योग के असली मायने हैं क्या ?
फैशनेबुल  (buzz word )है इन दिनों योगा। लेकिन योग के नाम पर क्रेश प्रोग्रेम बेचा जा रहा है 
उछल कूद का, पी टी का ,चंद कसरतों का जिसे खरीद कर लोग अपने आपको योगी बूझने लगते हैं। 
जितना ज्यादा पसीना निकालने वाला प्रोग्रेम उतना ही ज्यादा दाम मिलेगा आपको कथित योगा का बाज़ार में।
संस्कृत साहित्य (वैदिक साहित्य ),पुराण आदि में योग शब्द प्रयुक्त हुआ है। जिसका अर्थ आत्मा 
का आत्माओं के पिता परमात्मा से   मेलमिलाप बतलाया गया है ,मिलन मनाना बतलाया 
समझाया गया है। 
संयोगो योग इत्युक्तो जीवात्मा परमात्मनो :
                                             (गरुण पुराण )
"आत्मा का परमात्मा से मिलन  ही योग है। यह  मिलन मन को पवित्र किये बिना ऊर्ध्व गति 
दिए बिना परमात्मा को प्रेम किये बिना मुमकिन नहीं होता है।
श्रीमद भागवतम में कहा गया है :
एतावान योग आदिष्टो मच्छिश्यै :  सनकादिभि :
सर्वतो मन आकृष्य मययद्वावेश्यते यथा (श्रीमद भागवतम )
"'मन को भौतिक जगत के सभी पदार्थों से हटाकर एक परमात्मा में ही पूरी तरह लगाना असल योग है "
ज्यादातर प्रकाशनों और संस्थाओं ने जो योग से सम्बद्ध हैं योग   के आध्यात्मिक पक्ष की अनदेखी ही की है। योग के नाम पर वे चंद 
आसन ,भौतिक पक्ष ही योग का बेच रहे हैं। अधूरा योग है यह। मन की शुद्धि के बिना आत्मा की प्यास नहीं बुझेगी। लोगों को दिव्य 
अनुभव की लालसा रहती है जो इसीलिए पूरी नहीं हो पाती है। 
The craze for Yoga has definitely increased around the globe ,but invariably in the name of "Yoga ", only
physical exercises are taught ,and people doing them feel they have become Yogis .Actually ,the word "Yoga
"does not exist in the Sanskrit language or in the Vedic scriptures .The proper word is "Yog ",which means
"to unite ."In this context ,it means to unite the individual soul with the Supreme soul .
संयोगो योग इत्युक्तो जीवात्मा परमात्मनो :(गरुण पुराण )
"The union of the individual soul with God is Yog ."This
union is achieved by elevating ,purifying ,and focusing the
mind lovingly upon Him .
The Shreemad Bhagavatam states :
एतावान योग आदिष्टो मच्छिश्यै :  सनकादिभि :
सर्वतो मन आकृष्य मययद्वावेश्यते यथा (श्रीमद भागवतम )
'True Yog means removing the mind from all the material 
objects of attachment ,and fixing it completely on God ."
Most publications and Yog institutions in the modern world
have not  endeavored to highlight the mental and spiritual 
aspects of Yog ,and in the name  of "Yoga,"teach sincere 
aspirants only physical exercises and incomplete 
meditational techniques .Without emphasis on the 
purification of the mind ,the hunger of the soul remains 
unaddressed .Those people who have deeper spiritual 
sanskars yearn for a genuine Divine experience .That is the 
reason their inner urge to understand and experience Indian 
spirituality remains unfulfilled .
जगदगुरु कृपालुजी (प्रणीत )योग क्या है ?
जगदगुरु कृपालुजी (प्रणीत )योग क्या है ?
जगद्गुरु  कृपालुजी योग (JKYOG ):
इस योग के तहत योग के आध्यात्मिक(spiritual ) और कायिक (भौतिक ,material )योग के दोनों पहलुओं (तत्वों) का समावेश किया 
गया है। इस एवज योग के उस सनातन विज्ञान को आधार बनाया गया है जिसका बखान उपनिषदों में विस्तार से किया गया है। इसमें 
पांच वैदिक अनुशासन शामिल हैं। जो मन और काया के प्रबंधन से ताल्लुक रखते हैं। 
(१ )राधे  श्याम योगासन 
(२) राधे नाम प्राणायाम 
(३ ) सूक्ष्म शरीर शिथिलिकरण (Subtle Body Relaxation )
(4 )रूप ध्यान (Meditation on the Form of God )
(5 )संतुलित एवं स्वास्थ्यकर खुराक का विज्ञान 
भारत में यद्यपि हज़ारों सालों से जेकेयोग का  ऋषि मुनि योगीजनों ने अनुकरण किया है लेकिन पश्चिम में इसी योग का (कथित 
योगा )स्वरूप एक आयामी ही रहा है। इसमें मन की उपेक्षा की गई है। उपनिषद कहते हैं :
मन एव मनुष्याणां कारणं  बंध मोक्षयो :(पंचदशी )
मन ही  मनुष्य के बंधन और मुक्ति का अकेला कारण है। यदि मन की उपेक्षा की गई  तब फिर व्यक्तिव के पोषण और उद्भव एवं 
विकास का सारा का सारा विज्ञान अधूरा माना  जाएगा ,।आंशिक प्रभाव ही पड़ेगा  इसका।
जेकेयोग में पाँचों अनुशासनों पर समान बल दिया गया है। लक्ष्य है मन को ऊर्ध्वगामी बनाना आध्यात्मिक साधनों से आलंबनों से 
ऊर्ध्वमुखी बनाना।ईश्वर से इसकी प्रीती जोड़ना। आत्मा के स्तर पर यह बड़े परितोष और आनंद का वायस बनता है। 
मन -काया -और आत्मा में सामंजस्य समस्वरता लाता है जेकेयोग। आंतरिक सुखानुभूति आनंदाभूति करवाएगा साधक को इसका 
निरंतर और सही अभ्यास। आत्मा का परमात्मा से  मिलन करवाएगा जेके योग।
Interview of Swami Mukundanand on ITV
Why is Sadhna (Devotion ) important in the modern age ?
(Interview)
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