शनिवार, 9 अगस्त 2014

मार्क्सवादी बौद्धिक गुलाम की करतूत (कांग्रेस महागर्त में -तीसरी किश्त )

Mani Shankar Aiyar



मार्क्सवादी बौद्धिक  गुलाम की करतूत (कांग्रेस महागर्त में -तीसरी 

किश्त )

कांग्रेस की अधोगति की अनंत कथा है। जितनी कहो उतना विस्तार पाती है। कांग्रेस पार्टी का जो तात्कालिक विषाद चल रहा है वो ये कि भारत के मतदाताओं ने उन्हें  विपक्ष में बैठने की पात्रता भी नहीं दी है। कांग्रेस के इतिहास में इससे ज्यादा दुर्दिन क्या आयेंगे कि कांग्रेस के शहजादा राहुल गांधी को अपने  अस्तित्व की ओर  ध्यान खींचने के लिए लोकसभा अध्यक्ष की परिसीमा कूप में जाकर चिल्लाना पड़ता है। जब उन्हें कुछ नहीं सूझा तो कहा कि यहां तो एक ही आदमी की चलती है। इसके पीछे दर्द ये बोल रहा था कि मेरी तो अब कांग्रेस में चलती नहीं जब कांग्रेसी ही अपने मन में मुझे बुद्धु कहेंगे तो मोदी की पार्टी को कहने का हक़ वैसे ही हासिल हो जाएगा। दरअसल कांग्रेस कहलाने वाले इस परिवार की जो हालत हुई है उसके लिए वे खुद तो जिम्मेवार हैं ही वे लोग भी कम जिम्मेदार नहीं हैं जो लगातार इनकी चाटुकारिता करते रहें हैं। पर आज जिस शख्श  का  हम ज़िक्र करने जा रहें हैं वह शख़्श भले ही कांग्रेस परिवार का चाटुकार न रहा हो पर परोक्षता कांग्रेस को इस हालत में पहुंचाने में उसका हाथ भी काम नहीं है। इस शख़्श का नाम है मणिशंकर अय्यर।

यह शख़्श स्वयं ही अहंकार का शीर्षक और स्वयं ही अहंकार की इबारत है। वह अपने विरोधियों के लिए कुछ भी कह सकता है। दरअसल यह सब कुछ जान लेने से पहले उस शख़्श की पृष्ठ भूमि को जान लेना आवश्यक है। ये शख़्श मूलतया मार्क्सवादी बौद्धिक गुलाम है। मार्क्सवादी बौद्धिक गुलामी करने वाले बौद्धिक भकुए स्वयं को बुद्धिजीवी और स्वतन्त्र विचारक समझते हैं। पहली बात तो ये है कि जो बौद्धिक गुलामी करता है वह न तो बुद्धिजीवी होता है और न विचारक। पर कभी आपको यदि इस शख़्श को देखने का अवसर मिला हो तो सार्वजनिक कार्यक्रमों में भी इस शख़्श की निगाह सबको उपेक्षा की नज़र से देखती है। बौद्धिक गुलामी करने वालों का यही लक्षण होता है। ये वो लोग हैं जो स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेज़ों के लिए मुखबिरी करते थे। 

इन्होने नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को तो जापानी सम्राट तोदो का कुत्ता कहा था इनकी निगाह में महात्मा गांधी साम्राज्यवादी दलाल थे। यूं पंडित नेहरू के प्रति भी इन्होनें बहुत अच्छे शब्द इस्तेमाल नहीं किए। भारतीय क्रांतिकारियों के लिए इनके मन में कोई आदर नहीं था। ये हो सकता है कि  मणिशंकर अय्यर के रक्त पुरखों ने वास्तविक मुखबिरी न की हो पर इनके वैचारिक पुरखों ने तो अंग्रेज़ों की मुखबिरी की ही थी। इसी का परिणाम ये है की देश की आज़ादी के बाद ये सत्ता कुर्सी पे बैठने का मौक़ा ढूंढने लगे और वेश बदलकर कांग्रेसियों में शुमार हो गए। 

यूपीए -१ की सरकार में ये पंचायतीराज  मंत्री थे। अपनी मूल प्रवृत्ति से परिचालित होकर इन्होंने  अंडमान निकोबार की सेलुलर जेल से क्रांतिकारी शिरोमणि दामोदर वीरसावरकर के चित्र को हटवाकर बाहर कर दिया था। जब देश के नौजवानों ने इनके पुतले पर जूते मारे थे तो निर्लज्ज होकर इन्होंने कहा था कि पुतले की शक्ल तो मुझसे मिलती नहीं थी। ये वो शख़्श हैं जिन्हें  विदेश सेवा में कुछ काल के लिए काम करने का मौक़ा मिला था। ये अकड़ उनके व्यक्तित्व से अभी तक गई नहीं है। इसलिए किसी भी माननीय शख़्श के विरोध में ये कुछ भी कह सकते हैं। विरोध तक तो बात  बुरी नहीं लगती  पर ये तो अपमानित करने की हद तक पहुँच जाते हैं। जयपुर में हुए कांग्रेसी महासम्मेलन में पत्रकारों से बात करते हुए इन्होंने सिरचढ़े अहंकार से अकड़ कर ये कहा था कि मोदी चाहे तो यहां आकर अधिवेशन के परिसर में चाय का स्टाल लगा सकते हैं। और उस स्वाभिमानी इंसान ने ऐसा करिश्मा कर दिखाया कि न केवल वे भारत के प्रधानमंत्री बने बल्कि मणिशंकर जैसे अहंकारी कांग्रेसियों को ऐसा पाठ पढ़ाया कि अब वो अपने विषाद से बाहर ही नहीं आ रहें हैं। 

अब लोकसभा अध्यक्ष के परिसीमा कूप में जाकर कितना ही राहुल गांधी चिल्ला लें कांग्रेस को विपक्ष की कुर्सी तो मिलने से रही। हमारी सलाह है वह सीधे ही मणिशंकर अय्यर  से पूछे कि तुमने मोदी के विषय में ऐसी भद्दी बातें कहकर हमारे लिए ऐसे हालात पैदा कर दिए हैं कि तुम्हारी वजह से हम भी जलील हो रहें हैं। 

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