रविवार, 1 नवंबर 2015

हम जो कुछ मन के धरातल पर हो रहा है उसे ही जीवन माने बैठे हैं।जीवन तो बाहर घटित हो रहा है। हम अपने विचारों को अर्जित अधूरे अस्पष्ट ज्ञान को अपने अस्तित्व से भी बड़ा मान ने की भूल किये हुए हैं। हमने कुछ मोर्चे संभाल लिए जो इस विचार सरणी की ही उपज हैं। और ये खुद से खुद की बेहूदा बातचीत हमारे जीवन से हमारे प्रत्यक्ष अनुभवों से बड़ी हो गई है। इसीलिए हम अशांत है ,थिर हैं ,भ्रमित हैं ,स्ट्रेस में हैं। हमारी गति रुक गई है ,विकास रुक गया है। भौतिक सुख सुविधा जुटा लेना विकास नहीं है।


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We are suffering because of our memory retained by our tiny brains  which is a small fraction of our vast genetic memory .The genetic apparatus of each cell of our body remembers even the color of the skin of our distant past ancestors .And we are not even aware of this vast reservoir of genetic memory and that little memory retained by the brain of events related to the past and of our past experiences  is eating our present  moments .We are not deleting those unpleasant things .We are refreshing those unpleasant memories each day and want to settle the score .with our opponents .We are suffering because of this memory . 

We are suffering because of our projections which relates to the future .All our emotions has a definite chemistry .Pleasure has a different chemistry from pain .Bliss has a different chemistry .Our body on a micro-scale ,the internal apparatus of our body has a very complex chemistry .We do not know the inner mechanism which run this great soup of our anatomy .

Our present perception is good enough for our survival but not good enough to transcend our limitations ,our physical boundaries .We are only looking outwards without knowing the inner life sciences in us .We have to enhance this perception to know the inner Self .Know this peace of life which is You .

Confidence without clarity is disaster for which there is no management .If I do not know something ,I do not know that .I must admit that .Then only seeking will begin .

Life does not happen in your mind .This thought on which I am focused is not significant than the rest of the universe .For us our thoughts have become more important than our existence .We have taken positions that have become bigger than we ourselves.We have chosen wrong identities of caste color ,nation ,religion and we consider ourselves the best of all other identities.

We are suffering our intelligence related to the outside world .

चार हिस्से हैं ,घटक हैं हमारी मेधा के - बुद्धि ,चित अहंकार और चित्त। हम पहले हिस्से पर ही रुक गए हैं। बाहरी जगत की जानकारी पर ही अटक गए हैं। चित यानी याददाश्त हमारी हमें खा रही है। व्यतीत को ,जो बीत गया ,हम संजोके रखे हैं।डिलीट नहीं करते इस जंक को ,इस्पेम को सम्भाल के बैठे हैं। 

 किसी के द्वारा दस बरस पहले कही गई कोई कटु बात हमें आज भी याद है।हमारे दुःख का कारण बाहर नहीं है ,हम इसे अपने संबंधों के मत्थे  मढ़  रहे हैं।असली याददाश्त का तो हमें  इल्म ही नहीं है। हरेक बॉडी सेल हमारी ,प्रत्येक कोशिका हमारी पूरी वंशावलियाँ का पुराण छिपाए हुए हैं। हमारे पूर्वजों की चमड़ी का रंग भी। स्पर्श से छूकर जानते हैं हम इस जगत को ,संबंधों को। हम पृथ्वी  का ही एक टुकड़ा हैं  जो अन्न हम लेते हैं वह हमारा हिस्सा ही हो जाता है। और फिर यह हिस्सा एक दिन वापस पृथ्वी  ही हो जाता है।किसी से जब हम जैविक तौर पर जुड़ते हैं दैहिक प्रेम करते हैं हम वैसा ही हो जाना चाहते हैं उसे अपना हिस्सा हम बना भी लेते हैं पर बस कुछ पलों के लिए। ये जो कुछ है -पूरी कायनात में ,नीहारिकाओं में हम ही हैं। परस्पर सम्पृक्त। बस हम अपने को जान ले। समझ लें के जीवन का प्रवाह अंदर की ओर है। हम स्वयं अनंत संभावनाएं लिए हैं। आनंद हम ही हैं। बाहर भ्रांतियां  हैं कथित इंटेलिजेंस है। 

कल क्या होगा हम इसे लेकर चिंतित हैं। कल जो हो चुका हम उससे दुखी हैं। हम भीतर नहीं देख पा रहे हैं। क्योंकि हमारी ज्ञानेन्द्रियाँ बहिर्मुखी हैं -आँख ,कान ,नाक ,मुंह ,चमड़ी बाहर की और है। बाहर देख रहीं हैं। इसीलिए हमारा नज़रिया मोतिया ग्रस्त है। 

हम जो कुछ मन के धरातल पर हो रहा है उसे ही जीवन माने बैठे हैं।जीवन तो बाहर घटित हो रहा है। हम अपने विचारों को अर्जित अधूरे अस्पष्ट ज्ञान को अपने अस्तित्व से भी बड़ा मान ने की भूल किये हुए हैं। हमने कुछ मोर्चे संभाल लिए जो इस विचार सरणी की ही उपज हैं। और ये खुद से खुद की बेहूदा बातचीत हमारे जीवन से हमारे प्रत्यक्ष अनुभवों से बड़ी  हो गई है। इसीलिए हम अशांत है ,थिर हैं ,भ्रमित हैं ,स्ट्रेस में हैं। हमारी गति रुक गई है ,विकास रुक गया है। भौतिक सुख सुविधा जुटा लेना विकास नहीं है। 

एक प्रतिक्रिया सदगुरु के प्रवचन पर जो डाउन टाउन डेट्रायट के मैसनरी टेम्पिल में दिया गया :

Virendra Sharma और Amit Saini ने Gunjan Sharma-Saini की पोस्ट साझा की.

Gunjan Sharma-Saini ने 4 नई फ़ोटो जोड़ी — Amit Saini और Sonica Rehan-Beniwal के साथ भाग्‍यशाली महसूस कर रहा है.
In is the only way out! Know thyself & engineer your inner faculties! Delightful session with Sadhguru in Detroit

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