कभी अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस होने का गौरव प्राप्त पार्टी आज चार आदमियों की पार्टी बन के रह गई है। कहलाने लगी है दामाद -बेटा -बेटी और अम्मा पार्टी । इन चारों को हटाकर देखो सिफर रह जाएगा कांग्रेस बचेगी क्या ?
ये कैसा दुर्भाग्य है इस नाम शेष होती पार्टी का इसे अपने युगपुरुषों का जयंती शताब्दी वर्ष भी ठीक से मनाना नहीं आता। आपके घर कोई आता है आप उसे सबसे पहले बैठक में बिठाते हैं ,'ड्राइंग' दिखलाते है अपनी ,कांग्रेसी अपने मेहमान को सबसे पहले अपना 'शौचालय' दिखलाते हैं। जबकि कई राज्यों में चुनाव सिर पर है ये असहिषुणता की याद दिला रहे हैं इसी भरम में कि फिर कोई पुरूस्कार लौटनिया अशोक बाजपाई आएगा।
कोई भी पढ़ा लिखा व्यक्ति इंदिराजी के योगदान को ही इस मौके पर याद करता न कि आपद काल के काले दिनों की याद ताज़ा करता। लेकिन कांग्रसियों को ये ही तो नहीं मालूम कहाँ क्या बोलना चाहिए।
इंदिरा प्रियदर्शनी नेहरू के जन्म के सौंवें साल में याद करते तो उनका शौर्य याद करते ,उनके शासन में सेना का पराक्रम याद करते लेकिन ये इन्टॉलरेंस याद दिलाते हैं आज की सरकार को इन्टॉलरेंट बतलाकर।
इंदिरा जी ने तो व्यक्ति से उसके जीने का मौलिक अधिकार भी छीन लिया था -गंगाजी के घाट पर एक आदमी स्नान करने के बाद 'नारायण -नारायण जाप 'कर रहा था -इनकी सरकार का आदेश हुआ इसे गिरफ्तार कर लो यह जयप्रकाश नारायण का नाम ले रहा है।
ये एक मिसाल भर है उस दौर की -कितनी किताबें प्रबंधित और ज़ब्त हुईं उस दौर में इसे दोहराने की ज़रुरत नहीं है।
मत कहो आकाश पर कोहरा घना है ,
यह किसी की व्यक्तिगत आलोचना है।
एक गुड़िया की कई कठपुतलियों में जान है ,
आज शाइर ये तमाशा देख कर हैरान है।
इस पार्टी में कुछ भी नहीं तब्दील होता ,ये हादसों से कोई सबक नहीं लेती। उन्हें हवा देती है।
ये कैसा दुर्भाग्य है इस नाम शेष होती पार्टी का इसे अपने युगपुरुषों का जयंती शताब्दी वर्ष भी ठीक से मनाना नहीं आता। आपके घर कोई आता है आप उसे सबसे पहले बैठक में बिठाते हैं ,'ड्राइंग' दिखलाते है अपनी ,कांग्रेसी अपने मेहमान को सबसे पहले अपना 'शौचालय' दिखलाते हैं। जबकि कई राज्यों में चुनाव सिर पर है ये असहिषुणता की याद दिला रहे हैं इसी भरम में कि फिर कोई पुरूस्कार लौटनिया अशोक बाजपाई आएगा।
कोई भी पढ़ा लिखा व्यक्ति इंदिराजी के योगदान को ही इस मौके पर याद करता न कि आपद काल के काले दिनों की याद ताज़ा करता। लेकिन कांग्रसियों को ये ही तो नहीं मालूम कहाँ क्या बोलना चाहिए।
इंदिरा प्रियदर्शनी नेहरू के जन्म के सौंवें साल में याद करते तो उनका शौर्य याद करते ,उनके शासन में सेना का पराक्रम याद करते लेकिन ये इन्टॉलरेंस याद दिलाते हैं आज की सरकार को इन्टॉलरेंट बतलाकर।
इंदिरा जी ने तो व्यक्ति से उसके जीने का मौलिक अधिकार भी छीन लिया था -गंगाजी के घाट पर एक आदमी स्नान करने के बाद 'नारायण -नारायण जाप 'कर रहा था -इनकी सरकार का आदेश हुआ इसे गिरफ्तार कर लो यह जयप्रकाश नारायण का नाम ले रहा है।
ये एक मिसाल भर है उस दौर की -कितनी किताबें प्रबंधित और ज़ब्त हुईं उस दौर में इसे दोहराने की ज़रुरत नहीं है।
मत कहो आकाश पर कोहरा घना है ,
यह किसी की व्यक्तिगत आलोचना है।
एक गुड़िया की कई कठपुतलियों में जान है ,
आज शाइर ये तमाशा देख कर हैरान है।
इस पार्टी में कुछ भी नहीं तब्दील होता ,ये हादसों से कोई सबक नहीं लेती। उन्हें हवा देती है।
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