शनिवार, 22 अगस्त 2015

गीता कृष्ण का विज्ञान है जीवन की धड़कन है संन्यास की ओर नहीं जैसा की लोग अक्सर सोच लेते हैं कर्म की ओर ले जाता है

डलैस  ग्रीन ,अपस्केल अपार्टमेंट्स  ,वर्जीनिया का अल्पप्रवास मेरे लिए कई मायनों में अप्रतिम रहा है। यहां मेरी बेटी की ननद और नन्दोऊ  रहते हैं। ननद का पूरा परिवार एक यूनिट की तरह दिखलाई दिया। सब कुछ सीखने अपनाने को आतुर। और आगत स्वागत में आला। रोज़ एक ख़ास दिन रहा इस अल्प प्रवास  में। कभी आलू -पूरी तो कभी मूंग की दाल के बड़े घर में ही बड़े जतन से तैयार किये गए तो कभी काजू काली मिर्च ,जायफल ,तेज़पत्ता ,दालचीनी ,लॉन्ग की लोडिंग वाले बासमती चावल । 

हर सब्ज़ी का स्वाद निराला काबली चना तो सर चढ़के बोलने लगा था। सबसे बड़ी बात जिसने दिल छू लिया मन को -ननद  के बेटे का ललक के चहक के जैश्रीकृष्णा कहना था। जिसने प्रणाम और   बाई -बाई का स्थान छीन लिया था। दो रोज़ ही तो मैंने उसे सुबह सवेरे बिस्तर छोड़ने के बाद जैश्रीकृष्णा एंड गुड मॉर्निंग बोला था। बच्चे वही सीखते हैं अनुकरण करते हैं जो वह देखते सुनते हैं। जो हम उन्हें सिखाना चाहते हैं।

किसी भी चीज़ को सीखने की कोई उम्र तय नहीं है। क्या कल आपको इल्म था आपका दो साल का बच्चा कंप्यूटर  सावी हो जाएगा। स्मार्ट फोन्स पर गेम्स खेलेगा।   आईपैड और टेबलेट का माहिर होगा।

लेकिन जब किसी धार्मिक ग्रन्थ के वाचन श्रवण की बात होती है तो कई  परिवारों में माँ बाप ही मुंह चढ़ाने सिकोड़ने  लगते हैं विरोध करते हैं अपने ही वैदिक ग्रंथों की चर्चा का।  पढ़ने की तो कौन कहे। मैंने कई ऐसी मम्मियों को देखा है जिन्हें घर में किसी बुजुर्ग द्वारा सहेज के एकत्र किये गए ग्रन्थ भी बोझा लगते हैं। नाक भौं सिकोड़ने लगतीं हैं बस इतना कहने की देर है कल को ये पढ़ेंगे यदि घर में देखेंगे इन ग्रंथों को तब ही तो पढ़ेंगे । इन्हीं के लिए संजोया गया है इस विरासत को जबकि ग्रन्थ सचित्र एवं मॉडर्न प्रिंट्स में   नामचीन प्रकाशनों के ही खरीदें गए थे।  बच्चों को खासतौर पर  केंद्र में रखके   ही खरीदे गए थे घर के  अधुनातन बुजुर्गों द्वारा।

अरे इन्हें कहाँ टाइम मिलेगा ये अपना सिलेबस ही पढ़ लें तो बहुत है आगे आगे होम वर्क ही बढ़ता जाएगा पगला देगा इन्हें वही कर ले तो बहुत इनके लिए । यानी इन मम्मियों के  दिमाग के कपाट पूरी तरह बंद दिखलाई देते हैं।देखिये आज बच्चे को मम्मियां स्केटिंग के लिए भी समय और धन मुहैया  करवाएंगी जुडो कराते के लिएभी ,इस समर कैम्प के लिए उस समर कैम्प के लिए । स्मार्ट फोन्स और टेबलेट के लिए भी। लेकिन एक संतुलन नए और पुराने का आधुनिक और परम्परा का इन्हें रास नहीं आता।

मुंबई प्रवास के दौरान मेरी दुआ सलाम उस हलवाई से भी हुई जो नेवी नगर के हमारे  कैम्पस में ही दूकान चलाता था। मैं उन दिनों रेडिओ क्लब  मुम्बई के निकट एक ब्रह्माकुमारीज़ केंद्र पर सुबह सवेरे जाता था क्लास के लिए। ठीक उसी समय वह दूकान खोलने के लिए जाता था,रास्ते में भेंट होती थी ओमशांति के अभिवादन के साथ । सफ़ेद वस्त्रों में वह मुझे देखता था। ओम शान्ति और गुड मॉर्निंग कहते भी ।  पता चला उसके दो बेटे जो अहमदाबाद में पढ़ते थे इस और रुझान रखते थे। वह मेरे से कहने लगा लड़के बिगड़ तो नहीं जाएंगे ओम शान्ति वालों के संग । मैंने पूछा कहाँ रहते हैं अहमदाबाद में जवाब मिला हॉस्टल में। मैंने कहा ये तो बहुत अच्छी बात है तुम्हारे दोनों बेटे जो आईटी प्रवीण होने जा रहे हैं अच्छे संस्कार के साथ आगे बढ़ रहें हैं।वरना हॉस्टल में तरह तरह के व्यसन भी लग जाते हैं सावधान रहना पड़ता है।  थोड़ा आश्वस्त दिखलाई  दिया चेहरे का खिंचाव तनाव थोड़ा सा कम हुआ।  आगे बढ़ गया पीछे देखता हुआ।

ढक्कन हमारे दिमाग  का ही बंद होता है बच्चे तो सब कुछ सीखना चाहते हैं।

 जैश्रीकृष्णा।

विशेष :आप कहेंगे कृष्णा ही क्यों ?कृष्णा पर्सनेलिटी आफ गॉड हेड हैं । स्प्रिचुअल मंत्रिमंडल के मुखिया हैं। शेष देवता (गोड्स ,गुरूज़ )इनका मंत्रिमंडल है। गीता (श्रीमदभगवद गीता )का सार ही कृष्ण भक्ति है। जो भी उसके लिए करोगे वह कर्म बन जायेगा ,जो सोचेगे वह ज्ञान तथा दोनों से प्राप्त आनंद ही कृष्ण की भक्ति है। भगवान  का एक नाम आनंद ही है (सच्चिदानंद -सत् +चित्+आनंद ,Existence infinite ,Knowledge infinite ,Bliss infinite ).सिर्फ एटीट्यूड बदलना है वही करो जो करते हो ,करते रहे हो ,बस अब ये सोच के करो ये मैं कृष्ण  के लिए कर रहा हूँ। इस कर्म का जो भी फल मिलेगा उससे मैं संतुष्ट रहूँगा ,वही मेरे लिए प्रसाद है।  जो  आकर्षित करे ,आकर्षित करता है सबको ,वही कृष्ण है। क्लिष्ट बातें नहीं हैं भगवद गीता में। भगवद या भागवद का मतलब ही है जो भगवान का है वही भागवद है। भागवद्गीता  भगवान का गीत है।

एक महत्वपूर्ण बात और अक्सर लोगों को भ्रम रहता है गीता या अन्य कोई धर्मग्रन्थ श्रवण मनन कीर्तन आदि रिटायर्ड लोगों के निमित्त हैं जबकि गीता कृष्ण का विज्ञान है जीवन की धड़कन है संन्यास की  ओर  नहीं जैसा की लोग अक्सर सोच लेते हैं कर्म की  ओर ले जाता है। अर्जुन गीता के शुरू में ही (अर्जुन विषाद योग )सन्यासियों जैसी बातें करने लगता है  क्षत्रीय  होते हुए  बातें अहिंसा की करने लगता है जबकि क्षत्रीय का पहला कर्तव्य धर्मकी रक्षा है वर्णाश्रम धर्म है यानी अपना निमित्त कर्म करना  है कुल की राष्ट्र की रक्षा करना है। कृष्ण कहते हैं ये युद्ध मैंने आयोजित किया है तुम तो मात्र निमित्त हो उन्हें ही मारोगे जिन्हें मैं पहले ही मार चुका हूँ क्योंकि वे अधर्म के साथ खड़े हैं।मेरी शरण आजाओ और युद्ध करो।

फिर तुम्हारा कर्म अकर्म हो जाएगा ,कर्म बंधन में नहीं बांधेगा तुम्हें  बस भोगने भुगतने को प्रारब्ध शेष रह जाएगा ,वह तो सबको भोगना ही पड़ता है उन सबको जो मायाधीन  जीव हैं। प्रारब्ध तो ज्ञान प्राप्ति के बाद भी भोगना पड़ता है।

हमारे ही जन्म जन्मांतरों के संचित कर्मों का अंश होता है प्रारब्ध जिसे हम जन्म के समय साथ लाते हैं  . अलबत्ता क्रियमाण कर्म करने की हमें इस जन्म में पूरी स्वतंत्रता रहती है। श्रेयस या प्रेयस चयन हमारा अपना होता है कृष्ण इसमें व्यवधान नहीं डालते हैं। जो बोवोगे वही आगे चलके काटोगे।

जय श्रीकृष्णा।  

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें