आज की शाम भरतनाट्यम और कथ्थक के नाम हो गई। स्थान था नै दिल्ली का परिवास केंद्र (India Habitat Center).भरतनाट्यम प्रस्तुत किया डॉ संध्या पुरेचा ने और कथ्थक की कलाकारा थीं आलमी स्तर पर नामचीन नलिनी - कमलनी . नृत्य और संगीत रचनाऐं थीं (Dance Choreography and Music) गुरुजितेंद्र महाराज जी की। प्रायोजक संस्था थी 'ओजस्विनी '(राजस्थान अकादमी एवं संगीतिका ).
अलावा इसके मुंबई से पधारीं भरतनाट्यम की युवतर अदाकाराएं गीतगोविन्दम् नृत्यनाटिका के माध्यम से श्रृंगार के विरह पक्ष को साकार करने में कामयाब रहीं। राधा का रूठना और कृष्ण का मनाना अध्यात्म के स्पंदनों से पूरित रहा।
नलिनी कमलनी की जुगलबंदी ने कथा के नए आयाम छूए। इस परिसर में मुझे पूर्व में भी सोनाल मानसिंह और शोभना नारायण की अप्रतिम प्रस्तुतियाँ देखने का सौभाग्य मिलता रहा है। लेकिन आज के कार्यक्रम की और बात थी।
सारा प्रस्तुतिकरण अपनी भाषा में साहित्यिक तेवर लिए रहा। गोवा की राज्यपाल मृदुला सिन्हां मुख्यअतिथि ज़रूर थीं लेकिन उनकी सांस्कृतिक टिप्पणियाँ बे -जोड़ थीं सहज और अपनी सी।
अपनी सी भाषा साहित्यिक तेवर के साथ प्रस्तुतियों को कवित्तमय बनाये रही।
पहली मर्तबा नृत्य नर्तिकी दर्शक -श्रोता को एक दूसरे में विलीन होते देखा। जैसे राधा में कृष्ण और कृष्ण में राधा रहतें हैं अद्वैत भाव लिए वैसे ही संगीत -नृत्य की अन्विति अप्रतिम थी। वायलिन -तबला -और वोकलिस्ट पूनक निगम गुरु जीतेन्द्र के कथ्थक के बोल नलिनी -कमलनी की आध्यात्मिक व्याख्या ,दर्शक के प्रति उनकी पूर्ण प्रतिबद्धता बे -मिसाल थी। एक अलग शाम थी ये कृष्ण और राधा के अद्वैत को समझाती ,बनारस की कजरी और कथ्थक को एकरस करती सी।
यहां तबला अपने तरीके से नृत्य रत था वायलिन अपने।
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