गुरुवार, 7 दिसंबर 2017

Shri Ram Katha by Shri Avdheshanand Giri Ji - Day 4 (Part ll)

गुरु विश्वामित्र ने राम से कहा आपके पूर्वज बड़ी कठनाई से गंगा को लाये हैं चलिए इसका पूजन करते हैं :


चले राम लक्ष्मण मुनि  संगा  ,

........   ...... पावहिं गंगा। 

गंग  सकल मुद मंगल मूला। 

सब सुख करणी हरहिं सब शूला। 

हम भारतीयों के सभी संस्कार जल से ही संपन्न होते हैं। जल में जीवन है जीव की उत्पत्ति जल से है।अंत्येष्टि के बाद अस्थि विसर्जन गंगा में और फिर जलांजलि दी जाती है। 

बारह बरस पहले मैं जब यहां कुम्भ पर आया था ,पूरी धरती पर  पेय जल   डेढ़  से पौने दो प्रतिशत ही रह गया था  बाकी जल संदूषित हो गया ,अब आज इस धरती पर आधा प्रतिशत ही पीने  योग्य जल रह गया है।अगले कुम्भ तक कितना रह जाएगा ?सहज अनुमेय है। 

और इसीलिए आज हमारी सहनशीलता गई प्रतिरोधात्मक शक्ति गई।मनुष्य का धैर्य गया। दूसरों को सहन करने की शक्ति गई। इतनी कीमत की चीज़ है गंगा आपके पूर्वज लाये थे इसे बड़ी मेहनत से -गुरु ने राम से कहा।  

हरीतिमा गई अन्न का अण्णत्व अन्नत्व प्राणत्व गया पाचकता गई।अन्न से रस गया। स्वाद गया सुगंध गई।  गुरु ने राम से कहा आपके पूर्वज लाये थे ये जल।उन्होंने ही हमें हरे भरे बाग़ बगीचे सौंपे थे।  

और आज हमने क्या कर दिया ?

वसुंधरा का हरा बिछौना ही नौंच डाला। 

भारत में दो वस्तुएं अमर  हैं एक का नाम है गंगा।जिसका पावित्र्य कभी नहीं मिट सकता। और दूसरी चीज़ है गाय।  मनुष्य को बचाने के लिए भारत की देसी गाय की आज आवश्यकता है वही हमारी संवेदनाएं बचाएगी। उसमें जो धातु हैं वही मानव मन को समेट  कर रखेंगे। भारत की गौ को बचाओ तो मानवता बचेगी।एक एक सांड हमारा एक करोड़ रूपये में बिकता है। गाय को समाप्त करने का मतलब मनुष्यता को समाप्त करना है । 

भारत की गौ को बचाओ तो मानवता बचेगी। गंगा देवत्व को समेट  कर रखती है।गंगा ऐन्द्रिक संयम के लिए एकमात्र औषधि है।

किंचिद गीता भगवद गीता , 

गंगा जल अब कनिका पीता। 

बारह गुण केवल गंगा में हैं।  पवित्र गुण हैं,तत्व हैं बारह ।  गंगा में दो अतिरिक्त तत्व हैं एक लोक कल्याण के लिए दूसरा परलोक के लिए है। एक तत्व तो उसके बहते रहने से बना रहता है। एक और तत्व है जिसमें भगवदीय  गुण  हैं। क्योंकि गंगा भगवान् के चरणों से निकलीं हैं। शिव के माथे को छुआ है ब्रह्मा के हाथों को छूआ है। एक गुण  गंगा का मात्र स्मरण से प्रकट हो जाता है वह तत्व उसका सर्वत्र है। 

गंगा बड़ी गोदावरी ,तीरथ  बड़े प्रयाग।गौ मुख से ही तो निकली है गंगा इसीलिए गोदावरी भी कही गई।   

जब भी कभी जल पीयो गंगा का स्मरण करना। और जब भी अन्न लो तो नारायण का स्मरण करना।भाव की प्राप्ति होगी। बल मिलेगा।  

गंगा स्नान करने के बाद राम मुस्कुराये। 

हरषि चले मुनि वृन्द सहाया ......  

 वेगि  (वेद ) विदेह नगर नियराया।

विदेह नगर जा रहे हैं जहां का शासक कालातीत है। किसी काल का उस पर कोई प्रभाव नहीं वह समय में से तत्वों को निकालना जानता था। वह स्पेस टाइम से परे था। 

ग्यानी कौन है जो अपनी प्राथमिकताओं के नियोजन में संलग्न हैं वह व्यस्त है वही ग्यानी है।  कभी अस्त व्यस्त नहीं मिलेगा ग्यानी आपको ,जो समय के ,उत्साह के ,विवेक के प्रबंधन में  प्रवीण है वही ग्यानी है। 

विदेह की नगरी में एक बार 'होता' आदि को यह बोध ही नहीं रहा समिधा हवन कुंड में है ही नहीं और  वह स्वाह- स्वाह करते रहे। जनक ने देखा और मन ही मन संकल्प किया मेरे अंदर जितनी भी वनस्पति का लकड़ी का अंश है वह समिधा बन के आ जाए मैं जो सारी  सृष्टि में ब्रह्माण्ड  में व्याप्त हूँ अपने इस आवरण में से समिधा की  लकड़ी निकाल लूँ मेरा वह अंश जो वनस्पतियों में है बाहर समिधा  बन के आ जाए।और जनक ने अपना पैर हवन कुंड में डाल दिया। चर्बी जली हवन  संपन्न हुआ। 

लक्ष्मण ऐसी है वह विदेह नगरी जहां हम जा रहे हैं। 

(ज़ारी ) 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें