'कभी सुदर्शन चक्र खिलेगा'
अब जबकि पुरूस्कार लौटाने वाले लौटंकी दिखलाकर बड़े खुश हैं , कौरव द्रुपदसुता रुपी संसद का चीरहरण करने पर आमादा हैं ,राष्ट्र ठगा सा महसूस करता है ,राष्ट्र के आहत मन को आश्वस्त करती है डॉ वागीश की यह रचना :
'कभी सुदर्शन चक्र खिलेगा'
-डॉ.वागीश मेहता ,१२१८ ,सेक्टर ४ ,अर्बन इस्टेट ,गुडगाँव ,हरियाणा
चार उचक्के चालीस चोर , घन घमंड गर्जन है घोर ,
किसी और की बात न सुनते ,आसंदी की तरफ लपकते.
(१)
खड़खड़ करता दुश्शासन है ,बेबस द्रुपदसुता संसद है ,
एक इंच भी नहीं हटूंगा ,दुर्योधन का अड़ियलपन है ,
गांधारी मुस्काती मन मन ,धृतराष्ट्र है खूब मगन।
(२ )
शोर शोर में कितनी मस्ती ,तर्क नियम की क्या है हस्ती ,
मन मारे अब विदुर मौन हैं ,मौन पितामह द्रौण मौन हैं ,
शकुनि ने फेंके हैं पासे ,सबकी अटक गईं हैं साँसें।
(३)
न्याय पीठ पर चोट करन्ते ,लोकलाज और शील के हन्ते ,
राष्ट्र समूचा स्तब्ध मना है ,एक आस विश्वास घना है ,
कभी सुदर्शन चक्र चलेगा ,और शांति का कमल खिलेगा।
'कभी सुदर्शन चक्र खिलेगा'
-डॉ.वागीश मेहता ,१२१८ ,सेक्टर ४ ,अर्बन इस्टेट ,गुडगाँव ,हरियाणा
चार उचक्के चालीस चोर , घन घमंड गर्जन है घोर ,
किसी और की बात न सुनते ,आसंदी की तरफ लपकते.
(१)
खड़खड़ करता दुश्शासन है ,बेबस द्रुपदसुता संसद है ,
एक इंच भी नहीं हटूंगा ,दुर्योधन का अड़ियलपन है ,
गांधारी मुस्काती मन मन ,धृतराष्ट्र है खूब मगन।
(२ )
शोर शोर में कितनी मस्ती ,तर्क नियम की क्या है हस्ती ,
मन मारे अब विदुर मौन हैं ,मौन पितामह द्रौण मौन हैं ,
शकुनि ने फेंके हैं पासे ,सबकी अटक गईं हैं साँसें।
(३)
न्याय पीठ पर चोट करन्ते ,लोकलाज और शील के हन्ते ,
राष्ट्र समूचा स्तब्ध मना है ,एक आस विश्वास घना है ,
कभी सुदर्शन चक्र चलेगा ,और शांति का कमल खिलेगा।
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