शनिवार, 10 जुलाई 2021

जगन्नाथ अष्टकम -डॉ संबित पात्रा -पद्मश्री कैलाश खेर (बंदिश कैलाश खैर )

कदाचित् कालिन्दी तट विपिन सङ्गीत तरलो
मुदाभीरी नारी वदन कमला स्वाद मधुपः
रमा शम्भु ब्रह्मामरपति गणेशार्चित पदो
जगन्नाथः स्वामी नयन पथ गामी भवतु मे ॥१॥

भुजे सव्ये वेणुं शिरसि शिखिपिच्छं कटितटे
दुकूलं नेत्रान्ते सहचर-कटाक्षं विदधते ।
सदा श्रीमद्‍-वृन्दावन-वसति-लीला-परिचयो
जगन्नाथः स्वामी नयन-पथ-गामी भवतु मे ॥२॥

महाम्भोधेस्तीरे कनक रुचिरे नील शिखरे
वसन् प्रासादान्तः सहज बलभद्रेण बलिना ।
सुभद्रा मध्यस्थः सकलसुर सेवावसरदो
जगन्नाथः स्वामी नयन-पथ-गामी भवतु मे ॥३॥

कृपा पारावारः सजल जलद श्रेणिरुचिरो
रमा वाणी रामः स्फुरद् अमल पङ्केरुहमुखः ।
सुरेन्द्रैर् आराध्यः श्रुतिगण शिखा गीत चरितो
जगन्नाथः स्वामी नयन पथ गामी भवतु मे ॥४॥

रथारूढो गच्छन् पथि मिलित भूदेव पटलैः
स्तुति प्रादुर्भावम् प्रतिपदमुपाकर्ण्य सदयः ।
दया सिन्धुर्बन्धुः सकल जगतां सिन्धु सुतया
जगन्नाथः स्वामी नयन पथ गामी भवतु मे ॥५॥

परंब्रह्मापीड़ः कुवलय-दलोत्‍फुल्ल-नयनो
निवासी नीलाद्रौ निहित-चरणोऽनन्त-शिरसि ।
रसानन्दी राधा-सरस-वपुरालिङ्गन-सुखो
जगन्नाथः स्वामी नयन-पथगामी भवतु मे ॥६॥

न वै याचे राज्यं न च कनक माणिक्य विभवं
न याचेऽहं रम्यां सकल जन काम्यां वरवधूम् ।
सदा काले काले प्रमथ पतिना गीतचरितो
जगन्नाथः स्वामी नयन पथ गामी भवतु मे ॥७॥

हर त्वं संसारं द्रुततरम् असारं सुरपते
हर त्वं पापानां विततिम् अपरां यादवपते ।
अहो दीनेऽनाथे निहित चरणो निश्चितमिदं
जगन्नाथः स्वामी नयन पथ गामी भवतु मे ॥८॥

जगन्नाथाष्टकं पुन्यं यः पठेत् प्रयतः शुचिः ।
सर्वपाप विशुद्धात्मा विष्णुलोकं स गच्छति ॥९॥

॥ इति श्रीमत् शंकराचार्यविरचितं जगन्नाथाष्टकं संपूर्णम् ॥


जब आदि शंकराचार्य प्रथम बार पुरीधाम स्थित जगन्नाथ जी के दर्शन के लिए पहुंचे, तो भगवान् को देखकर उन्होंने जगन्नाथ जी 

की स्तुति की,ओर अष्टकम का निर्माण किया, यह सबसे पवित्र भजन है जगन्नाथ स्वामी का, इसे चैतन्य महाप्रभु जी ने  गाया 

जब वह जगन्नाथ जी के दर्शनों के लिए आये, यह इतना पवित्र ओर शक्तिशाली  अष्टक है, जिसके पाठ से जगन्नाथ स्वामी प्रसन्न 

हो जाते हैं , मनुष्य की आत्मा पापों  से मुक्त होकर विशुद्ध हो जाती है, इस अष्टकम के पाठ से आत्मा पवित्र होकर अंत में विष्णु 

लोक को प्राप्त करती है, हर वैष्णव को मुक्ति देने वाला यह स्तोत्र भगवन जगन्नाथ जी को अतिशय प्रिय है,

पदानुक्रम में भावसार :

(१ )हे प्रभु ! आप कदाचित जब अति आनंदित होते है,तब कालिंदी तट के निकुंजों में मधुर वेणुनाद द्वारा सभी का मन अपनी ओर 

आकर्षित करने लगते हो, वह सब गोपबाल और  गोपिकायें  ऐसे आपकी ओर मोहित हो जाते हैं  जैसे भंवरा कमल पुष्प के मकरंद 

पर मोहित रहता है, आपके चरण कमलों  को जो कि लक्ष्मी जी, ब्रह्मा,शिव,गणपति ओर देवराज इंद्र द्वारा भी सेवित हैं  ऐसे 

जगन्नाथ महाप्रभु मेरे पथप्रदर्शक हो,मुझे शुभ दृष्टि प्रदान करे,

(२ )आपके  बाएं हस्त में बांसुरी है और शीश पर मयूर पंख  तथा कमर में पीतवस्त्र बंधा हुआ है, आप  अपनी चितवन से अपने कटाक्ष नेत्रों से तिरछी निगाहों  से अपने प्रेमी  भक्तों को निहार कर आनंद प्रदान कर रहे हैं , और अपनी  लीलाओं  का जो की वृन्दावन में आपने की उनका स्मरण करवा रहे हैं  और स्वयं भी  लीलाओं  का आनंद ले रहे हैं , ऐसे जगन्नाथ स्वामी मेरे पथप्रदर्शक बनकर मुझे शुभ दृष्टि प्रदान करे,

(३ )हे मधुसूदन ! विशाल सागर के किनारे,  सुंदर नीलांचल पर्वत के शिखरों से घिरे अति रमणीय स्वर्णिम आभा वाले श्री पुरीधाम में आप अपने बलशाली भ्राता बलभद्र जी और आप दोनों के मध्य बहन सुभद्रा जी के साथ  विद्यमान  होकर सभी दिव्य  आत्माओं ,भक्तों , संतो को अपनी कृपा दृष्टि का रसपान करवा रहे हैं , ऐसे जगन्नाथ स्वामी मेरे पथपर्दशक हों  और मुझे शुभ दृष्टि प्रदान करें 

(४ )जगन्नाथ स्वामी दया और कृपा के अथाह सागर हैं , उनका रूप ऐसा है जैसे जलयुक्त काले  बादलों  की गहन श्रंखला हो, अर्थात अपनी कृपा की वृष्टि करने वाले मेघों  के जैसे  हैं , आप श्री लक्ष्मी और सरस्वती को देने वाले भण्डार है, अर्थात आप अपनी कृपा से लक्ष्मी और सरस्वती प्रदान करते हैं ,आपका मुख चंद्र पूर्ण खिले हुए उस कमल पुष्प के समान है जिसमें  कोई दाग नहीं है अर्थात पूर्ण आभायुक्त खिले हुए पुण्डरीक के जैसा आपका मुखकमल है, आप  देवताओं और साधु  संतों  द्वारा पूजित हैं , और उपनिषद भी आपके गुणों का वर्णन करते हैं , ऐसे जगन्नाथ स्वामी मेरे पथप्रदर्शक हों  और मुझे शुभ दृष्टि प्रदान करें ,

(५ )हे आनंदस्वरूप ! जब आप रथयात्रा के दौरान रथ में विराजमान होकर जनसाधारण के मध्य उपस्थित होते हैं  तो  अनेकों   ब्राह्मणों ,संतों , साधुओं , और भक्तों  द्वारा आपकी स्तुति वाचन,मन्त्रों  द्वारा स्तुति सुनकर प्रसन्नचित भगवान् अपने प्रेमियों को बहुत ही प्रेम से निहारते हैं ,अर्थात अपना प्रेम वर्षण करते हैं , ऐसे जगन्नाथ स्वामी लक्ष्मी जी सहित जोकि सागर मंथन से उत्पन्न सागर पुत्री हैं  मेरे पथप्रदर्शक बने और मुझे शुभ दृष्टि प्रदान करें ,

(६ )जगन्नाथ स्वामी आप ब्रह्मा के शीश के मुकुटमणि हैं , और आपके नेत्र कुमुदिनी की पूर्ण खिली हुयी पंखुड़ियों के समान आभा युक्त हैं , आप नीलांचल पर्वत पर रहने वाले हैं , आपके चरणकमल अनंत देव अर्थात शेषनाग  जी के मस्तक पर विराजमान हैं , आप मधुर प्रेम रस से सराबोर हो रहे हैं  जैसे ही आप श्रीराधा जी को आलिंगन करते हैं , जैसे कमल किसी सरोवर में आनंद  पाता है,ऐसे ही श्रीजी का हृदय आपके आनंद को बढ़ाने वाला सरोवर है , ऐसे जगन्नाथ स्वामी मेरे पथप्रदर्शक और शुभ दृष्टि प्रदान करने वाले हों ,


(७ )हे मधुसूदन ! मैं न तो राज्य की कामना करता हूँ, ना ही स्वर्ण,आभूषण,कनक कामिनी भोग वैभव की कामना कर रहा हूँ, न ही लक्ष्मी जी के समान सूंदर पत्नी की अभिलाषा से प्रार्थना कर रहा हूँ, मैं तो केवल यही चाहता हूँ की भगवान् शिव जिन के गुण का कीर्तन श्रवण करते हैं वही जगन्नाथ स्वामी मेरे को शुभ दृष्टि प्रदान करने वाले हों . 


(८ )हे देवो के स्वामी, आप अपनी संसार की दुस्तर माया जो कि मुझे भौतिक सुख  साधनों और स्वार्थ साधनों  की आकांक्षा के लिए अपनी ओर घसीट रहे हैं , अर्थात अपनी ओर लालायित कर रहे हैं , उनसे मेरी रक्षा कीजिये, हे यदुपति ! आप मुझे मेरे पाप  कर्मों के गहरे और  विशाल सागर से पार कीजिये जिसका कोई किनारा नहीं नज़र आता है, आप दीन  दुखियों के एकमात्र सहारा हो, जिस ने अपने आपको आपके चरण  कमलों  में समर्पित कर दिया हो, जो इस संसार में भटककर गिर पड़ा हो, जिसे इस संसार सागर में कोई ठिकाना न हो, उसे केवल आप ही अपना सकते हैं , ऐसे जगन्नाथ स्वामी मुझे शुभ दृष्टि प्रदान करने वाले हों , 


जो पुण्यात्मा और  विशुद्ध हृदय वाला व्यक्ति इस जगन्नाथ अष्टक का पाठ करता है, वह पूर्ण विशुद्ध होकर विष्णु लोक को प्राप्त करता है, इसमें कोई संदेह नहीं है,


इस प्रकार शंकराचार्य जी द्वारा रचित यह जगन्नाथ अष्टकम पूर्ण होता है 

Sri Jagannatha Ashtakam Meaning:

Sometimes in great happiness Lord Jagannatha, with His flute, makes a loud concert in the groves on the banks of the Yamuna. He is like a bumblebee who tastes the beautiful lotus-like faces of the cowherd damsels of Vraja, and His lotus feet are worshiped by great personalities such as Lakshmi, Siva, Brahma, Indra and Ganesa. May that Jagannatha Swami be the object of my vision.

In His left hand Lord Jagannatha holds a flute. On His head He wears the feathers of peacocks and on His hips He wears fine yellow silken cloth. Out of the corners of His eyes He bestows sidelong glances upon His loving devotees and He always reveals Himself through His pastimes in His divine abode of Vrindavana. May that Jagannatha Swami be the object of my vision.

Residing on the shore of the great ocean, within a large palace situated upon the crest of the brilliant, golden Nilacala Hill, along with His powerful brother Bala-bhadra, and in the middle of Them His sister Subhadra, Lord Jagannatha bestows the opportunity for devotional service upon all godly souls. May that Jagannatha Swami be the object of my vision.

Lord Jagannatha is an ocean of mercy and He is beautiful like a row of blackish rain clouds. He is the storehouse of bliss for Lakshmi and Saraswati, and His face is like a spotless full-blown lotus. He is worshiped by the best of demigods and sages, and His glories are sung by the Upanishads. May that Jagannatha Swami be the object of my vision.

When Lord Jagannatha is on His Ratha-yatra cart and is moving along the road, at every step there is a loud presentation of prayers and songs chanted by large assemblies of brahmanas. Hearing their hymns Lord Jagannatha is very favorably disposed towards them. He is the ocean of mercy and the true friend of all the worlds. May that Jagannatha Swami, along with His consort Lakshmi, who was born from the ocean of nectar, be the object of my vision.

He is the ornament of the head of Lord Brahma and His eyes are like the full-blown petals of the lotus. He resides on the Nilacala Hill, and His lotus feet are placed on the heads of Ananta Deva. Lord Jagannatha is overwhelmed by the mellow of love and He becomes joyful in the embracing of the body of Sri Radharani, which is like a cool pond. May that Jagannatha Swami be the object of my vision.

I do not pray for a kingdom, nor for gold, rubies, and wealth. I do not ask for an excellent and beautiful wife as desired by all men. I simply pray that Jagannatha Swami, whose glories are always sung by Lord Siva, be the constant object of my vision.

O Lord of the demigods, please quickly remove this useless material existence I am undergoing. O Lord of the Yadus, please destroy this vast ocean of sins which has no shore. Alas, this is certain that Lord Jagannatha’s lotus feet are bestowed upon those who feel themselves fallen and have no shelter in this world but Him. May that Jagannatha Swami be the object of my vision.

The self-retrained, virtuous soul who recites these eight verses glorifying Lord Jagannatha becomes cleansed of all sins and duly proceeds to Lord Visnu’s abode.

Thus ends the eight stanza hymn Jagannathastakam composed by srimat saṅkaracarya



कल महाप्रभु जगन्नाथ जी की पवित्र रथ यात्रा है। इस परम पावन अवसर को ध्यान में रखते हुए पद्मश्री श्री ⁦⁩ जी के साथ मैंने श्री आदि शंकराचार्य कृत #जगन्नाथ_अष्टकम गाया है। यह गीत महाप्रभु जगन्नाथ जी के चरण कमलों में समर्पित है। #JaiJagannath
youtube.com

जगन्नाथ अष्टकम -डॉ संबित पात्रा -पद्मश्री कैलाश खेर (बंदिश कैलाश खैर ) 

Shri Jagannath Ashtkam by Dr. Sambit Patra and Padmashri Kailash Kher

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Jul 11, 2021


https://www.youtube.com/watch?v=Tfotq4HLpfA

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