शुक्रवार, 22 सितंबर 2017

जेहादी तत्वों के पोषक देश भंजकों अपनी मूल धारा में लौटो -भले मार्क्सवाद की बौद्धिक गुलामी करो लेकिन जेहादी रोहंग्या के साथ मत फिरो गली- कूचों में ,जेहादी तत्वों को यहां से दफह होना ही होगा ,तुम काहे बुरे बनते हो ?

 रोहंग्या जेहादी तत्वों के समर्थन में उतरे मान्य रक्तरंगियों (लेफ्टीयों ,वामियों ),सोनिया के बौद्धिक गुलाम सम्मान के योग्य पिठ्ठुओं एक बात समझ लो। यदि यह देश आज़ाद हुआ तो उस नेहरू वंश की वजह से नहीं जिसके लाडले नेहरू ने उन अंग्रेज़ों की परम्परा को ही आगे बढ़ाया था जो भारत -द्वेष पर ही आधारित थी। नेहरु का मन विलायती ,काया मुसलमान  और.... खैर छोड़िये .. बात सांस्कृतिक धारा की हो रही थी उसी पर लौटते हैं। 

भारत को आज़ादी उस सांस्कृतिक धारा ने ही दिलवाई थी जो परम्परा से शक्ति की उपासक थी । यह आकस्मिक नहीं है कि राष्ट्रगान और वन्देमातरम का प्रसव उस बंगाल की  धरती पर ही हुआ जो परम्परा से शक्ति की, माँ दुर्गा की उपासक थी। उसी परम्परा को तिलांजलि दे खुद को दीदी कहलवाने वाली नेत्री ममता आज मूर्ती विसर्जन को एक दिन आगे खिसकाने की बात करती है क्योंकि मुसलमानों का २७ फीसद वोट फ्लोटिंग वोट है यह उस सांस्कृतिक धारा के साथ भी जा सकता है जो गांधी की आत्मा में वास करती थी जो मरते वक्त भी "हे राम "से संयुक्त रहे।

सुयोग्य लेफ्टीयों तुम्हारे बीच सबसे ज्यादा बेरिस्टर रहे हैं कमोबेश तुम्हारा नाता बंगाल से गहरा रहा है जहां से आये प्रणव दा राष्ट्रपति के रूप में अपने आखिरी दिन विदा वेला में भारत के प्रधानमन्त्री मोदी से ये कहलवा लेते हैं "भले माननीय राष्ट्रपति मेरी कई बातों से सहमत न थे लकिन उन्होंने अपने पिता समान नेह से मुझे कभी वंचित नहीं रखा।" यही है भारत राष्ट्र की सांस्कृतिक धारा जो एक तरफ राजा राम के गुण गाती है , मानस- मंदिर में (वाराणसी ) पूजा करती है ,शिव के तांडव और सदा शिव रूप (मंगलकारी )को भी नहीं भूलती।

जेहादी तत्वों के पोषक देश भंजकों अपनी मूल धारा में लौटो -भले मार्क्सवाद की बौद्धिक गुलामी करो लेकिन जेहादी रोहंग्या के साथ मत फिरो गली- कूचों में ,जेहादी तत्वों को यहां से दफह होना ही होगा ,तुम काहे बुरे बनते हो ?

ये देश तुम्हारा सम्मान करेगा।इसकी रगों में बहने वाले खून को पहचानो।  भारत धर्मी समाज  तुम्हें भी गले लगाएगा।
जैश्रीकृष्णा जयश्रीराम जयहिंद के सेना प्रणाम। 

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