गुरुवार, 16 नवंबर 2017

भगवान कहते हैं तुम सब कुछ अर्पण तो करो अच्छा भी बुरा भी मैं हर हाल में तुम्हारी रक्षा करूंगा।जो सब प्रकार से भगवान् को समर्पित हो जाते हैं भगवान् उनके लिए महतारी बन जाते हैं महतर की तरह उनका सारा मल साफ़ कर देते हैं जैसे गाय अपने नवजात बच्चे को चाटकर साफ़ कर देती है जीभ से चाटकर।जीव की गंदगी को चाटकर चमकाना भगवान की गारंटी है वह भगवान् की शरण में तो आये। करहुँ सदा तिनकी रखवारी , ज्यों बालक राखै महतारी।

नारद शाप दीन्हि एक बारा
कल्प एक तेहि लेइ अवतारा ,
गिरिजा चकित भइँ ,
नारद विष्णु भगत मुनि ग्यानी,
कारण कवन शाप मुनि दीन्हा ,
का अपराध रमापति कीन्हां।   


नारद विष्णु भक्त है इतने बड़े ग्यानी हैं भगवान् को जो उनके गुरु भी है शाप कैसे दे सकते हैं ?मुझे बाताओ। किस कारण से मेरे गुरु नारद को क्रोध आया जिसने उन्हें शाप देने पर विवश किया। गुरु की महिमा होती है. गुरुता जिसमें है जो सर्वांग निर्दोष होता है वही गुरु होता है। 

राखै  गुरु जो कोप विधाता 
गुरु विरोध नहीं को जग त्राता। 
विधाता के कोप से भी यदि कोई बचा सकता है 
गुरु  राम दास के जीवन की बड़ी प्रख्यात घटना यही है इनके सामर्थ्य की जिसने इन्हें 'समर्थ' की उपाधि दिलवाई है काशी में ही।
पंडित गंगा भट्ट जी वही हैं जो शिवाजी महाराज का राज्य अभिषेक करने काशी से चलके गए थे। इनके पास स्वामी रामदास जी ने अपने शिष्य  को भिक्षा लेने के लिए पंडित गंगा भट्ट जी के पास ही भेजा था।पंडित जी ने शिष्य के मस्तक पर मृत्यु की रेखाएं देखकर कहा -तुम्हारी कल सायं चार बजे मृत्यु हो जाएगी। 
मौत ठीक चार बजे आई लेकिन उस वक्त शिष्य गुरु राम दास के चरण दबा रहा था। यम के दूत शाम सात बजे तक प्रतीक्षा करके लौट गए जाते जाते गुरु राम दास को प्रणाम कर गए।गुरु की सेवा में रत शिष्य को मौत भी नहीं ले जा सकती सेवा के उन क्षणों में। 

अगले दिन फिर पंडित जी के पास शिष्य को स्वामीजी ने भेजा। शिष्य को देखा और विस्मय से पूछा तुम जीवित कैसे हो ?शिष्य बोले काल तो आया था ठीक चार बजे ही लेकिन मेरे गुरु को प्रणाम करके लौट गया। पंडित गंगा भट्ट ने उस दिशा में प्रणाम किया जहां स्वामी रामदास रुके हुए थे और घोषणा की आज से इन्हें समर्थ गुरु रामदास के नाम से जाना जाएगा। 

मदन गोपाल शरण तेरी आयो ,

श्री गुरु देव शरण तेरी आयो। 

श्री भट्ट के प्रभु दियो अमर  पद 

यम डरप्यो जब दास कहायो।
पार्वती जी खड़ी हो गईं -भूल की होगी तो परमात्मा ने ही की होगी। 

"मुनि मन मोह आचरज आई " 
नारद जी को शाप था दक्ष प्रजापति के चौबीस मिनिट से ज्यादा ये कहीं टिक नहीं सकते। लेकिन एक बार ये टहलते हुए हिमालय पर आये और यहां के तप युक्त माहौल में नारद की बैठते ही समाधि लग गई। 
इंद्र घबरा उठे -कामदेव को अपने पूरे असलाह के साथ बुलाया आदेश किया -नारद का तप भंग करना है शीघ्र जाओ। 

नाचने वाले थक गए ,वाद्य यंत्र टूट गए नारद के हृदय में राम हैं बाहर का कामुक वातावरण उन्हें प्रभावित नहीं कर पाता वह तो देह से परे समाधिस्थ हैं। 
तंग आकार कामदेव ब्रह्मास्त्र छोड़ देते हैं सारा वातावरण सुगन्धि से भर जाता है कामुक हो उठता है। नारद के संयम का यशोगान गाते हैं कामदेव और उनकी अप्सराएं -अब  प्रशंशा और दुर्गुण नारद के अंदर प्रवेश करते हैं ,अहंकार जागता है। नारद मैं मैं मैं करने लगते हैं। मैंने काम को जीत लिया ,मैंने क्रोध को जीत लिया। 
भक्त अहंता भाव से करता भाव से मुक्त होता है वह करता भाव से परे निकल के गाता है :

मेरे  आपकी कृपा से सब काम हो रहा है ,

करते हो तुम कन्हैयाँ मेरा नाम हो रहा है।

सबसे ज्यादा ईर्ष्या नारद को शंकर जी से हो गई ,शंकर ने तो काम ही को जीता मैंने तो क्रोध को भी जीत लिया। मैं शंकर जी से बड़ा हो गया जाकर उन्हें बताता हूँ। 

अरे वो काम देव है न वह अपनी अप्सराओं को लेकर आया ,उन्होंने सारे अंग फड़का दिए ,देहमुद्राएँ दिखलाएँ मैं समाधिस्थ रहा। कामदेव हताशा लिए लौट गए। 
शिव की आँखों से दुःख के आंसू गिरते हैं। नारद जी ने शंकर जी से पूछा जो कथा मैंने आपको अपनी बीती सुनाई वह आपको कैसी लगी ?
शंकर जी ने हाथ जोड़ दिए -
मुनिवर मैं आपसे प्रार्थना करता हूँ इस कथा को आप भगवान् विष्णु को भूलकर भी न सुनाना भले वह खुद इसे सुनाने का आग्रह आपसे करें। 
नारद को ऑब्सेशन होता है भगवान विष्णु के पास उड़के पहुँच जाऊं ,अपने ही गुणगान गाऊं ,अपने ही मुख  से ,अब मैं उनके बराबर हो गया। 
बस वीणा बजाते बजाते इसी भाव मुद्रा में नारद क्षीर सागर आ गए। आज उनके शुद्ध हृदय में अहंकार की कंकड़ी आ गई है भगवान् कहीं दिखाई नहीं दिए -
हारकर भगवान् को नारद पुकारने लगे -

सूर्य नारायण नारायण नारायण ,

चंद्र नारायण नारायण नारायण ,

श्री मन नारायण नारायण नारायण।

भगवान् हड़बड़ा कर बैठ गए -बोले लक्ष्मी जी मेरा नारद आया है आज वह बहुत बीमार है काम पीड़ित है ,अंधा हो गया है काम से आज वह खुद नहीं पहुँच पायेगा। आज वह भक्त नहीं है अहंकारी है। 
नारद यह सोचते हुए के आज तो मैं इनके बराबर का हो गया हूँ।उन्हें भगवान् का सिरहाना दिखाई देता है वहीँ बैठ जाते हैं जो मन में होता है वही बाहर दिखाई देता है। नारद जी बैठ गए। भगवान् जानते हैं आज नारद खुशामद सुनना ही पसंद करेगा। 
बोले विहँसी चराचर राया ,
काम चरित नारद सब भाखे ....
अति प्रचंड रघुबर के माया ...... .
हे मुनिवर बहुत दिनों में कृपा की इस बार। नारद भगवान के पास बैठे हैं राम की बगल में बैठे हैं और काम दर्शन कर रहे हैं भजन में मन का बड़ा महत्व होता है परिणाम मन का हुआ करता है। मन ही तन को वहां ले जाता है जिस जगह का  मन चिंतन कर रहा होता है। इसलिए मन की मत सुनिए। मन को रोकिये। किस पर ध्यान देना है निर्णय लो -राम पे या काम पे। तन वहीँ जाएगा। 
क्या जीवन इन मुर्दो को रिझाने के लिए हैं नृत्यांगना नाचती जाती है रोती  हुई मन में उसके राम हैं। 

वैश्या के घर के सामने वाले मंदिर में पंडित जी आरती मुख से गाते हैं -मातु पिता तुम मेरे और कनखियों से वैश्या नर्तकी को निहारते रहते हैं। 

दोनों की मृत्यु होती है चित्रगुप्त अपना निर्णय सुनाते हैं वैश्या को स्वर्ग और पंडित जी को नर्क में भेज दिया जाता है। 
अब भगवान् लीला करते हैं जब नारद चलते हैं भगवान् रास्ते में एक नगर बसा देते हैं जहां बड़े बड़े महल हैं  बड़े बड़े पंडाल हैं इस शीलनगर में।राजा की बिटिया विश्वमोहिनी का स्वयंवर हैं वहां नारद पहुँचते राजा कहते हैं नारद से जरा इसका हाथ देखो -नारद कहते हैं जो इससे शादी करेगा वह तिरलोकी हो जाएगा अंदर तो नारद के काम घुसा हुआ था इसलिए कहना चाहते तो थे इसकी शादी तिरलोकी से होगी कह गए ठीक इसका उलटा।
बस नारद जी झटपट वहां से चक देते हैं सोचते हुए इस शीलवती रूपमोहिनी  कन्या की शादी तो मुझसे ही होनी चाहिए।शहर के बाहर निकले गाँव वासियों ने पैर लिए नारद के गुरूजी एक भजन सुना दीजिये आग्रह किया। नारद के नादर तो काम घुसा हुआ था। कहते हैं मुझसे भजन वजन कुछ नहीं होगा तुम ला सकते हो तो उस कन्या को लादो। 

आपण रूप देयो मोहि -
कहते हुए नारद भगवान को याद करते हुए। भगवान्  तो लीला पुरुष हैं मर्कट (बंदर )का रूप दे देते हैं नारद को लेकिन नारद जब अपना चहेरा देखते हैं तो उन्हें विष्णु दिखाई देते हैं जब दूसरे नारद को देखते हैं तो वह मर्कट नज़र आते हैं। 
शिव के गणों ने जो नारद के दोनों आकर बैठ गए थे -कहा बाबा ब्याह करबे को आये हो पहले अपना रूप तो शीशे में देखो।
नारद जी गुस्से में कंपकपाते हुए जा रहे हैं पीछे से भगवान् का रथ आता है- नारद गाली देते हैं भगवान को शाप देते हैं -

नारी विरह तुम होय  दुखारी। 

नारद का प्रसाद (शाप )भगवान ने सर पर रख लिया।भगवान् भी अपने सर पर संतों का हाथ रखते हैं। 

हम को भी अपने सिर पर किसी न किसी  का हाथ रखना चाहिए। 

सन्देश यह है अहम ,काम ,क्रोध करने के लिए हम दुनिया की तरफ भागते हैं नारद भगवान् की  ओर  भागे हैं। शुभ भी तेरा अशुभ भी तेरा। सब कुछ तुझको अर्पित। 

भगवान  कहते हैं तुम सब कुछ अर्पण तो करो अच्छा भी बुरा भी मैं हर हाल में तुम्हारी रक्षा करूंगा।जो सब प्रकार से भगवान् को समर्पित हो जाते हैं भगवान् उनके लिए महतारी बन जाते हैं महतर की तरह उनका सारा मल साफ़ कर देते हैं जैसे गाय अपने नवजात बच्चे को चाटकर साफ़ कर देती है जीभ से चाटकर।जीव की गंदगी को चाटकर चमकाना भगवान  की गारंटी है वह भगवान् की शरण में तो आये। 

करहुँ सदा तिनकी रखवारी ,
ज्यों बालक राखै महतारी। 

महतारी शब्द महतर से बना है।     
   


     
    
सन्दर्भ -सामिग्री :

(१ )

Vijay Kaushal Ji Maharaj | Shree Ram Katha Ujjain Day 8 Part 2


(२ )https://www.youtube.com/watch?v=Ha1ltdnWKKw

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