पृथ्वी और चांद की उम्र अब तक जितनी मानी जाती थी, उससे कहीं ज्यादा है। फ्रांस के नैंसी स्थित युनिवर्सिटी ऑफ लोराइन की एक ताजा स्टडी में ऐसा दावा किया गया है। शोधकर्ताओं ने पता लगाया है कि सौरमंडल का निर्माण शुरू होने के करीब 4 करोड़ साल बाद ही प्रारंभिक पृथ्वी और एक ग्रह के आकार वाले पिंड के बीच टक्कर हुई। अब तक हम यह मानकर चल रहे थे कि यह टक्कर सौरमंडल का निर्माण शुरू होने के 10 करोड़ साल बाद हुई। साफ है कि हमारे अनुमान से पृथ्वी 6 करोड़ साल पुरानी है।
पृथ्वी ही नहीं चंद्रमा भी, क्योंकि इसी टक्कर से चंद्रमा के पैदा होने की बात कही जाती है। पिछले हफ्ते साइंस पत्रिका में प्रकाशित एक रिसर्च में यह बात दोहराई गई है। शोधकर्ताओं के मुताबिक पृथ्वी दरअसल थिया नामक ग्रह से टकराई थी, जिससे चांद का जन्म हुआ। रिसर्चर्स का कहना है कि अपोलो के अंतरिक्ष यात्रियों द्वारा चांद से लाए गए चट्टानों के टुकड़ों पर 'थिया' की निशानियां दिखती हैं।
यह बहुत पहले से माना जाता रहा है कि चांद खगोलीय टक्कर के परिणामस्वरूप उत्पन्न हुआ था, हालांकि एक समय यह भी कहा जाने लगा कि ऐसी कोई टक्कर हुई ही नहीं थी। लेकिन 1980 के बाद यह थ्योरी कमोबेश सबने स्वीकार कर ली। भारतीय परंपरा में पृथ्वी को मां और चांद को मामा का दर्जा प्राप्त है। इसलिए एक आम भारतीय की नजर से देखें तो इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि मां कितनी बूढ़ी है। हमें तो बस उसके आंचल की छाया चाहिए।
और इससे भी क्या मतलब है कि मामा कितनी उमर के हैं। रहेंगे तो मामा ही न। मतलब उनसे भी प्यार-दुलार ही चाहिए। एक लोकगीत में चंदा मामा से कहा गया है कि सोने के कटोरा में दूध-भात लेते आना। सो, भांजे-भाजियों को तो इन्हीं चीजों से मतलब है। अब मामाजी के सारे बाल सफेद हो गए हों तो हुआ करें। वैसे चंद्रमा के जिम्मे कुछ और काम भी हैं। प्रेमी उनसे अपनी प्रेमिकाओं का पता पूछते रहते हैं। और कई बार तो अपना संदेश भी भिजवाने का आग्रह करते हैं। बताइए, इसमें भी उम्र कहां बाधक है।
पृथ्वी ही नहीं चंद्रमा भी, क्योंकि इसी टक्कर से चंद्रमा के पैदा होने की बात कही जाती है। पिछले हफ्ते साइंस पत्रिका में प्रकाशित एक रिसर्च में यह बात दोहराई गई है। शोधकर्ताओं के मुताबिक पृथ्वी दरअसल थिया नामक ग्रह से टकराई थी, जिससे चांद का जन्म हुआ। रिसर्चर्स का कहना है कि अपोलो के अंतरिक्ष यात्रियों द्वारा चांद से लाए गए चट्टानों के टुकड़ों पर 'थिया' की निशानियां दिखती हैं।
यह बहुत पहले से माना जाता रहा है कि चांद खगोलीय टक्कर के परिणामस्वरूप उत्पन्न हुआ था, हालांकि एक समय यह भी कहा जाने लगा कि ऐसी कोई टक्कर हुई ही नहीं थी। लेकिन 1980 के बाद यह थ्योरी कमोबेश सबने स्वीकार कर ली। भारतीय परंपरा में पृथ्वी को मां और चांद को मामा का दर्जा प्राप्त है। इसलिए एक आम भारतीय की नजर से देखें तो इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि मां कितनी बूढ़ी है। हमें तो बस उसके आंचल की छाया चाहिए।
और इससे भी क्या मतलब है कि मामा कितनी उमर के हैं। रहेंगे तो मामा ही न। मतलब उनसे भी प्यार-दुलार ही चाहिए। एक लोकगीत में चंदा मामा से कहा गया है कि सोने के कटोरा में दूध-भात लेते आना। सो, भांजे-भाजियों को तो इन्हीं चीजों से मतलब है। अब मामाजी के सारे बाल सफेद हो गए हों तो हुआ करें। वैसे चंद्रमा के जिम्मे कुछ और काम भी हैं। प्रेमी उनसे अपनी प्रेमिकाओं का पता पूछते रहते हैं। और कई बार तो अपना संदेश भी भिजवाने का आग्रह करते हैं। बताइए, इसमें भी उम्र कहां बाधक है।
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