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मुख में आ बैठा शैतान ,
वाणी पर जिन्ना का जिन्न ,
इनसे बचना मित्र अभिन्न।
(२)
घूम रहे ठग अपने अपने ,
ऐसा बना महाठगबंधन ,
भीतर से चित महामलिन।
(३)
तैतीस कोटि देव हैं साक्षी ,
चारा चोर घोटाले तैतीस ,
कथनी करनी इनकी भिन्न।
(४)
काश कहीं ऐसा न हो ,
जीत यदि न मिली साफ़ तो ,
रोयेंगे मिल दीन विपन्न।
(५)
तैतीस कोटि देव हैं साक्षी ,
चारा चोर घोटाले तैतीस ,
कथनी करनी भिन्नम -भिन्न।
डॉ। वागीश मेहता
१२१८ ,अर्बन इस्टेट
गुडगाँव ,हरियाणा ,१२२ ००१
भारत
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