डॉ. वागीश मेहता की लम्बी कविता दूसरी और अंतिम किश्त
तौबा तौबा तौबा तौबा ,आप -बाप की तौबा तौबा
(१)
वह तूं तूं था अब 'आप' बना ,
संगी साथी का बाप बना ,
कद बढ़ा चढ़ा जिन कन्धों पर ,
उनके सिर का संताप बना ।
कई दन्तुल खबरी आन मिले ,
कई 'संजू' 'सिसोद ''कुमार " घने ,
यह गिरोह भयंकर रूप धरे ,
अब तो बस हरिहर लाज रखे।।
(२ )
अब जंतर मंत्र मंच बना ,मिलकर रचा प्रपंच घना ,
एक बलि मानवी लेनी थी ,धर नाम किसानी कहनी थी।
दौसा सुत गजेन्द्र छबीला था ,सजधज पगड़ी गर्वीला था ,
अब इसे गिरोह ने फांस लिया ,रजनेता बनेगा झांसा दिया ।।
बस लटक वृक्ष पर चढ़ना है ,मरने का नाटक करना है ।
वे उन झांसों से छले गए ,अब तो बस हरिहर लाज रखे ॥।
(३)
वह देहाती सीधा सादा था ,न भांप सका वह इरादा था ।
वह नाटक जिसको समझा था ,उसके जीवन का फंदा था ॥
नीचे से बजती ताली थी ,जो शोर शराबे वाली थी ।
कुछ सम्भले के पाँव फिसल गया ,और सचमुच में वह लटक गया ॥
भाषण के भौंपू बजते थे ,वे दांत निपोरे हँसते थे ।
पटकथा गुप्त थे कई चेहरे ,अब तो बस हरिहर लाज रखे ॥
(४)
पटना वालों से यारी है ,भीतर से धुक धुक जारी है ।
कहीं भेद नहीं खुल जाए कभी ,बस यही चिंता ही सारी है ॥
हाय होगी कैसी मजबूरी ,फिर तिहाड़ कितनी दूरी ।
सब किया धरा रह जाएगा ,मुंह पर कोयला पुत जाएगा ॥
ये सोच सोच डर लगता है ,सब जगह गजिंदर दिखता है ॥
साथ में दिल्ली की 'खाकी ',एनजीओ नहीं कोई साथी ।
कब तक सच छिपाए रखें ,अब तो बस हरिहर लाज रखे ॥
(५)
।
हैं शिथिल प्राण ऊर्जा भर दो ,हे प्रभु अराजक को बल दो ॥
हे नमो तुम्हीं ऐसा कर दो ,खाली झोली मेरी भर दो ।
बस दिल्ली पुलिस हवाले कर दो ,फिर नए उत्पात का कौशल दो ॥
ये 'भारती ' जय विजय करे ,अब तो बस हरिहर लाज रखे।
तौबा तौबा तौबा तौबा ,आप -बाप की तौबा तौबा ॥
विशेष : अराजक केजरीवाल की करतूतों से प्रेरित है रचना ,इसमें सचमुच
के पात्र भरे ,
चिह्नांकित इनको तुम करना ,अपना इसमें अब क्या कहना।
वीरेन्द्र शर्मा (वीरुभाई )
तौबा तौबा तौबा तौबा ,आप -बाप की तौबा तौबा
(१)
वह तूं तूं था अब 'आप' बना ,
संगी साथी का बाप बना ,
कद बढ़ा चढ़ा जिन कन्धों पर ,
उनके सिर का संताप बना ।
कई दन्तुल खबरी आन मिले ,
कई 'संजू' 'सिसोद ''कुमार " घने ,
यह गिरोह भयंकर रूप धरे ,
अब तो बस हरिहर लाज रखे।।
(२ )
अब जंतर मंत्र मंच बना ,मिलकर रचा प्रपंच घना ,
एक बलि मानवी लेनी थी ,धर नाम किसानी कहनी थी।
दौसा सुत गजेन्द्र छबीला था ,सजधज पगड़ी गर्वीला था ,
अब इसे गिरोह ने फांस लिया ,रजनेता बनेगा झांसा दिया ।।
बस लटक वृक्ष पर चढ़ना है ,मरने का नाटक करना है ।
वे उन झांसों से छले गए ,अब तो बस हरिहर लाज रखे ॥।
(३)
वह देहाती सीधा सादा था ,न भांप सका वह इरादा था ।
वह नाटक जिसको समझा था ,उसके जीवन का फंदा था ॥
नीचे से बजती ताली थी ,जो शोर शराबे वाली थी ।
कुछ सम्भले के पाँव फिसल गया ,और सचमुच में वह लटक गया ॥
भाषण के भौंपू बजते थे ,वे दांत निपोरे हँसते थे ।
पटकथा गुप्त थे कई चेहरे ,अब तो बस हरिहर लाज रखे ॥
(४)
पटना वालों से यारी है ,भीतर से धुक धुक जारी है ।
कहीं भेद नहीं खुल जाए कभी ,बस यही चिंता ही सारी है ॥
हाय होगी कैसी मजबूरी ,फिर तिहाड़ कितनी दूरी ।
सब किया धरा रह जाएगा ,मुंह पर कोयला पुत जाएगा ॥
ये सोच सोच डर लगता है ,सब जगह गजिंदर दिखता है ॥
साथ में दिल्ली की 'खाकी ',एनजीओ नहीं कोई साथी ।
कब तक सच छिपाए रखें ,अब तो बस हरिहर लाज रखे ॥
(५)
।
हैं शिथिल प्राण ऊर्जा भर दो ,हे प्रभु अराजक को बल दो ॥
हे नमो तुम्हीं ऐसा कर दो ,खाली झोली मेरी भर दो ।
बस दिल्ली पुलिस हवाले कर दो ,फिर नए उत्पात का कौशल दो ॥
ये 'भारती ' जय विजय करे ,अब तो बस हरिहर लाज रखे।
तौबा तौबा तौबा तौबा ,आप -बाप की तौबा तौबा ॥
विशेष : अराजक केजरीवाल की करतूतों से प्रेरित है रचना ,इसमें सचमुच
के पात्र भरे ,
चिह्नांकित इनको तुम करना ,अपना इसमें अब क्या कहना।
वीरेन्द्र शर्मा (वीरुभाई )
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