शुक्रवार, 18 अक्टूबर 2013

फैशनेबुल (buzz word )है इन दिनों योगा। लेकिन योग के नाम पर क्रेश प्रोग्रेम बेचा जा रहा है

फैशनेबुल  (buzz word )है इन दिनों योगा। लेकिन योग के नाम पर क्रेश प्रोग्रेम बेचा जा रहा है 



उछल कूद का, पी टी का ,चंद कसरतों का जिसे खरीद कर लोग अपने आपको योगी बूझने लगते हैं। 




जितना ज्यादा पसीना निकालने वाला प्रोग्रेम उतना ही ज्यादा दाम मिलेगा आपको कथित योगा का बाज़ार में।



संस्कृत साहित्य (वैदिक साहित्य ),पुराण आदि में योग शब्द प्रयुक्त हुआ है। जिसका अर्थ आत्मा 

का आत्माओं के पिता परमात्मा से   मेलमिलाप बतलाया गया है ,मिलन मनाना बतलाया 

समझाया गया है। 

संयोगो योग इत्युक्तो जीवात्मा परमात्मनो :
        
                                             (गरुण पुराण )

"आत्मा का परमात्मा से मिलन  ही योग है। यह  मिलन मन को पवित्र किये बिना ऊर्ध्व गति 

दिए बिना परमात्मा को प्रेम किये बिना मुमकिन नहीं होता है।

श्रीमद भागवतम में कहा गया है :


एतावान योग आदिष्टो मच्छिश्यै :  सनकादिभि :

सर्वतो मन आकृष्य मययद्वावेश्यते यथा (श्रीमद भागवतम )

"'मन को भौतिक जगत के सभी पदार्थों से हटाकर एक परमात्मा में ही पूरी तरह लगाना असल योग है "



ज्यादातर प्रकाशनों और संस्थाओं ने जो योग से सम्बद्ध हैं योग   के आध्यात्मिक पक्ष की अनदेखी ही की है। योग के नाम पर वे चंद 

आसन ,भौतिक पक्ष ही योग का बेच रहे हैं। अधूरा योग है यह। मन की शुद्धि के बिना आत्मा की प्यास नहीं बुझेगी। लोगों को दिव्य 

अनुभव की लालसा रहती है जो इसीलिए पूरी नहीं हो पाती है। 



The craze for Yoga has definitely increased around the globe ,but invariably in the name of "Yoga ", only

physical exercises are taught ,and people doing them feel they have become Yogis .Actually ,the word "Yoga

"does not exist in the Sanskrit language or in the Vedic scriptures .The proper word is "Yog ",which means

"to unite ."In this context ,it means to unite the individual soul with the Supreme soul .

संयोगो योग इत्युक्तो जीवात्मा परमात्मनो :(गरुण पुराण )

"The union of the individual soul with God is Yog ."This

 union is achieved by elevating ,purifying ,and focusing the 

mind lovingly upon Him .

The Shreemad Bhagavatam states :


एतावान योग आदिष्टो मच्छिश्यै :  सनकादिभि :

सर्वतो मन आकृष्य मययद्वावेश्यते यथा (श्रीमद भागवतम )

'True Yog means removing the mind from all the material 

objects of attachment ,and fixing it completely on God ."

Most publications and Yog institutions in the modern world

have not  endeavored to highlight the mental and spiritual 

aspects of Yog ,and in the name  of "Yoga,"teach sincere 

aspirants only physical exercises and incomplete 

meditational techniques .Without emphasis on the 

purification of the mind ,the hunger of the soul remains 

unaddressed .Those people who have deeper spiritual 

sanskars yearn for a genuine Divine experience .That is the 

reason their inner urge to understand and experience Indian 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें