ॐ मंगलम ओंकार मंगलम ,
शिव मंगलम सोमवार मंगलम।
काल मंगलम महाकाल मंगलम ,
व्याल मंगलम चंद्रपाल मंगलम।
उमा मंगलम ,उज्जैन मंगलम ,
देव मंगलम महादेव मंगलम।
ज्ञान मंगलम शिव -ज्ञान मंगलम,
शिव मंगलम शिव ज्ञान मंगलम ,
मान मंगलम अभिमान मंगलम।
भूत मंगलम भूतनाथ मंगलम ,
मुक्ति मंगलम मुक्ति - नाथ मंगलम।
कुम्भ का माहात्म्य :देवासुर संग्राम हुआ गरुण अमृत कलश (कुम्भ )को लेकर
भागा।पुराण बतलाते हैं यह देवासुर संग्राम कथा।
अधगगरी जल छलकत जाइ
कुम्भ से अमृत छलक कर चार स्थानों पर गिरा।चारों तीर्थ बन गए।
देवासुर संग्राम आज भी हमारे अंदर चल रहा है हर व्यक्ति अमृत चाहता है सुख चाहता है ,अमृत चाहता है। उसमें शुभ विचार भी हैं अशुभ भी।
लेकिन अमृत पीने के बाद भी देव और असुर दोनों अशांत रहे क्योंकि देव धोखा-धड़ी करके तथा राक्षस छीनाझपटी करके अमृत पीना चाहते हैं।
ये संघर्ष बाहरी नहीं है अंदर का है हमारे अंदर का देव बोलता है कुछ दान करो ,पुण्य कमाओ ,असुर कहता है पैसा कमाओ जैसे भी हो ,झूठ बोलकर ,बे -ईमानी करके। देव और असुर दो वृत्तियाँ हैं दोनों हमारे अंदर हैं ,अरूप रावण की तरह आसुरी वृताइयाँ डेरा डाले हुए हैं। राम की तरह देव -वृत्तियाँ भी।
सच बात ये हैं उस घड़े में अमृत था ही नहीं।
अमृत हर घड़े में है।
न शेष नाग के फन में है ,न चन्द्रमा में है ,न सुंदरी के अधरों पर है न समुन्द्र में है।
होता तो शेष नाग में जहर क्यों होता ,चाँद में दाग क्यों होता ,सुंदरी का पति क्यों
मरता ,सागर खारा क्यों होता?
अमृत निकलता है संतों के कंठ से संतों के घट से संतों की वाणी से।
हम सब मृत के लिए जी रहें हैं ,मृत के लिए ही सारी मारा- मारी कर रहें हैं।मर जा रही है मृत के लिए। सारे सुख साधन मृत हैं जिन्हें एक दिन मौत छीन लेती है। पद- प्रतिष्ठा को भी और जिनके लिए हमने जीवन खपाया था वह सब का सब भी यहीं रह जाता है।
यहां आएं हैं अमृत पान करने के लिए
"तव कथा अमृतं तत्व जीवनम ,
श्रवण मंगलम ...... "
यह कथा ही अमृत है जो जगह- जगह छलक रही है जहां जिसको अच्छा लगता है उसका पान करो। मेघनाद ने लक्ष्मण जी को मूर्छित कर दिया। प्रभु रो रहें हैं प्रभु के आंसू लक्ष्मण के मुंह पर गिर रहें हैं।
मेघनाद काम के प्रतीक हैं लक्ष्मण ने तो नींद को भी जीत लिया था। काम से मूर्छित लक्ष्मण को भगवान भी नहीं जिला सकते। कोई हनुमान ही चाहिए ,भगत चाहिए जो संजीवनी लाये।
अगर संसार का कोई साधारण जीव काम से मूर्छित हो जाए तो प्रभु का नाम प्रभु कहते खुद कहते हैं :मेरा सुमिरन मेरा आशीर्वाद किसी साधारण व्यक्ति की मूर्छा को दूर कर सकता है। लेकिन लक्ष्मण चोबीस घंटे जागृत हैं ,असाधारण हैं उन्हें काम (मेघनाद )मूर्छित कर दे तो भगवान भी कुछ नहीं कर सकते। हनुमान ही कुछ कर सकते हैं।संजीवनी हनुमान जैसे संत ही ला सकते हैं फिर।
मोक्ष प्राप्त करने का इस कलिकाल में यदि कोई साधन है तो वह कथा है। मन का मैल, योग और प्राणायाम से दूर नहीं होता है। राम का नाम राम कथा ही वह साबुन है जो मन का कचरा निकाल सकती है।
कलि -मल ,मनो -मल धौ देती है कथा
कथा सुनिए आपको पाप छोड़के चले जायेंगे। कुछ नहीं करना पड़ेगा ,नाम रस मिलेगा तो न निंदा- रस रास भायेगा न काम -रस रास आएगा।
मनसा वाचा कर्मणा तीनों प्रकार के पाप जो हमने किये थे ,वे हमें छोड़कर चले जाएंगे ,वो जो हमारे कंधे पे सवार थे। कथामंडप से ही अपना थैला उठाकर भाग जाएंगे।
श्रवण पहला चरण है मोक्ष का। आखिरी भी श्रवण ही है। जो सुनता वह शांत रहता है बड़ा हो जाता है। देवताओं ने कथा नहीं सुनी वे छोटे रह गए। माँ घर में सबकी सुनती है सबसे बड़ी हो जाती है।
सुनी महेश परमसुख मानी
कथा सुनके महादेव हो गए शिव
सुख कहते हैं सांसारिक वस्तुओं का ,और परम जहां लग जाता है वह सुख परमात्मा से जुड़ जाता है उसका नैकट्य मिल जाता है कथा से। शिव सुनते हैं कथा प्रेम से। सारे तीर्थ कथा सुन ने चले आते हैं। वहीँ बस जाते हैं। वह स्थान ही तीर्थ हो जाता है जहां कथा होती है।
इस कथा को स्वयं भगवान् भी सुनते हैं। नारद जी ने एक बार भगवान् से पूछा प्रभु कहाँ मिलोगे -गंगा धाम आ जाना ,कथा सुन ने जा रहा हूँ ,वहीँ मिलूंगा।
इस कथा का वैज्ञानिक महत्व भी है कैसे ये परिणाम दिखाती है ?
शरीर विज्ञान है यह :
जो भी हम मुंह से सटकते हैं वह हमारे मल के द्वार से बाहर निकलता है जो कानों से सटकते हैं वही मुंह से निकलता है संसार की ,राजनीति की, समाज की भोग की ,जो भी बातें कानों से अंदर ले जाओगे ,वही मुंह पर आएगी। ओंठों पर खेलेंगी दिन भर।
जो भी हम सुनते हैं वस्तु या किसी विषय के बारे में वो वस्तु वह व्यक्ति,वह विषय हमारे मन में बस जाता है।
हनुमान कथा इसका प्रमाण हैं। हनुमान जी निरंतर कथा सुनते हैं।
संदर्भ -सामिग्री :
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