कलि -संतरणोपनिषद (मन्त्र संख्या चार /Text 4 )-भाव सार
नारद : पुन : पप्रच्छ तन्नाम किमिति |
Narad Muni again asked "which is that name ?"
नारद मुनि ने एक बार फिर पूछा -(मुझे बताइये )वह नाम क्या है ?
शब्दार्थ :
पप्रच्छ-asked पूछा ; ta त -वह ; nama नाम ; किम -क्या ; इति -वह
यहां सन्देश यह है नारद का -इस उपनिषद का -
जब कोई आशंका हो ,गुरु के पास जाने में शिष्य संकोच न करे ,अपने संशयों का समाधान करे ।
संदेह होने पर शिष्य निसंकोच अपने गुरु से एक बार फिर पूछता है समुचित जानकारी के लिए यह आवश्यक भी है।इसलिए नारद मुनि को ज़रा भी संकोच नहीं है यह पूछने में (अपने पिता ब्रह्मा जी से )मुझे सटीक नाम बताओ जिसका स्मरण करना है जप करना है। मंत्रोच्चार करना है। जिसे उच्चारित (उच्चरित ) करना है।
यह भी के गुरु को भी कोई झिझक नहीं है वह सब बताने दोहराने में अपने शिष्य के लिए जो कुछ भी वह जानता है सब का सब।
नारद : पुन : पप्रच्छ तन्नाम किमिति |
Narad Muni again asked "which is that name ?"
नारद मुनि ने एक बार फिर पूछा -(मुझे बताइये )वह नाम क्या है ?
शब्दार्थ :
पप्रच्छ-asked पूछा ; ta त -वह ; nama नाम ; किम -क्या ; इति -वह
यहां सन्देश यह है नारद का -इस उपनिषद का -
जब कोई आशंका हो ,गुरु के पास जाने में शिष्य संकोच न करे ,अपने संशयों का समाधान करे ।
संदेह होने पर शिष्य निसंकोच अपने गुरु से एक बार फिर पूछता है समुचित जानकारी के लिए यह आवश्यक भी है।इसलिए नारद मुनि को ज़रा भी संकोच नहीं है यह पूछने में (अपने पिता ब्रह्मा जी से )मुझे सटीक नाम बताओ जिसका स्मरण करना है जप करना है। मंत्रोच्चार करना है। जिसे उच्चारित (उच्चरित ) करना है।
यह भी के गुरु को भी कोई झिझक नहीं है वह सब बताने दोहराने में अपने शिष्य के लिए जो कुछ भी वह जानता है सब का सब।
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