गुरुवार, 12 अक्तूबर 2017

न प्रारेण नापानेन मर्त्यो जीवति कश्चन| इतरेण तु जीवन्ति यस्मिन्नेतावुपाश्रितो | | (कठोपनिषद ,द्वितीय अध्याय दूसरी वल्ली ,पांचवां श्लोक) भावसार :इस सृष्टि में ब्रह्म ही एकमात्र चेतन शक्ति है ,जो वनस्पति ,जीव -जंतु ,पशु -पक्षी व सभी मनुष्यों के जीवन का आधार और कारण है। इसी शक्ति से ये सभी जीवन पाते हैं ,वृद्धि करते हैं तथा क्रिया करते हैं। दूसरा तत्व जड़ है जिसकी सभी क्रियाएं इस चेतन तत्व के कारण ही होतीं हैं। (प्रकृति स्वयं जड़ है ,ब्रह्म की ही एक शक्ति -'माया शक्ति' है जिसका ब्रह्म से संयोग होने पर ही यह प्रकृति बनके प्रकटित होती है। ).

न प्रारेण नापानेन मर्त्यो जीवति कश्चन| 

इतरेण तु जीवन्ति यस्मिन्नेतावुपाश्रितो | | (कठोपनिषद ,द्वितीय अध्याय दूसरी वल्ली ,पांचवां श्लोक)

भावसार :इस सृष्टि में ब्रह्म ही एकमात्र चेतन शक्ति है ,जो वनस्पति ,जीव -जंतु ,पशु -पक्षी व सभी मनुष्यों के जीवन का आधार और कारण है। इसी शक्ति से ये सभी जीवन पाते हैं ,वृद्धि करते हैं तथा क्रिया करते हैं।

दूसरा तत्व जड़ है जिसकी सभी क्रियाएं इस चेतन तत्व के कारण ही होतीं हैं। (प्रकृति स्वयं जड़ है ,ब्रह्म की ही एक शक्ति -'माया शक्ति' है जिसका ब्रह्म से संयोग होने पर ही यह प्रकृति बनके प्रकटित होती है। ).

मनुष्य के जीवन का आधार भी यही आत्मतत्व है। प्राण एवं अपान  भी इसी के आश्रय में अपनी क्रिया करते हैं। दूसरा तत्व जड़ है जो हमारा पंचभौतिक शरीर है।

जब यह आत्मतत्व शरीर से अलग हो जाता है तो प्राण भी अपनी क्रिया बंद कर देता है जिससे मनुष्य मर जाता है। लेकिन इस क्रिया में न जड़ (शरीर )मरता है न चेतन  आत्मा। बल्कि दोनों का संबंध विच्छेद हो जाता है। (आत्मा तो अजर -अमर -अविनाशी चेतन तत्व कहा गया है और यह पांच तत्वों का पुतला ऊर्जा का पुंजमात्र विखंडित होकर अपने मूल तत्वों -आकाश -वायु -अग्नि -जल -पृथ्वी में विलीन हो जाता है। ऊर्जा का संरक्षण हो जाता है।

आत्मा तो स्वयं: भू संरक्षित तत्व है ही।इसका 'होना 'इज़्नेस शाश्वत  है। जब इसे एक शरीर और उसके साथ एक सूक्ष्म शरीर चतुष्टय -मन -बुद्धि -चित्त-अहंकार मिल जाता है  यह जीव -आत्मा कहलाने लगता है जो आत्मा से अलग नहीं है।

समष्टि के स्तर पर इसे ही ब्रह्म (परमात्मा )कहा गया है। माया में प्रतिबिंबित ब्रह्म ,माया से आच्छादित ब्रह्म को ही ईश्वर कहा गया  है।

जीवन का आधार यही आत्म चेतना है जो सभी प्राणियों के जीवन का आधार है। जड़ में चेतना का संसार इसी आत्मतत्व से होता है।  

https://www.youtube.com/watch?v=6dNAG38cveI

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