'कांग्रेस का दिमागी बुखार है धारा -३७० 'जिसे कश्मीरियत की हत्या करके नेहरूजी ने लागू किया। नेहरू काश्मीर को गृहमंत्रालय का हिस्स्सा न मानकर विदेश नीति का अंग मानते थे। इस धारा के तहत मुजफ्फराबाद से आये पाकिस्तानियों को प्रॉपर्टी का हक़ दिया जा सकता है लेकिन काश्मीर से निष्काषित पंडितों को उनका हक़ नहीं दिया जा सका। उलटे इस धारा का इस्तेमाल करते हुए उन्हें काश्मीर से ही निष्काषित कर दिया गया।
जबकि घाटी। आज घाटी में उस भाषा का कोई नाम लेवा नहीं है। अरबी-फ़ारसी फ़ारसी के शब्दोंकी भरमार काश्मीरी भाषा को लील चुकी है। अलगाववादी ताकतें इसका विलय पाकिस्तान में करना चाहती आईं हैं इन्हें घियासुद्दीन गाज़ी उर्फ़ नेहरूज का आशीर्वाद प्राप्त है। का मुसलमान काश्मीरी पंडितों की ही औलाद है। काश्मीरी भाषा जिसकी लिपि शारदा लिपि संस्कृत से प्रभावित रही आई है धारा ३७० के तहत उसे अलग थलग करके उर्दू को घाटी में बिठाया गया। कवि कल्हण की राज -तरंगणी काश्मीरी भाषा की अप्रतिम कृति रही है.
एक समय काश्मीर की दीवारों पर लिखा गया था -पंडित यहां से चले जाएं अपनी पण्डिताइनों को यहीं छोड़ जाएं वे हमारे उपभोग के लिए हैं।
आज १३१ साला कांग्रेस न सिर्फ शरीर से ही जर्जर हो चुकी है दिमाग से भी दिमागी हो चुकी है ,बाइपोलर इलनेस से ग्रस्त है ,भ्रांत धारणाएं पाले हुए है ,दिमाग से खाली है। इसका अंत अब सन्निकट है। इसके प्रवक्ता चैनलों पर आकर लगातार वमन करते रहते हैं सुनते कुछ नहीं हैं चर्चा का मतलब इन्हें मालूम ही नहीं हैं। इनका मुख मलद्वार बन चुका है जिससे ये लगातार हगते रहते हैं। इन्हें न विषय की जानकारी होती है न इतिहास की। इनके आका नेहरू ये दिमागी बुखार धारा ३७० बो गए। काश्मीर को उद्योग और तरक्की से तो दूर रहना ही था क्योंकि इसके तहत ये पुख्ता किया गया -शेष भारत से कोई यहां आकर ज़मीन न खरीद सके -उद्योग न लगा सके।
पूछो इन अक्ल के अंधों से क्या नाव चलाकर काश्मीरी अपना पेट भर सकते हैं। पर्यटन को आतंकवाद हड़प गया। संस्कृति को धारा ३७० ,भाषा को उर्दू बचा क्या ?कांग्रेसियों की जुबां तराशी।
कश्मीरियत की सबसे बड़ी बाजू काश्मीरी भाषा -जिसे वह उर्दू निगल गई जो कभी पाकिस्तान की भी जुबान नहीं रही। जहां सिंध प्रदेश में सिंधी ,पंजाबी सूबे में पंजाबी बोली जाती है। बांग्लादेश में बांग्ला जो पाकिस्तान की धींगामुश्ती और आर्थिक शोषण के चलते पाक से अलग हुआ
मतिमंद शहजादे को कभी घाटी के किसी गाँव में आकर भी रुकना चाहिए। भेजें अपनी अम्मा को भी वह देखें कैसा भदेस हो गया है पृथ्वी का यह स्वर्ग जहां गरीबी के बे -शुमार टापू हैं। मेहरूमियत है ,प्रवंचनाएं हैं।
बतलाते चलें आपको काश्मीर के सबसे बड़े दुश्मन घाटी के मुसलमान ही हैं। एक हुर्रियत की बात नहीं हैं जो इस्लाम और अरबी इस्लाम की बात करते हैं वह ही कश्मीरियत के सबसे बड़े दुश्मन हैं।
पूछा जा सकता है इस्लाम का कश्मीरियत से क्या ताल्लुक है। जबकि यहां मूलतया पंडितों का कुनबा ही इस्लाम की चादर में लिपटा हुआ अपने बाप दादाओं को ही बे -दखल करता आया है इस्लाम के नाम पर।
जबकि घाटी। आज घाटी में उस भाषा का कोई नाम लेवा नहीं है। अरबी-फ़ारसी फ़ारसी के शब्दोंकी भरमार काश्मीरी भाषा को लील चुकी है। अलगाववादी ताकतें इसका विलय पाकिस्तान में करना चाहती आईं हैं इन्हें घियासुद्दीन गाज़ी उर्फ़ नेहरूज का आशीर्वाद प्राप्त है। का मुसलमान काश्मीरी पंडितों की ही औलाद है। काश्मीरी भाषा जिसकी लिपि शारदा लिपि संस्कृत से प्रभावित रही आई है धारा ३७० के तहत उसे अलग थलग करके उर्दू को घाटी में बिठाया गया। कवि कल्हण की राज -तरंगणी काश्मीरी भाषा की अप्रतिम कृति रही है.
एक समय काश्मीर की दीवारों पर लिखा गया था -पंडित यहां से चले जाएं अपनी पण्डिताइनों को यहीं छोड़ जाएं वे हमारे उपभोग के लिए हैं।
आज १३१ साला कांग्रेस न सिर्फ शरीर से ही जर्जर हो चुकी है दिमाग से भी दिमागी हो चुकी है ,बाइपोलर इलनेस से ग्रस्त है ,भ्रांत धारणाएं पाले हुए है ,दिमाग से खाली है। इसका अंत अब सन्निकट है। इसके प्रवक्ता चैनलों पर आकर लगातार वमन करते रहते हैं सुनते कुछ नहीं हैं चर्चा का मतलब इन्हें मालूम ही नहीं हैं। इनका मुख मलद्वार बन चुका है जिससे ये लगातार हगते रहते हैं। इन्हें न विषय की जानकारी होती है न इतिहास की। इनके आका नेहरू ये दिमागी बुखार धारा ३७० बो गए। काश्मीर को उद्योग और तरक्की से तो दूर रहना ही था क्योंकि इसके तहत ये पुख्ता किया गया -शेष भारत से कोई यहां आकर ज़मीन न खरीद सके -उद्योग न लगा सके।
पूछो इन अक्ल के अंधों से क्या नाव चलाकर काश्मीरी अपना पेट भर सकते हैं। पर्यटन को आतंकवाद हड़प गया। संस्कृति को धारा ३७० ,भाषा को उर्दू बचा क्या ?कांग्रेसियों की जुबां तराशी।
कश्मीरियत की सबसे बड़ी बाजू काश्मीरी भाषा -जिसे वह उर्दू निगल गई जो कभी पाकिस्तान की भी जुबान नहीं रही। जहां सिंध प्रदेश में सिंधी ,पंजाबी सूबे में पंजाबी बोली जाती है। बांग्लादेश में बांग्ला जो पाकिस्तान की धींगामुश्ती और आर्थिक शोषण के चलते पाक से अलग हुआ
मतिमंद शहजादे को कभी घाटी के किसी गाँव में आकर भी रुकना चाहिए। भेजें अपनी अम्मा को भी वह देखें कैसा भदेस हो गया है पृथ्वी का यह स्वर्ग जहां गरीबी के बे -शुमार टापू हैं। मेहरूमियत है ,प्रवंचनाएं हैं।
बतलाते चलें आपको काश्मीर के सबसे बड़े दुश्मन घाटी के मुसलमान ही हैं। एक हुर्रियत की बात नहीं हैं जो इस्लाम और अरबी इस्लाम की बात करते हैं वह ही कश्मीरियत के सबसे बड़े दुश्मन हैं।
पूछा जा सकता है इस्लाम का कश्मीरियत से क्या ताल्लुक है। जबकि यहां मूलतया पंडितों का कुनबा ही इस्लाम की चादर में लिपटा हुआ अपने बाप दादाओं को ही बे -दखल करता आया है इस्लाम के नाम पर।
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