मकतब -ए-इश्क का दस्तूर निराला देखा ,
उसको छुट्टी न मिली ,जिसने सबक याद किया।
(ये भाईसाहब पाठशाला इश्क की है -यहां तो हाल ये हैं -इश्क पे ज़ोर नहीं ये वो आतिश ग़ालिब ....बोझ वो सर पे गिरा है के उठाये न उठे ...)
कुछ लोग बिंदास जीते हैं प्यार करने और किये जाने के लिए ही भगवान उन्हें इस दुनिया में भेजता है। ये लोगों के दिलों में रहते हैं भले इनका लौकिक आवास बे -जोड़ हो। सबसे कनेक्ट होना कोई इनसे सीखे -ये आते हैं तो महफ़िल में आफताब उतर आता है।पूरा माहौल चार्ज्ड हो जाता है। न पद का गुरूर न अप्राप्ति का मलाल।
कई कसर जान बूझकर छोड़ देता है वाहगुरु इनकी दात में। शायद उसकी एक ही इच्छा रहती है ये खिलें और खेलें मुस्काएं और लोगों का हौसला बढ़ाएं। बाँटें अपना -पन निसि -बासर।
सौभाग्य रहा हमारा हम ऐसे कई लोगों के परिचय के दायरे में आये।
जिसने तुम्हारी याद की तुमने उसे भुला दिया ,
हम न तुम्हें भुला सके ,तुमने हमें भुला दिया।
गज़ब ये- इन्हें हर कोई याद रहता है ,भूलें तब जब याद न रहे। सब कुछ याद रहता है इन्हें।
आप जिनके करीब होते हैं ,
वो बड़े खुशनसीब होते हैं।
ऐसे ही एक हर दिल अज़ीज़ ,अज़ीमतर हमारे दिल के बहुत करीब एक शख्श हैं मान्यवर डेप -काम श्री एम. डी. सुरेश .(डेप्युटी कमाडाँट इंडियन नेवल एकादमी ,एषिमला ,कन्नूर ,केरल प्रदेश ) .
वो जिसको भी मिलते हैं ,
'आम ' को ख़ास बना देते हैं।
ये भी कमाल का 'पीर 'है इश्क ,
छोड़ देता है मुरीद बना के।
बा -हवस पाँव न रखियो कभी इस राह के बीच ,
कूचा -ए -इश्क है ये रहगुज़र आम नहीं।
(इश्क की गलियां हैं ये -ना -मुराद !आम रास्ता नहीं है ).
ये इश्क नहीं आसाँ ,एक आग का दरिया है -
और डूब के जाना है।
उसको छुट्टी न मिली ,जिसने सबक याद किया।
(ये भाईसाहब पाठशाला इश्क की है -यहां तो हाल ये हैं -इश्क पे ज़ोर नहीं ये वो आतिश ग़ालिब ....बोझ वो सर पे गिरा है के उठाये न उठे ...)
www.shayari.in/shayari/ghazal/35257-ishq-par-zor-nahin-hai-yeh-woh-aatish-ghalib.html
SHAYARI FORUM; Ghazal; Ishq Par Zor Nahin Hai Yeh Woh Aatish `Ghalib' ... Bojh Woh Sar Pe Gira Hai Ke Uthaye Na Uthe ... Ishq Par Zor Nahin Hai Yeh Woh Aatish `Ghalib'कुछ लोग बिंदास जीते हैं प्यार करने और किये जाने के लिए ही भगवान उन्हें इस दुनिया में भेजता है। ये लोगों के दिलों में रहते हैं भले इनका लौकिक आवास बे -जोड़ हो। सबसे कनेक्ट होना कोई इनसे सीखे -ये आते हैं तो महफ़िल में आफताब उतर आता है।पूरा माहौल चार्ज्ड हो जाता है। न पद का गुरूर न अप्राप्ति का मलाल।
कई कसर जान बूझकर छोड़ देता है वाहगुरु इनकी दात में। शायद उसकी एक ही इच्छा रहती है ये खिलें और खेलें मुस्काएं और लोगों का हौसला बढ़ाएं। बाँटें अपना -पन निसि -बासर।
सौभाग्य रहा हमारा हम ऐसे कई लोगों के परिचय के दायरे में आये।
जिसने तुम्हारी याद की तुमने उसे भुला दिया ,
हम न तुम्हें भुला सके ,तुमने हमें भुला दिया।
गज़ब ये- इन्हें हर कोई याद रहता है ,भूलें तब जब याद न रहे। सब कुछ याद रहता है इन्हें।
आप जिनके करीब होते हैं ,
वो बड़े खुशनसीब होते हैं।
ऐसे ही एक हर दिल अज़ीज़ ,अज़ीमतर हमारे दिल के बहुत करीब एक शख्श हैं मान्यवर डेप -काम श्री एम. डी. सुरेश .(डेप्युटी कमाडाँट इंडियन नेवल एकादमी ,एषिमला ,कन्नूर ,केरल प्रदेश ) .
वो जिसको भी मिलते हैं ,
'आम ' को ख़ास बना देते हैं।
ये भी कमाल का 'पीर 'है इश्क ,
छोड़ देता है मुरीद बना के।
बा -हवस पाँव न रखियो कभी इस राह के बीच ,
कूचा -ए -इश्क है ये रहगुज़र आम नहीं।
(इश्क की गलियां हैं ये -ना -मुराद !आम रास्ता नहीं है ).
ये इश्क नहीं आसाँ ,एक आग का दरिया है -
और डूब के जाना है।
rekhta.org/couplets/maktab-e-ishq-kaa-dastuur-niraalaa-dekhaa-meer-tahir-ali-rizvi-couplets
maktab-e-ishq ka dastur nirala dekha| Complete Sher of Meer Tahir Ali Rizvi at Rekhta.org
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