मंगलवार, 26 दिसंबर 2017

एक था मग्गा मूठदार बड़ा कप

एक था मग्गा -मूठदार बड़ा कप पारदर्शी कांच का बना हुआ ,आप सोच रहे होंगे अब इसमें क्या विलक्षणता हो सकती है। विलक्षणता थी उसने हमें सिखाया आप हमारा इस्तेमाल माइक्रोवेव में चाय बनाने के लिए भी कर सकते हैं। बेशकीमती बढ़िया कांच के बने हैं हम हाई टेम्प्रेचर रेज़ीस्टेंट ,माइक्रोवेव फ्रेंडली भी हैं हम। हमें बात  जंच  गई थी ,अभी तक हम चाय हेंडिल शुदा चाय बनाने के भगोने में ही बनाते थे -सड़क वाली चाय जिसे बार बार उबाला दिया जाता है अच्छीमात्रा में चाय पत्ती  अव्वल दर्ज़ा और फ़ुल फैट (१२ % )मिल्क। ऊपर से ब्राउन सुगर -बेहतरीन चाय बनती थी। लेकिन भगोने को भी रगड़ रगड़ कर बारहा धोना पड़ता था।अच्छा वक्त लगता था,भगोने की साफ़ सफाई में भी।   

इस हमारे परमप्रिय मग ने इस सारे झंझट से हमें बचा लिया था । बस निगाह रखो चाय उबल कर माइक्रोवेव में फैलने न पाए ,स्टॉप ,स्टार्ट का क्रम चलता था तकरीबन दो से  ढ़ाई मिनिट तक। और उसके बाद उतनी ही आला दर्ज़ा सुस्वादु चाय तैयार हो जाती थी। 

'इस पोस्ट का शीर्षक एक था वीरू' या 'एक था पति' या कुछ और भी हो सकता था। उम्र के साथ चीज़ें बदलतीं हैं। ये जो कुछ भी इन्द्रियगोचर है रस,रूप ,स्पर्श ,गंध ,श्रवण यह सब तेज़ी से छीज़ बदल रहा है। एक वक्त था वीरू एक  साथ कई -कई काम कर लेता था। एक तरफ मसाला फ्राई हो रहा है कुकर में सब्ज़ी का दूसरी तरफ सिंक में बर्तन की धुलाई -मँजाई चल रही है। आजकल इसे मल्टीटास्किंग कह देते हैं। 

एक दौर था हम पति थे -पत्नी गईं अपना कर्मभोग प्रारब्ध भुगता कर स्वर्ग लोक को। 

 पत्नी के साथ पति की उपाधि भी गई। पति कभी था ही नहीं। पत्नी भी कभी नहीं होती दोनों उपाधियाँ हैं। स्त्री और पुरुष  है दोनों का यथार्थ है पत्नी का भी पति का भी । दोनों ही नान -एगज़ीस्टंट  हैं। दोनों का ही अस्तित्व नहीं है अलंकरण और उपाधियाँ मात्र हैं दोनों। जैसे स्वर्ण और स्वर्ण के आभूषण सब स्वर्ण ही हैं।  


 जो पुरुषार्थ करता है वही पुरुष कहलाता है। और स्त्री इस मामले में पुरुष से ३२ गुना ज्यादा पुरुषार्थी है ,सक्षम है।

पति -पत्नी इसी लोक में होते हैं मिलते हैं। स्वर्ग में सिर्फ स्त्री -पुरुष होते हैं। दोनों में से कोई भी कभी भी पहले शरीर छोड़ सकता है ,कब, इसका कोई निश्चय नहीं। फिर आप कह सकते हैं -एक था पति या फिर एक थी पत्नी। 

उम्र के साथ चीज़ों का स्वरूप बदलता है कार्य क्षमता व्यक्ति की और उसका फॉकस बदलता है। तरह तरह के लॉस (lose ),ऑडिओ -लॉस ,विजन लॉस ,अटेंशन लॉस,शार्ट या लोंगटर्म मेमोरी लॉस आदमी को घेर लेते हैं। 

अब मल्टी टास्किंग गए ज़माने की बात हो जाती है। एक मर्तबा में एक ही काम आप पूरा कर लें ये काया चलती रहे आप अपना काम खुद करते रहें इतना काफी  है। 

मल्टीटास्किंग की -और ध्यान हटा।इसी मल्टी टास्किंग का ग्रास बना हमारा सुप्रिया दोस्त -मग्गा। 

हुआ ये हमने चाय की पत्ती और सिर्फ ब्राउन शुगर मग में डाला और उसे माइक्रोवेव में रखके दो मिनिट का प्रोग्रॅम दे दिया।दूध डालना हम भूल गए हैं । इस  का इल्म ही नहीं रहा और हम मज़े से फल तराशते रहे। सुबह हमारा ब्रेकफास्ट फल-प्रधान होता है टमाटर -मूली -ब्रोकली-लेटस  आदि भी शरीक रहते हैं और साथ में मूठदार चाय का लबालब भरा हुआ मग.

अब जब हमने माइक्रोवेव से मग बाहर निकाला पता चला दूध तो हमने डाला ही नहीं है।इसी के साथ बिना विचारे  एक ब्लंडर और कर दिया -फ्रिज से दूध का कैन निकाला और एक  दम  से ठंडा दूध  उत्तप्त मग में डाल दिया। 
गर्म दूध ही डालते तब ऐसा हरगिज़ न होता। 

बेचारा मग इतनी ठंडक एक साथ बर्दाश्त नहीं कर सका  अपनी उत्तप्त काया पर -और चटक गया। 

इसे अंग्रेजी भाषा में कहते हैं -differential contraction and or expansion of glass which results in cracks and breaks .

स्थिति इसके विपरीत भी हो सकती थी। ग्रीष्म ऋतु  में बहुत से लोग फ्रीज़र में वाइन ग्लास रख देते हैं। इसी प्रशीतित  वाइन ग्लास में ठंडी बीयर ,अन्य शीतल पेय ,शर्बत आदि डालकर पीते है ताकि वह और देर तक ठंडी रहे। ठंडक में ठंडक जुड़ सकती है। ठंडा  और उत्तप्त  एक साथ नहीं चलेगा। 

मोटी तली वाले कांच के ग्लास में अगर आप बहुत गर्म तरल डाल देंगे तब वह इसी differential expansion की वजह से टूट जाएगा। समय ही नहीं है फैलने का।ऐसे में अंदर बाहर का फैलाव और सिकड़ाव एक जैसा नहीं होता है यही है डिफरेंशियल एक्सपेंशन एंड कंट्रक्शन ऑफ़ गिलास।  

जग को सिकुड़ने का समय ही नहीं मिला और वह हमें छोड़ गया.भगवान् उसकी आत्मा को शान्ति पहुंचाए। 

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