पंडित नाथू राम गोडसे के तर्पण पर (सुदर्शन टीवी पर प्रसारित कविता ):
जिस धरती ने विश्वगुरु बन वसुधा का उद्धार किया ,
कालान्तर में कुछ यवनों ने उस पर ही अधिकार किया।
ब्रह्मसूत्र फेंके जाते थे लाल -लाल अंगारों पर ,
जिसने तिलक लगाया उसकी गर्दन थी तलवारों पर ,
यवनों से मुक्ति पाई तो अंग्रेज़ों पर अटक गए ,
जैसे आसमान से टपके और खजूर पर लटक गए।
कारतूस में अंग्रेज़ों के द्वारा चर्बी भरने पर ,
भारत का सोया पौरुष जागा गऊ माता के मरने पर ,
मातृभूमि पर महासमर से महासमर का बिगुल बजा ,
मंगलपांडे की फांसी से रणचंडी बनकर
निकली लक्ष्मीबाई भी झांसी से ,
मातृभूमि पर पुन : गुलामी का जब संकट गहराया ,
तब भारत माँ का बेटा अफ्रिका से वापस आया।
सत्य अहिंसा का व्रतधारी तीव्र वेग की आंधी था ,
आज़ादी का सपना पाले वह व्यक्ति महात्मा गाँधी था।
गांधी जी तो गोरों से आज़ादी का दम भरते थे ,
इसीलिए शेखर सुभाष भी उनका आदर करते थे।
माना गांधी ने कष्ट सही थे अपनी पूरी निष्ठा से,
और भारत प्रख्यात हुआ है उनकी अमर प्रतिष्ठा से।
लेकिन दोस्तों -जहां पर दो अमृत मिलते हैं वहां क्या होता है ?
सत्य अहिंसा कभी कभी अपनों पर ही ठन जाता है ,
'घी' और 'शहद' अमृत हैं पर मिलकर के विष बन जाता है.
गांधी को विश्वास नहीं था कभी क्रान्ति की पीढ़ी पर ,
धीरे -धीरे बापू चढ गये अहंकार की सीढ़ी पर।
तुष्टिकरण के खूनी खंजर घौंप रहे थे गांधी जी ,
अपने सारे निर्णय हम पर थोप रहे थे गांधी जी।
महाक्रांति का हर नायक तो उनके लिए खिलौना था,
उनके हट के आगे जम्बू द्वीप हमारा बौना था।
निरपेक्ष धरम के प्याले में, विष पीना हमको सीखा दिया ,
दो चांटे खाकर बेशर्मी से जीना सीखा दिया।
इसीलिए भारत अखंड ,भारत अखंड का दौर गया ,
भारत से पंजाब सिंध रावलपिंडी लाहौर गया।
तब जाकर के सफल हुए ज़ालिम जिन्ना के मंसूबे ,
गांधी जी अपनी ज़िद में पूरे भारत को ले डूबे।
भारत के इतिहास कार से चाटुकार दरबारों में
अपना सब कुछ बेच चुके थे नेहरू के परिवारों में।
जब भारत को टुकड़े टुकड़े करने की तैयारी थी ,
तब नाथू ने गांधी के सीने पर गोली मारी थी।
ये स्वराज परिणाम नहीं है गांधी के आंदोलन का,
इन यज्ञों का हव्य बनाया शेखर ने पिस्टल गन का।
लाल लहू से अमर फसल ये तब जाकर लहराई है ,
सात लाख लोगों के प्राण गए तब ये आज़ादी पाई है ।
और गांधी जी को एक प्रतीक देने की कोशिश करता हूँ :
हिन्दू अरमानों की जलती एक चिता थे गांधीजी ,
कौरव का साथ निभाने वाले भीष्म पिता थे गांधीजी।
भगत सिंह की फांसी दो पल में ही रुकवा सकते थे ,
आप चाहते तो इरविन को भी झुकवा सकते थे।
इस भारत के तीन लाडले लटक गए तब फंदों से ,
भारत माता हार गई अपने घर के जयचंदों से।
मंदिर में पढ़कर कुरआन तुम विश्व विजेता बने रहे ,
ऐसा करके मुस्लिम जनमानस के नेता बने रहे।
एक नवल गौरव करने की हिम्मत तो करते बापू ,
मस्जिद में गीता पढ़ने की हिम्मत तो करते बापू।
गांधीजी का प्रेम अमर था केवल चाँद सितारे से
उसका फल हम सब ने पाया भारत के बंटवारे से।
गांधी ने नेहरू को दे दी चाबी शासन सत्ता की ,
लेकिन पीड़ा देख न पाए श्रीनगर कलकत्ता की।
रेलों में हिन्दू काट -काट के भेज रहे पाकिस्तानी ,
टोपी के लिए दुखी थे पर चोटी की एक नहीं मानी।
सत्य अहिंसा का ये नाटक बस केवल हिन्दू पर था ,
उस दिन नाथू के महाक्रोध का पानी सर से ऊपर था।
गया प्रार्थना सभा में गांधी को करने अंतिम प्रणाम ,
ऐसी मारी गोली उनको याद आ गए श्री -राम।
जिनकी भूलों के कारण भारत के हिन्दू छले गए ,
वे बापू हे राम बोलकर देवलोक को चले गए।
नाथू ने अपनी मातृभूमि को सब कुछ अर्पण कर डाला ,
गांधी का वध करके अपना आत्मसमर्पण कर डाला।
अब हमें क्या करना है ?युवा कवि का आवाहन देखिये -
आज़ादी के बंद रहस्यों का उद्यापन करना है ,
नाथू के इस अमर सत्य का अब सत्यापन करना है।
मूक अहिंसा के कारण भारत का आँचल फट जाता ,
गांधी जीवित होते तो फिर देश दोबारा बंट जाता।
गांधी जीवित होते तो फिर देश दोबारा बंट जाता।
अरे अहिंसा के कारण क्या सेना को भी चकवा दे क्या
या सीमा से शस्त्र हटाकर के चरखे रखवा दें क्या ?
थक गए हैं हम प्रखर (तत्व )तथ्य की अर्थी को ढ़ोते -ढ़ोते ,
कितना अच्छा होता जो नेताजी राष्ट्र पिता होते।
धर्म परायण -ता का सिंधु घोर चरम पर आएगा ,
जनगण मन से अधिक प्रेम जब वन्देमातरम पर आएगा।
उसी दिवस ये दुनिया हमको सम्प्रदायी बतलाती है ,
राष्ट्रभक्त की पराकाष्ठा राष्ट्रद्रोह हो जाती है।
नाथू को फांसी लटकार गांधी जी को न्याय मिला
और मेरी भारत माँ को बंटवारे का अध्याय मिला।
लेकिन जब -जब कोई भीष्म कौरव का साथ निभाएगा ,
तब -तब कोई अर्जुन उन पर रण में तीर चलाएगा।
जिन्ना ने रेलों में भेजा था अंश हमारी बोटी का ,
नाथू ने सम्मान बचाया सबकी चंदन और चोटी का
अगर गोडसे की गोली उतरी न होती सीने में ,
हर हिन्दू पढता नमाज़ फिर मक्का और मदीने में।
नाथू की रख्खी अस्थि अब तलक प्रवाहित नहीं हुई ,
उनकी अस्थि प्रतीक्षा करती सिंधु के पावन जल की ,
उसके लिए जरूरत हमको श्रीराम के संबल की।
इससे पहले अस्थि कलश को सिंधु की लहरें सींचे ,
पूरा पाक समाहित कर लो भगवा झंडे के नीचे।
संदर्भ -सामिग्री :
(१ )https://www.youtube.com/watch?v=nuFrmXynE7U
(२)
जिस धरती ने विश्वगुरु बन वसुधा का उद्धार किया ,
कालान्तर में कुछ यवनों ने उस पर ही अधिकार किया।
ब्रह्मसूत्र फेंके जाते थे लाल -लाल अंगारों पर ,
जिसने तिलक लगाया उसकी गर्दन थी तलवारों पर ,
यवनों से मुक्ति पाई तो अंग्रेज़ों पर अटक गए ,
जैसे आसमान से टपके और खजूर पर लटक गए।
कारतूस में अंग्रेज़ों के द्वारा चर्बी भरने पर ,
भारत का सोया पौरुष जागा गऊ माता के मरने पर ,
मातृभूमि पर महासमर से महासमर का बिगुल बजा ,
मंगलपांडे की फांसी से रणचंडी बनकर
निकली लक्ष्मीबाई भी झांसी से ,
मातृभूमि पर पुन : गुलामी का जब संकट गहराया ,
तब भारत माँ का बेटा अफ्रिका से वापस आया।
सत्य अहिंसा का व्रतधारी तीव्र वेग की आंधी था ,
आज़ादी का सपना पाले वह व्यक्ति महात्मा गाँधी था।
गांधी जी तो गोरों से आज़ादी का दम भरते थे ,
इसीलिए शेखर सुभाष भी उनका आदर करते थे।
माना गांधी ने कष्ट सही थे अपनी पूरी निष्ठा से,
और भारत प्रख्यात हुआ है उनकी अमर प्रतिष्ठा से।
लेकिन दोस्तों -जहां पर दो अमृत मिलते हैं वहां क्या होता है ?
सत्य अहिंसा कभी कभी अपनों पर ही ठन जाता है ,
'घी' और 'शहद' अमृत हैं पर मिलकर के विष बन जाता है.
गांधी को विश्वास नहीं था कभी क्रान्ति की पीढ़ी पर ,
धीरे -धीरे बापू चढ गये अहंकार की सीढ़ी पर।
तुष्टिकरण के खूनी खंजर घौंप रहे थे गांधी जी ,
अपने सारे निर्णय हम पर थोप रहे थे गांधी जी।
महाक्रांति का हर नायक तो उनके लिए खिलौना था,
उनके हट के आगे जम्बू द्वीप हमारा बौना था।
निरपेक्ष धरम के प्याले में, विष पीना हमको सीखा दिया ,
दो चांटे खाकर बेशर्मी से जीना सीखा दिया।
इसीलिए भारत अखंड ,भारत अखंड का दौर गया ,
भारत से पंजाब सिंध रावलपिंडी लाहौर गया।
तब जाकर के सफल हुए ज़ालिम जिन्ना के मंसूबे ,
गांधी जी अपनी ज़िद में पूरे भारत को ले डूबे।
भारत के इतिहास कार से चाटुकार दरबारों में
अपना सब कुछ बेच चुके थे नेहरू के परिवारों में।
जब भारत को टुकड़े टुकड़े करने की तैयारी थी ,
तब नाथू ने गांधी के सीने पर गोली मारी थी।
ये स्वराज परिणाम नहीं है गांधी के आंदोलन का,
इन यज्ञों का हव्य बनाया शेखर ने पिस्टल गन का।
लाल लहू से अमर फसल ये तब जाकर लहराई है ,
सात लाख लोगों के प्राण गए तब ये आज़ादी पाई है ।
और गांधी जी को एक प्रतीक देने की कोशिश करता हूँ :
हिन्दू अरमानों की जलती एक चिता थे गांधीजी ,
कौरव का साथ निभाने वाले भीष्म पिता थे गांधीजी।
भगत सिंह की फांसी दो पल में ही रुकवा सकते थे ,
आप चाहते तो इरविन को भी झुकवा सकते थे।
इस भारत के तीन लाडले लटक गए तब फंदों से ,
भारत माता हार गई अपने घर के जयचंदों से।
मंदिर में पढ़कर कुरआन तुम विश्व विजेता बने रहे ,
ऐसा करके मुस्लिम जनमानस के नेता बने रहे।
एक नवल गौरव करने की हिम्मत तो करते बापू ,
मस्जिद में गीता पढ़ने की हिम्मत तो करते बापू।
गांधीजी का प्रेम अमर था केवल चाँद सितारे से
उसका फल हम सब ने पाया भारत के बंटवारे से।
गांधी ने नेहरू को दे दी चाबी शासन सत्ता की ,
लेकिन पीड़ा देख न पाए श्रीनगर कलकत्ता की।
रेलों में हिन्दू काट -काट के भेज रहे पाकिस्तानी ,
टोपी के लिए दुखी थे पर चोटी की एक नहीं मानी।
सत्य अहिंसा का ये नाटक बस केवल हिन्दू पर था ,
उस दिन नाथू के महाक्रोध का पानी सर से ऊपर था।
गया प्रार्थना सभा में गांधी को करने अंतिम प्रणाम ,
ऐसी मारी गोली उनको याद आ गए श्री -राम।
जिनकी भूलों के कारण भारत के हिन्दू छले गए ,
वे बापू हे राम बोलकर देवलोक को चले गए।
नाथू ने अपनी मातृभूमि को सब कुछ अर्पण कर डाला ,
गांधी का वध करके अपना आत्मसमर्पण कर डाला।
अब हमें क्या करना है ?युवा कवि का आवाहन देखिये -
आज़ादी के बंद रहस्यों का उद्यापन करना है ,
नाथू के इस अमर सत्य का अब सत्यापन करना है।
मूक अहिंसा के कारण भारत का आँचल फट जाता ,
गांधी जीवित होते तो फिर देश दोबारा बंट जाता।
गांधी जीवित होते तो फिर देश दोबारा बंट जाता।
अरे अहिंसा के कारण क्या सेना को भी चकवा दे क्या
या सीमा से शस्त्र हटाकर के चरखे रखवा दें क्या ?
थक गए हैं हम प्रखर (तत्व )तथ्य की अर्थी को ढ़ोते -ढ़ोते ,
कितना अच्छा होता जो नेताजी राष्ट्र पिता होते।
धर्म परायण -ता का सिंधु घोर चरम पर आएगा ,
जनगण मन से अधिक प्रेम जब वन्देमातरम पर आएगा।
उसी दिवस ये दुनिया हमको सम्प्रदायी बतलाती है ,
राष्ट्रभक्त की पराकाष्ठा राष्ट्रद्रोह हो जाती है।
नाथू को फांसी लटकार गांधी जी को न्याय मिला
और मेरी भारत माँ को बंटवारे का अध्याय मिला।
लेकिन जब -जब कोई भीष्म कौरव का साथ निभाएगा ,
तब -तब कोई अर्जुन उन पर रण में तीर चलाएगा।
जिन्ना ने रेलों में भेजा था अंश हमारी बोटी का ,
नाथू ने सम्मान बचाया सबकी चंदन और चोटी का
अगर गोडसे की गोली उतरी न होती सीने में ,
हर हिन्दू पढता नमाज़ फिर मक्का और मदीने में।
नाथू की रख्खी अस्थि अब तलक प्रवाहित नहीं हुई ,
उनकी अस्थि प्रतीक्षा करती सिंधु के पावन जल की ,
उसके लिए जरूरत हमको श्रीराम के संबल की।
इससे पहले अस्थि कलश को सिंधु की लहरें सींचे ,
पूरा पाक समाहित कर लो भगवा झंडे के नीचे।
संदर्भ -सामिग्री :
(१ )https://www.youtube.com/watch?v=nuFrmXynE7U
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