रविवार, 28 फ़रवरी 2016

राजनीति की ये जारज संतान अब चंद चैनलियों के संग मिलके सम्मिलित स्वर में स्वानों और सियारों की नकल उतार रहें हैं गलियों में बाज़ारों में।

सत्य किसे माना जाए ?क्या उसे जो मुस्लिम कट्टरपंथ की गोद में पोषण पाते रक्तरंगी सीताराम नाम धारी बोल रहे हैं ,जो मुसोलिनी की मुखबिरी और चाकरी करनेवालों की संतान बोल रही है?या फिर उसे जिसकी बांग  दलित क्वीन मायावती लगा रहीं हैं। इशरत जहान को अपने घर की बेटी कहने वालों के चाकर के सी त्यागी जैसे लोग जिसे सच कह रहें हैं क्या उसे सच माना जाए।

रोहित वेमुला को पहले मौत के मुंह तक लेजाकर खुदकुशी और फिर उसकी मौत पे राजनीति करने वालों के प्रलाप को सच  माना जाए ?रोहित वेमुला की माँ   को टिकिट देकर चुनाव लड़ाने के मंसूबे रखने वाले राजनीति के धंधे बाजों द्वारा बुलवाये गए सच को सच माना जाए।

एक दलित और सौ बीमार। राजनीतिक बे -शर्मी की भी कोई तो हद होती होगी। सारा पानी उतर गया उनकी आँख का जो पहले मोदी का सिर मांग रहे थे इशरत जहां के मार्फ़त और अब ईरानी के खिलाफ नफरत के बीज बो रहे हैं।

आइन्दा होने वाले चुनावों में बेलट से कूटेगा भारत धर्मी समाज इन विधर्मियों को जो खाते हिन्दुस्तान का और गुणगायन मुस्लिम कट्टर पंथियों का करते हैं।

युवाओं को बरगला  कर उनसे पहले याकूब मेनन के समर्थन में झंडा उठवाते हैं फिर उन्हें निहथ्था छोड़ देते हैं आत्मघात करने को।

पूछा जा सकता है यह राजनीति के धंधेबाज वर्णसंकर तब क्यों सदन से भाग खड़े हुए थे जब वह सिंह वाहिनी जवाब दे रही थी इनके धतकर्मों  और आरोपों का ?

राजनीति की ये जारज  संतान अब चंद चैनलियों के संग मिलके सम्मिलित स्वर में स्वानों और सियारों की नकल उतार रहें हैं गलियों में बाज़ारों में। 

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