शनिवार, 8 सितंबर 2018

आपका मामूली प्रेम आलमी हो गया है आलमी बोले तो वैश्विक भूमंडलीय ग्लोबल। पत्रमित्र फेसबुकिया मित्र बन बैठा है। इसे आप रु -ब -रु देख भी सकते हैं बतिया भी सकते हैं आप मुख -चिठिया ,मुख -पुस्तकिया मित्र से

एक प्रतिक्रिया परमादरणीय भाई डॉ। अरविन्द मिश्र जी की वाल पोस्ट पर :

डिजिटल मीडिया ने और कुछ किया हो या नहीं लेखकीय संभावनाओं को बढ़ा दिया है और मज़ेदार बात ये है बिना  स्याही दवात कलम के लिखा जा रहा है। कागद कारे नहीं करने पड़ते। 

बस इतना भर हुआ है, अब नौनिहालों का पालक ये डिजिटल -जगत बन गया है। वास्तविक 'आभासी' और 'आभासी' वास्तविक हो गया है।रोल बदले हैं जीवन के आयाम वही हैं। 

जैसे आस्तिक नास्तिक और नास्तिक आस्तिक हो जाए। 

 सचमुच दूर के ढ़ोल सुहावने होते हैं। भूले बिसरे गीतों की तरह गुज़िस्तान दिनों के लोग फेसबुक पर मिल रहें हैं वे जो याद के पटल से बाहर ही रहे आये थे बरसों बरस। 

अतीत की यादों को ताज़ा कर रहा है आभासी जगत। और नौनिहालों की स्किल को पैना भी बना रहा है। सब कुछ  सिखा  रहा है आभासी जगत। 


 आप मृत्यु के नजदीक पहुँच चुके अपनों को हिन्दुस्तान या अन्यत्र रहते न देख सकें लेकिन वाट्सअप आपको दिखला देगा। आपके अपने वेंटिलेटर पर हैं हज़ारों हज़ार मील दूर आपसे फिर भी इतना करीब। 

ऑरकुट चुका नहीं हैं रूप बदल के आता  रहता है। 

कहते थे मौखिक संचार संचार का तीव्रतम ज़रिया है आज सोशल मीडिया आपकी रेकी करता है। आपके  किस्से, आप किस-किससे मिलते हैं उछालता है। 

पाकिस्तान की किसी अदाकारा को आप दिल दे सकते हैं। अपनी को एल्प्रेक्स देकर सुला सकते हैं।  

आपका मामूली प्रेम आलमी हो गया है आलमी बोले तो वैश्विक भूमंडलीय ग्लोबल। 

 पत्रमित्र फेसबुकिया मित्र बन बैठा है। इसे आप रु -ब -रु  देख भी सकते हैं बतिया भी सकते हैं आप मुख -चिठिया ,मुख -पुस्तकिया मित्र से ।

(ज़ारी ) 

पढ़िए अरविन्द जी की पोस्ट अपने मूल रूप में :




   

हम किस तरह डिजिटल दुनियां में मुब्तिला हो चुके हैं इसकी एक बानगी देखिये -
आज सुबह मोबाइल खोलते ही ह्वाटसअप पर एक सांप 🐍 का चित्र उभरा। खबर अपने गांव क्या, सामने पड़ोस के घर में सांप का था। यह बेहद विषैला सांप करईत था जिसका फन कुचला हुआ था। बड़ा सा एडल्ट सांप था। किसी को काटता तो उचित उपचार के अभाव में सुबह का सूरज न देख पाता। चूंकि बेहद जहरीला सांप था, मारना उचित था।
मगर जो बात आश्चर्यजनक थी वह यह रही कि किसी को भी कानोकान खबर नहीं। जबकि पहले सांप निकलने पर कस्बा कुनबा क्या पूरे गांव में हल्ला मच जाता था। भीड़ जुट जाती थी। मगर धन्य रे सोशल मीडिया, इतनी बड़ी घटना से आस पड़ोस तक को भी बेखबर कर गया।
यह दृष्टांत बता रहा है कि किस कदर हम आभासी दुनिया के बाशिन्दे बनते जा रहे हैं। वास्तविक भौतिक जगत से तेजी सै पलायन चल रहा है। हम आभासी जगत में तो मौजूद हैं मगर असली दुनिया में वजूद खारिज है।
आभासी सोशल मीडिया मनुष्य मात्र के बात - व्यवहार और आपसी रिश्तों - सम्बन्ध का एक नया युग रच रहा है। यह निकट नहीं दूर के सम्पर्क को नजदीक ला रहा है। यह वास्तविक दुनिया की कशमकश और अहसासों से पृथक जमीन तलाश रहा है। यह जीवित सच्चाइयों से दूर बुला रहा है। धरती का जीवन अब रास नही आ रहा। वायवीयता लुभा रही है।
कहीं निकट भविष्य में ही न हमारे सारे बात व्यवहार डिजिटल दुनियां में ही न स्थापित हो लें। सारा कार्य व्यापार वहीं हो इस बोझिल सी ज़िन्दगी से हम सदा के लिए नदारद हो जांय। वहीं मिले जुलें, बोले बतियायें, घनिष्ठ भी हो लें और सहजता तथा सेफ्टी से दूर भी हट लें। निरापद तरीके से बिना कोई खतरा उठाये। यहां की असली दुनियां में तो घनिष्ठता टूटने पर जान पर बन आती है कभी कभी। मगर आभासी जगत सेफ है।
पड़ोस में सांप निकलने को तत्क्षण सोशल मीडिया ने कवर कर लिया और चन्द फीट की ही दूरी पर रहे हम बेखबर हो रहे।

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