तुष्टिकरण के नाम पर विघटनवादी राजनीति की इंतिहा
अब इस देश में तीज त्योहारों की बात करना भी कांग्रेस साम्प्रादायिक होना बतला रही है।आप रक्षाबंधन पे यदि एक सामन्य बात यह कह दें कि बहन बेटियों को तोहफे में दीजिये एक रुपैया बीमा योजना तो सोनिया के उकसाने पर गुलाम नबी आज़ाद फट कह देंगे प्रधानमन्त्री रमजान की मुबारकबाद तो देते नहीं हैं रक्षाबंधन की बात करते हैं। इतना बुरा हाल तो मोहम्मद अली जिन्ना के समय भी इस देश का नहीं था जब महात्मा गांधी सरे आम रामराज्य की बात करते थे। किसी ने उन्हें सांप्रदायिक नहीं कहा। ये कांगेस के शासन में ही होता है कबीर के दोहे -कांकर पाथर जोरि के मस्जिद लई चिनॉय ....,तथा दिन में रोज़ा रखत हैं रात हनत हैं गाय 'को … पाठ्यक्रम से निकाल दिया जाता है। रामधुन पर शताब्दी एक्सप्रेस में पाबंदी लगती है। तुष्टिकरण की राजनीति कमीनगी के इस स्तर तक पहुंचेगी सोनिया के रहते क्या वे अपनी सास के पिता की तरह हिन्दू मुस्लिम लाइन पर इस देश का एक और बंटवारा करवाना चाहतीं हैं ?आखिर क्या है उनकी मंशा जो गुलामनबी आज़ाद जैसे मुसलमानों को उकसा रहीं हैं रमजान को मुद्दा बनाके। क्या हो रहा है अफगानिस्तान और दुनिया भर की और मस्जिदों में गुलाम नबी आज़ाद नहीं जानते क्या ?कत्ले आम !या कुछ और। मस्जिदों को खूनी बनाके रख दिया है। और आप भारतीय तीज त्योहारों की बात पे नाक भौं सिकोड़ रहे हैं।हद है बेशर्मी की। कुटिल हंसी देखिये गुलाम नबी आज़ाद की और सोनिया की आनुषांगिक मुस्कराहट भी।
अब इस देश में तीज त्योहारों की बात करना भी कांग्रेस साम्प्रादायिक होना बतला रही है।आप रक्षाबंधन पे यदि एक सामन्य बात यह कह दें कि बहन बेटियों को तोहफे में दीजिये एक रुपैया बीमा योजना तो सोनिया के उकसाने पर गुलाम नबी आज़ाद फट कह देंगे प्रधानमन्त्री रमजान की मुबारकबाद तो देते नहीं हैं रक्षाबंधन की बात करते हैं। इतना बुरा हाल तो मोहम्मद अली जिन्ना के समय भी इस देश का नहीं था जब महात्मा गांधी सरे आम रामराज्य की बात करते थे। किसी ने उन्हें सांप्रदायिक नहीं कहा। ये कांगेस के शासन में ही होता है कबीर के दोहे -कांकर पाथर जोरि के मस्जिद लई चिनॉय ....,तथा दिन में रोज़ा रखत हैं रात हनत हैं गाय 'को … पाठ्यक्रम से निकाल दिया जाता है। रामधुन पर शताब्दी एक्सप्रेस में पाबंदी लगती है। तुष्टिकरण की राजनीति कमीनगी के इस स्तर तक पहुंचेगी सोनिया के रहते क्या वे अपनी सास के पिता की तरह हिन्दू मुस्लिम लाइन पर इस देश का एक और बंटवारा करवाना चाहतीं हैं ?आखिर क्या है उनकी मंशा जो गुलामनबी आज़ाद जैसे मुसलमानों को उकसा रहीं हैं रमजान को मुद्दा बनाके। क्या हो रहा है अफगानिस्तान और दुनिया भर की और मस्जिदों में गुलाम नबी आज़ाद नहीं जानते क्या ?कत्ले आम !या कुछ और। मस्जिदों को खूनी बनाके रख दिया है। और आप भारतीय तीज त्योहारों की बात पे नाक भौं सिकोड़ रहे हैं।हद है बेशर्मी की। कुटिल हंसी देखिये गुलाम नबी आज़ाद की और सोनिया की आनुषांगिक मुस्कराहट भी।
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