ने सही कहा -शरीर हमारी आत्मा का वस्त्र है।
हमारी आत्मा परमात्मा का शरीर है। परमात्मा का शरीर और परमात्मा अलग अलग नहीं हैं। परमात्मा की हरेक चीज़ दिव्य है। इसीलिए प्रत्येक वेद से संबंद्ध किसी उपनिषद का एक महावाक्य है :
अहम ब्रह्मास्मि।
अयं आत्मा ब्रह्म।
सत्यम ज्ञानम् अनन्तं
जैश्रीकृष्णा !
एक प्रतिक्रिया परमप्रिय डॉ। शेखर जेमिनी जी की निम्न पोस्ट पर :
क्या कभी तुमने नग्नता देखी है...?
क्या कभी किसी का भी,
किसी भी रूप में,
स्थिति में,
अवस्था में,
उसकी पूर्ण नग्नता में दर्शन किया है...?
नहीं ना...?
^^^
जो देखा है, वो तो परिधान है.... वस्त्र हैं....
यदि शरीर को निर्वस्त्र देखा है,
तो भी परिधान ही तो देखा तुमने...
नग्नता के दर्शन कहाँ किये...?
^^^^^
क्या इतना करीब से अनुभव करने के बाद भी
अभी तक ये नहीं जान पाए
कि शरीर भी तो एक परिधान ही है...!
वस्त्र शरीर का परिधान हैं...
शरीर आत्मा का परिधान है...!
यदि आत्मा को देख सको तो ही
नग्नता के दर्शन संभव हो सकते हैं...
^^^^^^^
तब ही तुम्हे नग्नता में पहली बार
दिव्यता की झलक दिखलाई देगी...|
तब ही सही अर्थों में तुम अनुभव कर सकोगे कि
नग्नता ही परम दिव्यता है...
वस्तुतः दिव्यत्व की
प्रथम और अंतिम अनिवार्यता
केवल नग्नता ही है...!
क्योंकि सत्य की भी
प्रामाणिक रूप से
स्वाभाविक तथा प्राकृतिक अवस्था भी –
नग्नता ही है...!
और दिव्यत्व की अनुभूति
आत्मिक सत्यता के साक्षात्कार के बिना
कैसे संभव हो सकती है...?
^^^^^^^^^
आत्मा का दर्शन ही दिव्य है,
सत्य का दर्शन है...!
और सत्य का दर्शन –
उसकी पूर्ण नग्नता में ही संभव है....!
^^^^^^^^^^^
नग्नता और दिव्यता भिन्न नहीं हैं...
समानार्थी हैं,
पर्यायवाची हैं....
एक दूसरे के परिपूरक हैं....
अभिन्न हैं...
एकत्व के गुणधर्म से पूरित हैं..
^^^^^^^^^^^
और इसी से
अद्वैत हैं.....!!!
क्या कभी किसी का भी,
किसी भी रूप में,
स्थिति में,
अवस्था में,
उसकी पूर्ण नग्नता में दर्शन किया है...?
नहीं ना...?
^^^
जो देखा है, वो तो परिधान है.... वस्त्र हैं....
यदि शरीर को निर्वस्त्र देखा है,
तो भी परिधान ही तो देखा तुमने...
नग्नता के दर्शन कहाँ किये...?
^^^^^
क्या इतना करीब से अनुभव करने के बाद भी
अभी तक ये नहीं जान पाए
कि शरीर भी तो एक परिधान ही है...!
वस्त्र शरीर का परिधान हैं...
शरीर आत्मा का परिधान है...!
यदि आत्मा को देख सको तो ही
नग्नता के दर्शन संभव हो सकते हैं...
^^^^^^^
तब ही तुम्हे नग्नता में पहली बार
दिव्यता की झलक दिखलाई देगी...|
तब ही सही अर्थों में तुम अनुभव कर सकोगे कि
नग्नता ही परम दिव्यता है...
वस्तुतः दिव्यत्व की
प्रथम और अंतिम अनिवार्यता
केवल नग्नता ही है...!
क्योंकि सत्य की भी
प्रामाणिक रूप से
स्वाभाविक तथा प्राकृतिक अवस्था भी –
नग्नता ही है...!
और दिव्यत्व की अनुभूति
आत्मिक सत्यता के साक्षात्कार के बिना
कैसे संभव हो सकती है...?
^^^^^^^^^
आत्मा का दर्शन ही दिव्य है,
सत्य का दर्शन है...!
और सत्य का दर्शन –
उसकी पूर्ण नग्नता में ही संभव है....!
^^^^^^^^^^^
नग्नता और दिव्यता भिन्न नहीं हैं...
समानार्थी हैं,
पर्यायवाची हैं....
एक दूसरे के परिपूरक हैं....
अभिन्न हैं...
एकत्व के गुणधर्म से पूरित हैं..
^^^^^^^^^^^
और इसी से
अद्वैत हैं.....!!!
Shekhar Gemini
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें