मंगलवार, 13 मई 2014

चिकित्सीय मिथक (मिथ )

चिकित्सीय मिथक (मिथ )१ 

(१)मुखमैथुन सर्वथा सुरक्षित है निरापद है। 

(२)मैथुन क्रिया के कामशीर्ष पर पहुँचने के पलांश पहले पुरुष का स्खलन 

पूर्व बाहर निकल आना(लिंग को योनि से पलकझपकते ही सावधानी  

पूर्वक बाहर खींच लेना )  निरापद है।गर्भ धारण की वजह नहीं बनता है।  

(३) माहवारी (मासिक धर्म )की अवधि में महिला के साथ यौन समबन्ध 

बनाना गर्भ धारण के खतरे से मुक्त रहता है। 

(४) दो दो सुरक्षा कवच (कंडोम )पहन कर कुरुक्षेत्र के मैदान में कूदना 

गर्भधारणको मुल्तवी रखने  की दृष्टि  से ज्यादा बेहतर रहता है। 

यथार्थ :

(१)ज्यादातर लोग ओरल सेक्स (मुख और जुबान से एक दूसरे  के प्रजनन 

अंगों को चाटना चूसना )को निरापद मानते हैं। इनके अनुसार इस क्रिया 

में गर्भधारण का ख़तरा है ही नहीं।  भले यह बात सत्य है लेकिन इस 

क्रिया 

के अन्तर्निहित खतरों की पड़ताल ज़रूरी है। यौनसंबंधों से पैदा रोगों से 

,संक्रमण से एक दूसरे को इंफेक्ट करने वाले खतरे यहां मुह बाए खड़े हैं। 

इन रोगों को यौन संचारी रोग कह देते हैं (सेक्सुअली ट्रान्समीटिंग 

डिज़ीजिज़  ,STDs). इस क्रिया में मुख का प्रजनन अंगों से गहन संपर्क 

बनता है। 

कनेक्टिविटी बनती है। इन रोगों में गानरिया  (gonorrhea,यानी यौन 

संसर्ग से उत्पन्न एक रोग सूजाक ),हपीज़ (herpes ,हपीज़ एक संक्रामक 

रोग जिसमें त्वचा पर ,चेहरे और गुप्तांगों पर तकलीफदेह चकत्ते उभर 

आते हैं ),हेपेटाइटिस -B(hepatitis ,खतरनाक जिगर की ,यकृत की सूजन 

)एचआईवी -एड्स (HIV-AIDSZ)तथा सिफलिस 

(SYPHILIS,सिफ़िलिस 

यानी गरमी /उपदंश /आतशक नामक यौन संसर्ग से उत्पन्न रोग )का 

ज़िक्र  किया जा सकता है।

(२) स्खलन (वीर्यपात )से पूर्व का रिसाव -प्रीइजेकुलेटरी -सीमेन भी सक्षम 

स्पर्म लिए रहता है इसीलिए कामशीर्ष से पल भर पहले लिंग को योनि से 

बाहर खींचना गर्भ -धारण की वजह बन सकता है। निरापद नहीं है। 

(३ )मासिक स्राव के रूप में हर महीने गर्भाशय (बच्चेदानी )का अस्तर 

(LINING )ही बाहर आता  है। अठ्ठाईस दिनी चक्र में हर महीने चौदहवें 

दिन एक ह्यूमेन एग अंडाशय में पकने के बाद (डिम्ब )फटता है। फटने के 

बाद भी यह अंडवाहिनी नलिकाओं में बना रहता है। ४८ घंटों तक यह स्पर्म 

से मिलन मनाने को अातुर रहता है। सक्षम बना रहता है। अलावा 

इसके  स्पर्म में एग 

को 

आगामी ७२ घंटों तक फर्टिलाइज़ करने की सक्षमता बनी रहती है।लेकिन 

अण्डक्षरण (RELEASE OF EGG FROM THE OVARY TO THE 

FALLOPIAN TUBE)रक्त स्राव थमने के ग्यारहवें दिन  से बाईसवें दिन 



के बीच भी कभी भी हो सकता है। इसका निर्धारण मासिक स्राव की 

अवधि से होता है जो अलग अलग हो सकती है अलग अलग महिलाओं 

में।   

(४ )दो दो कंडोम इस्तेमाल करने के फायदे /आंकड़े प्रकाश में नहीं आये हैं। 

भले इससे रिसाव या रिसन का ख़तरा टल जाए अतिरिक्त सुरक्षा भी 

बढ़ती है ऐसा मान  लेना नादानी ही होगी। परस्परघर्षण से दोनों फट भी 

सकते हैं। लिंग से फिसल भी सकते हैं। कंडोम पहनना भी एक कला है। 

तभी यह सुरक्षा कवच धारण किया जाए जब लिंग सख्त हो जाए 

फोरस्किन ऊपर कर ली जाए।कुछ लोग अज्ञानता वश इसे उलटा भी 

पहन 

सकते हैं। 

चिकित्सा मिथ और यथार्थ २ :

मिथ :गर्भनिरोध गोली (खाने की टिकिया)महिलाओं के मोटापे ,अंडाशय 

के दुबलाने तथा कैंसर के अलावा बांझपन की भी वजह बनती है।

यथार्थ :कामयाब रेहते  हैं ओरल कॉन्ट्रासेप्टिव (ना -कामयाबी की दर बा -

मुश्किल ०.  १ फीसद रहती है )। आधुनिक अद्यतन प्रोद्योगिकी से 

तैयार गर्भ निरोधी गोली मोटापे की वजह नहीं बनती है। गैर -

कैंसरकारी,निरापद रहने वाली वक्षस्थल की बीमारी के अलावा अंडाशय 

कैंसर (ओवेरियन कैंसर ,OVARIAN CANCER ) तथा गर्भाशय 

(बच्चेदानी )के कैंसर से भी बचाव करती है। 

अधुनातन गोली में संतुलन रहता है तीसरी पीढ़ी के प्रोजेस्ट्रोन और 

ईस्ट्रोजन हारमोन में। पूर्व में इनमें प्रोजेस्ट्रोन की लोडिंग (बहुलता )के 

कारण अ-वांच्छित पार्श्व प्रभाव भुगतने पड़ते थे। आधुनिक गोली 

प्रोजेस्टन ईस्ट्रोजन भी काम लिए है। ओव्युलेशन (रिलीज़ आफ ह्यूमेन 

एग ,डिम्ब-क्षरण )का शमन(सप्रेस करना ) करती है गर्भ निरोधी गोली। 




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