बिना किसी आधार के बिना किसी तर्क के और बिना किसी तथ्य के कुछ लोगों के द्वारा ये दुष्प्रचार किया जा रहा है कि भारत में असहिषुणता बढ़ रही है। यदि हमला करने वाले हाथ को रोका जाता है तो उन्हें लगता है कि यह असहिष्णुता है। निंदा और गाली देने वाले का यदि प्रतिकार किया जाता है ,तो यह आरोप लगाया जाता है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को बाधित किया अजा रहा है। दुष्प्रचार को रोकना और किये जा रहे अपव्यवहार को सहन न करना यदि असहिषुणता है तो ऐसी असहिषुणता पूरे भारत में व्याप्त होनी चाहिए। स्वाभिमान की रक्षा करना देश की रक्षा करना है। इस प्रकार के दुष्प्रचार करने वाली ज़मातों में ज्यादातर तो मार्क्सवादी बौद्धिक गुलाम हैं ,कुछ जिहादी तबियत के तास्सुबी लोग हैं जो मंदिर के घंटे घड़ियालों और गुरुद्वारों की अरदास को अपनी मानसिक शान्ति भंग करने का आरोप लगाते हैं। इन घंटियों और अर्दासों से उन्हें ध्वनि प्रदूषण जैसा लगता है किन्तु अपनी लम्बी तानों में बेसुरी आवाज़ को बहिश्त की सीढ़ी समझते हैं।
ये वो लोग हैं जो अपने से दूसरे विशवास के व्यक्ति में कुफ्र देखते हैं ,और उसे काफ़िर कहते हैं। इनके पीछे वो लोग खड़े हैं जिन्होनें जुल्म करने का भी औचित्य ढूंढ लिया है। वे अपने आपको इतिहासकार कहते हैं। कोई रोमिला थापर है तो कोई इरफ़ान हबीब है तो कोई फणिकर है ,ये औरंगज़ेब के द्वारा ढाए गए जुल्मों में तसबी फेरने की पवित्रता देखते हैं। इन्हीं लोगों ने जिन्ना को पाकिस्तान बनाने के गुर सिखाए थे। चीनी हमले को मुक्ति सेना का नाम दिया था। और भारतीय सेना को हमलावर कहा था। चीन जब जब अरुणाचल पर अपना हक़ जमाता है तब तब इनके चेहरे खिल उठते हैं। इन्होने सुभाष चंद बोष को तोजो का कुत्ता कहा था और जवाहरलाल नेहरू को साम्राज्यवादी एजेंट। अभी ग़ाँधीजी की भी प्रतिष्ठा गिराने में ये कई तर्क देते रहे। इन सब जमातों को आगे करके नेहरू वंशी कांग्रेस की अध्यक्षा श्रीमती सोनिया मायनो शांत भारत में कौन सा खूनी खेल खेलना चाहती है।अपने शासन काल के कुछ ही दिनों में भारतीय अध्यात्म के शिखर पुरुष श्री शंकराचार्य को गिरिफ्तार करके जेल में भिजवाने वाली श्री मती सोनिया मायनो को जब ये देश बर्दाश्त कर रहा है तो फिर असहिषुणता कहाँ से आ गई।
ये वो लोग हैं जो अपने से दूसरे विशवास के व्यक्ति में कुफ्र देखते हैं ,और उसे काफ़िर कहते हैं। इनके पीछे वो लोग खड़े हैं जिन्होनें जुल्म करने का भी औचित्य ढूंढ लिया है। वे अपने आपको इतिहासकार कहते हैं। कोई रोमिला थापर है तो कोई इरफ़ान हबीब है तो कोई फणिकर है ,ये औरंगज़ेब के द्वारा ढाए गए जुल्मों में तसबी फेरने की पवित्रता देखते हैं। इन्हीं लोगों ने जिन्ना को पाकिस्तान बनाने के गुर सिखाए थे। चीनी हमले को मुक्ति सेना का नाम दिया था। और भारतीय सेना को हमलावर कहा था। चीन जब जब अरुणाचल पर अपना हक़ जमाता है तब तब इनके चेहरे खिल उठते हैं। इन्होने सुभाष चंद बोष को तोजो का कुत्ता कहा था और जवाहरलाल नेहरू को साम्राज्यवादी एजेंट। अभी ग़ाँधीजी की भी प्रतिष्ठा गिराने में ये कई तर्क देते रहे। इन सब जमातों को आगे करके नेहरू वंशी कांग्रेस की अध्यक्षा श्रीमती सोनिया मायनो शांत भारत में कौन सा खूनी खेल खेलना चाहती है।अपने शासन काल के कुछ ही दिनों में भारतीय अध्यात्म के शिखर पुरुष श्री शंकराचार्य को गिरिफ्तार करके जेल में भिजवाने वाली श्री मती सोनिया मायनो को जब ये देश बर्दाश्त कर रहा है तो फिर असहिषुणता कहाँ से आ गई।
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