शनिवार, 25 अप्रैल 2015

इस हिमालयी क्षेत्र में भूकम्प की वजह भारतीय महा-द्वीपीय प्लेट का यूरेशिया प्लेट के साथ सटके सरकना खिसकना रहा है....

पंद्रह जनवरी १९३४ में जो भूकम्प बिहार -नेपाल में आया था रिख्टर पैमाने पर उसकी तीव्रता 8. २ आंकी गई थी इसका केंद्र पूर्वी नेपाल में माउंट एवरेस्ट के १० किलोमीटर दक्षिण में था इसमें मुंगेर और मुज़्ज़फ़रपुर ,बिहार ,भारत के नगर , तथा नेपाल का काठमांडू  पूरी तरह बर्बाद हो गए थे। 

आज दोपहर पूर्व काठमांडू के नज़दीक आये भूकम्प की तीव्रता ७. ९ आंकी गई है ,इसने नेपाल के इतिहास को पौंछ दिया है। माउंट एवरेस्ट में हिमस्खलन भी इसी से जुडी दुर्घटना बना है जिसमें १८ पर्वतारोही अपनी जान गँवा बैठे हैं। 

नेपाल में अब तक इस ज़लज़ले ने ,हल्लन ने ,१५०० से ज्यादा लोगों की जान ले ली है। स्वामी रामदेव ने कुदरत की इस विनाश लीला को साक्षात देखा है जिन्होनें अपना योग शिविर एक मिनिट पहले ही संपन्न किया था। वे अपनी आत्मशक्ति और पूरी दिव्यता के साथ सहायता कार्य में जुट गए हैं। 

भारत का बिहार ,उत्तराखंड ,पश्चिमी बंगाल ,पूर्वी उत्तर प्रदेश भी इसकी चपेट में आया है।यहां भी अनेक लोगों को ये प्राकृतिक आपदा लील गई है। 

 प्रधान मंत्री मोदी की पहल पर  नेपाल में फंसे भारतीयों की पहली खेप को भातीय वायुसेना के एक विमान द्वारा निकाल लिया गया है। 

सुषमा स्वराज ,किरण बेदी जी भी सोशल मीडिया पर सक्रीय दिखीं हैं। 

भारत की सेना और वायुसेना भी हर सम्भव सहायता के लिए तत्पर हैं। हर भारतीय कुदरत के इस खेल में नेपाल के साथ है। 


इस बड़े भूकम्प के बाद नेपाल दिन भर में बाद के १७ अपेक्षा कृत हलके  झटकों को भी उत्तर प्रभाव के रूप में झेलता रहा है। अभी भी कम इंटेंसिटी कम तीव्रता के झटके आ रहें हैं। कुदरत के अपने खेल हैं। जीवन की नश्वरता का प्रकृति जब तब एहसास करवा देती है। 



भूकम्प के लिहाज़ से भारत पांच क्षेत्रों में विभाजित है जिनमें ज़ोन दो सबसे कम तथा ज़ोन पांच सबसे ज्यादा खतरनाक समझी गई है।



इस हिमालयी क्षेत्र में भूकम्प की वजह भारतीय महा-द्वीपीय प्लेट का यूरेशिया प्लेट के साथ सटके सरकना खिसकना रहा  है दोनों महाद्वीपीय प्लेटें एक दूसरे की तरफ हर साल चारपांच चार -पांच सेंटीमीटर सेंटीमीटर प्रति साल की दर से सरक रहीं हैं। इस पारस्परिक पार्श्वीय संघट्ट से पृथ्वी के अंदर अतिरिक्त स्ट्रेस (स्ट्रेन ,इंटरनल एनर्जी )इकठ्ठा हो जाती है। यही भूकम्प के रूप में रिलीज़ होती है।    नतीज़न हिमालय पांच मिलीमीटर ऊपर उठता जा रहा है हर बरस ,जो अभी अपनी शैशव अवस्था में ही है। 

भारत में भूकम्प रोधी मकान बनाने को लेकर एक समान भूकम्प रोधी इंजीनियरी रियल्टर्स स्वीकृत करें ये वक्त की मांग है। क्योंकि भारत का एक बड़ा इलाका खतरनाक ज़ोन में आता है जिससे  राजधानी दिल्ली भी अछूती नहीं रही है। ज़ोन चार में आती है दिल्ली।

भूकम्प से होने वाला जानमाल का नुक्सान उस स्थान की स्थलाकृति के अलावा इस बात से भी तय होता है वहां भवन निर्माण में कौन सी सामिग्री तथा प्रोद्योगिकी इस्तेमाल की गई।

भूकम्प के अधिकेंद्र (Epicentre )पर नुकसानी सबसे ज्यादा होती है जो फॉक्स (भूकम्प केंद्र )के ठीक ऊपर होता है वर्टिकली (ऊर्ध्वाधर रूप ).

काठमांडू के निकट  लामजंग में था इस भूकम्प का केंद्र जो एक शैलो अर्थ -कुएक ,पृथ्वी के नीचे काम गहराई पर  था (१० किलोमीटर गहरे पर )



Why Nepal is so 

vulnerable to 

quakes

Durbar square, a Unesco World Heritage Site, has been reduced to rubble. The famous Dharahara Tower has been toppled to leave just a stump.

Nepal is used to quakes – this is one of the most seismically active regions in the world. You only have to look at the Himalayas to understand that.
The mountains are being built as a consequence of the Indian tectonic plate driving under Central Asia (the Eurasian tectonic plate). These two great slabs of the Earth's crust are converging at a relative rate of about 4-5cm (two inches) a year.
The upward climb of Everest and its sister mountains is accompanied by numerous tremors.
David Rothery, a professor of planetary geosciences, at the Open University, UK, commented: "The Himalayan mountains are being thrust over the Indian plate; there are two or three big thrust faults, basically. And some very gently dipping fault will have been what moved, and gave us this event. Casualties are reported in Kathmandu, but we now wait to see how widespread the problems are."

Vulnerable buildings


nitial estimates of casualties, even in the biggest quakes, usually start off small, and then grow.
In the case of this quake, the fear will be that the final numbers could be quite high.
That's not just because the magnitude of the main event was large – at M7.8 (numbers will be revised as more data is assessed) – but that it was also very shallow – a mere 10-15km down.
This will have made the shaking felt at the surface extremely severe. And in the four hours that followed the main event, at least 14 aftershocks were recorded, most of them magnitude fours and fives, but including a Magnitude 6.6.
Remember, every step down on the scale constitutes a 30-times drop in the energy released in an event, but when buildings are already damaged, the smaller aftershock may be all that's required to bring a structure crashing to the ground.
And the assessment is that much of the population in this region live in houses that are highly vulnerable to earthquake shaking: unreinforced brick masonry and the like.

Landslide risk

One of the big concerns, based on previous experience, will be the possibility of landslides.
In places in this mountainous terrain, there could well be villages that are cut off, even destroyed by mud and rock that has come tumbling off steep slopes.
It will all add to the confusion as the authorities try to deal with the emergency, and will mean that information will be slow to emerge and sometimes conflicting.
Looking right across the Himalaya region, other significant earthquakes include the 1934 M8.1 Bihar event, the 1905 M7.5 Kangra tremor and the 2005 M7.6 Kashmir quake.
The latter two events were particularly harsh, resulting in loss of life that topped 100,000. Millions were also left homeless.

Further reading:

http://www.audioenglish.org/dictionary/pangea.htm

http://csmres.jmu.edu/geollab/vageol/vahist/plates.html




People stand around damage caused by an earthquake at Durbar Square in Kathmandu, Nepal, Saturday, April 25, 2015
Historic landmarks were wrecked in the earthquake






Historic landmarks were wrecked in the earthquake

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