शुक्रवार, 13 अगस्त 2021

लड़ते अनपढ़ लोग हैं ,जो हों तर्कविहीन , संसद में क्यूं दिख रहा ,उलटा सीधा सीन। उलटा -सीधा सीन, चल रही खींचातानी , माननीय चढ़ मेज ,कर रहे हैं मनमानी। हम भारतीय लोग ,वोट देते हैं बढ़चढ़, पर संसद में लोग लड़ें ,ज्यों लड़ते अनपढ़।

 

लड़ते अनपढ़ लोग हैं ,जो हों तर्कविहीन 

संसद में क्यूं दिख रहा ,उलटा सीधा सीन। 

उलटा -सीधा सीन ,चल रही खींचातानी ,

माननीय चढ़ मेज ,कर रहे हैं मनमानी। 

हम भारतीय लोग, वोट देते हैं बढ़चढ़,

पर संसद में लोग लड़ें ,ज्यों लड़ते अनपढ़। (ओमप्रकाश तिवारी ) 

                       (२ )

होना चाहिए था जहां जमकर सोच विचार ,

टूटी मर्यादा वहां टूटे सब आचार। 

टूटे सब आचार सभी ने देखा ड्रामा ,

कब तक झेले देश सांसदों का हंगामा। 

 सभापति सिर्फ सभी को आये रोना ,

ऐसा होता देख नहीं जो चाहिए होना। ------- ओमप्रकाश तिवारी 

शब्द और व्यवहार ही मनुष्य की असली पहचान है। चेहरा और हैसियत का क्या है आज है कल नहीं है .......

We all get what we deserve .

हम सभी को वही मिलता है जिसके हम हकदार हैं । आज मन बहुत व्यथित है उप -राष्ट्रपति श्री मुप्पावारापु वेंकैया नायडु की वेदना आज करोड़ों करोड़ भारतीयों की भी वेदना है। स्थिति का दंश उन्होंने भोगा है तदानुभूति आज पूरे भारत-धर्मी समाज को हुई है। 

संदर्भ है लोकसभा और राज्य सभा का समय पूर्व अनिश्चितकालीन स्थगन। 

उच्च सदन कहा जाता है राज्यसभा को। अपने -अपने क्षेत्र के  चुनिंदा  नामचीन लोगों को यहां लाया जाता है,विद्वत जनों की सभा समझी जाती है राज्यसभा। एक उद्धरण याद हो आया है। मिथिला के राजा ब्रह्मज्ञानीजनक की सभा में विमर्श चलता था। ज़िरह होती थी धर्म और दर्शन के मूल तत्वों पर। 

इसी सभा में एक था ऋषि बामन पंडित उसने शर्त रखी जो मुझसे विमर्श में पराजित होगा उसे जलसमाधि लेनी होगी। अष्टावक्र उस समय किशोर ही था। आठ जगह से तिरछा था इनका शरीर ये ऋषि काहोद के पुत्र थे। ऋषिकाहोद को शास्त्रार्थ में बामन पंडित से पराजित होने के बाद जल समाधि लेनी पड़ी थी। 

आतुर थे अष्टावक्र बामन पंडित  से शास्त्रार्थ को  .जनक की सभा में द्वारपालों ने इन्हें सभामण्डल में जाने से यह कहकर रोका -ये बालकों की सभा नहीं है। 

'ज्ञान की कोई उम्र नहीं होती एक चिंगारी भी सारे वन को जलाकर राख कर देती है। ' -अष्टावक्र के इस उद्घोष का स्वर जनक के कान में पड़ा -बोले उन्हें अंदर आने दो। 

किशोर अष्टावक्र बामुश्किल लाठी के सहारे चल पाते थे। देह-यष्टि तो असामान्य थी ही। सभा में उपस्थित सभी इन्हें देख ठहाका लगाकर देर तक हँसते रहे। अष्टावक्र इनके चुप होने के बाद और भी देर तक ठाहाके लगाते रहे। सभा आश्चर्य चकित थी -जनक ने पूछा "ऋषि कुमार तुम्हारे यूं बे -तहाशा हंसने  की वजह क्या है '-बोले अष्टावक्र मैं पूछता हूँ ये लोग किस पर हँसे थे मुझ पर या मुझे बनाने वाले विधाता पर मुझे लगा था मैं पढ़े लिखे विद्वानों की सभा में आया हूँ ,यहां तो सब के सब  चमार हैं " 

अष्टावक्र इस विमर्श में विजयी हुए थे लेकिन उन्होंने बामन पंडित को जलसमाधि लेने से रोक दिया था ,उन्हे  क्षमा कर दिया था -फिर जनक से कहा था -राजन शास्त्र  को शस्त्र  में तब्दील न करो इसे शास्त्र ही  रहने दो। हमारा भी मानना यही है ससंद को राष्टीय विमर्श का सर्वोच्च केंद्र ही रहने दो अखाड़ा मत बनाओ। युवाभीड़ क्या सीखेगी -खेलाहोबे ?  

भारत -धर्मी समाज आज अपने चयन पर शर्मिन्दा है। हम क्यों नहीं गौर करते हैं उम्मीदवार के ब्योरे पर उसकी पूरी पृष्ठ्भूमि पर क्यों अटके रहजाते हैं धर्म -जाति के बखेड़े में। अपनी क्षुद्रताओं का अतिक्रमण क्यों नहीं कर पाते। आखिर ये देश हमारा है ये संसद ये सांसद  भी तो हमारे है हमारे लिए हैं हम ही से है  इनकी हस्ती और हैसियत। इनकी हैसियत सो हमारी। 

आज आलम ये है संसद  के अंदर संसद ,संसद के बाहर संसद ,संसद की छत पे संसद ,जंतर -मंतर  पे संसद। हर जगह हुड़दंग धींगामुश्ती आरोप और आरोप -

तू नहीं और सही और नहीं और सही तू है हरजाई तो अपना भी यही तौर सही।

आरोप -प्रत्यारोप के इस खेलाहोबे में अब बे -चारे कर्मठ 'मार्शल' निशाने पर चले आये हैं। संसद के राडार पर अब इससे आगे और क्या होगा ? 

विशेष :

(१ )संसद में ओबीसी विधेयक लाकर  मोदी जी ने सारे विपक्ष को गिरगिट साबित कर दिया। विपक्षी इस पर बहस के लिए क्यों  तैयार हो गए है? क्या पेगासस मुद्दा नहीं रहा ?कोरोना ,बे-रोज़गारी ,महंगाई ,तेल की कीमत ,जैसे किसी मुद्दे पर चर्चा नहीं की ,लेकिन ओबीसी बिल पर राजी हो गए। मामला वोट की चोट का है ,देश की परवाह नहीं। (डॉ.अजय आलोक @alok_ajay )

(२ )राज्य सभा में हंगामे पर दुखी होने के बजाय सभापति एम.वेंकैया नायडू को हंगामा करने वाले (हंगामाखोर )  सांसदों पर कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए। वह एक मिसाल कायम करें। कांग्रेस सांसद बाजवा ने संसद में कितना  अमर्यादित आचरण किया। फिर भी राहुल और प्रियंका की  ओर से निंदा का एक शब्द तक न फ़ूटा। उनके मौन को क्या मिलीभगत  मान लिया जाए ?( मिन्हाज मर्चेंट @MinhazMerchant)

(3 )हुड़दंगी आचरण को नज़ीर मानकर केजरीवाल और राहुल सोच के लोग इस असंसदीय व्यवहार के वीडिओज़ बनाकर ट्विटर पर पोस्ट कर रहे हैं। (veerujan.blogspot.com) 

(श्री मुप्पावारापु वेंकैया नायडु साहब जी  आहत भजारतधर्मी समाज आप

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