सम्पूर्ण योग (योगासन और योग का ध्यान -मनन पक्ष )के
लिए ब्रह्म मुहूर्त का समय सबसे
उपयुक्त क्यों माना गया है ?
अमृत वेला में हमारे उदर (आमाशय या पेट )और अंतड़ियों की गतिविधियाँ विश्राम की अवस्था में तकरीबन आ जाती है। दिमाग की स्लेट भी तकरीबन खाली रहती है।चेतना में इस वक्त विशेष कुछ नहीं होता। एक तरह से निर्विचार होता है इस समय मन।वातावरण भी सहयोगी होता है ,इक्का दुक्का पक्षियों का कलरव बड़ा भला लगता है। प्रकृति सहयोग करती है। सुबह का मौन भी बड़ा भला लगता है। सुबह का अपना एक संगीत भी तो है। वातावरण में इस समय किसी भी प्रकार का ध्यान भंग करने वाला शोर शराबा भी नहीं होता है। ऐसे में ध्यान भी आसानी से टिकता है।
भले पेशियाँ थोड़ी सख्त पड़ी होती हैं इस समय। लेकिन योगासन सत्र के बाद फ़ौरन सुनम्य भी हो जाती हैं।
अब क्योंकि उच्चतर अक्षांशों पर बसे स्थानों पर ग्रीष्म से शरद के बीच सूर्योदय के समय में एक बड़ा अंतर देखने को मिलता है इसलिए इस समय की अवधि को नाश्ते से दो घंटे पहले की अवधि माना जा सकता है। संध्या गो -धूलि के गिर्द दो घंटे का समय भी अनुकूल रहता है। लेकिन ध्यान रहे योगासन किसी भी सूरत में भोजन करने के तीन घंटे बाद ही कियॆ जाए। भोजन चाहे सुबह का हो या शाम का।
योग आसन और सामान्य कसरत में क्या फर्क है ?
कसरत का सारा दारोमदार सारा फॉकस ,सारी तवज्जो काया को लाभ पहुंचाना है।कसरत के बिना पेशीय अपव्यय होता है ,अस्थियाँ
कमज़ोर पड़ती हैं ,ऑक्सीजन ज़ज्बी की क्षमता घटने लगती है। अचनाक कोई शारीरिक क्षमता का काम आ पड़े देर तक काम करना
पड़ जाए तो पहाड़ सा लगने लगे। लेकिन कसरत पेशी से काम लेती है।
Exercises cause catabolism ,or breakdown of cells .
Catabolism :(katabolism )is the production of energy through the conversion of complex molecules into simpler
ones usually with the release oh heat .Workouts that lead to a reduction in mass are known as catabolic .
कैटाबालिज्म एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें जटिल अणु टूट कर सरल रूप लेते हैं। अक्सर ताप ऊर्जा (ऊष्मा )मुक्त होती है इस प्रक्रिया
में। कोशिकाओं की भी टूट फूट होती है।
योगासन महत्वपूर्ण अंगों पर अपना असर दिखाते हैं। स्नायु और ग्रंथियों पर काम करते हैं। स्नायुविक तंत्र (nervous system
)विद्युत् रासायनिक बदलाव पैदा करते हैं। रक्त में ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ाते हैं। कायिक तापमान में गिरावट लाते हैं। तथा
अपचयन की दरों(metabolic rates ) को कमतर करते हैं।
योगासन इसीलिए इतने असरकारी सिद्ध होते हैं .
जीवन जीने की कला वही है जो जीवन के सभी पहलुओं को समाहित किये हो -भौतिक ,मानसिक ,संवेगात्मक ,बौद्धिक और
आध्यात्मिक पक्षों से रु -ब -रु हो।भले योग का केंद्रीय लक्ष्य आध्यात्मिक उत्कर्ष की ओर मानव को ले जाना है लेकिन इसमें
समाहित भौतिक आसनों का सभी को यकसां लाभ मिलता है भले उनका आध्यात्मिक लक्ष्य कुछ भी रहा हो।
योग आसन हमारी काया ,चित्त (मन )और संवेगों में सामंजस्य स्थापित करते हैं। भौतिक धरातल पर हमारे महत्वपूर्ण कायिक अंग
,पेशियाँ स्नायु (तंत्रिकाएं ,नर्व्ज़ )हो सकता है अपना काम ठीक से अंजाम न दे पा रहे हों।आसन उनमें एक समन्वयन ,समायोजन ले
आते हैं। ऐसे में काया पर आसनों का बड़ा अनुकूल प्रभाव पड़ता है।
मानसिक धरातल पर मनुष्य नकारात्मक विचार ,राग द्वेष पाले रहता है। ऐसे में पेशीय गठानें शरीर के किसी भी हिस्से में पनप
सकती हैं -ग्रीवा में यही गठानें सर्विकल स्पोन्डलाइटिस (Cervical spondylitis ),चेहरे पर न्युराल्जिया (Neuralgia) के रूप में
प्रगटित हो सकती हैं। हर मानसिक ग्रन्थि (राग द्वेष ,ईर्ष्या )की गठान का एक संगत प्रभाव हमारे शरीर को अपनी लपेट में लेता है।
नकारात्मक भावों के संगत एक गठान पेशीय गठान बन के मुखरित हो सकती है।
मन शरीर को असर ग्रस्त करता है शरीर फिर मन को भी करता है।
क्रिया प्रतिक्रिया युगल है यह।
भावात्मक (रागात्मक ,संवेगात्मक दवाब ),इमोशनल टेंशन फेफड़ों के निर्बाध काम में खलल पैदा कर सकता है। श्वसन सम्बन्ध
खलल यहाँ तक के दमा उभर सकता है दमे का उत्प्रेरक तत्व है रागात्मक दवाब। योग का मकसद इन तमाम गठानों को खोलना है।
दीगर है कि योग के पूरे दोहन के लिए इसका ध्यान मनन वाला पक्ष भी
सक्रीय किया जाना चाहिए। भले कई पढ़े लिखे उसे पेसिव
मेडिटेशन कहते हैं।
ध्यान -मनन -मंथन (रूप ध्यान )हमारे चित्त को शुद्ध करता है। राग
द्वेष को मेट देता है। हमारा अंतस शांत हो जाता है।
Proper combination of aasans ,pranayam ,subtle body
relaxation ,and meditation ,tackle these knots ,both at the
physical and mental levels .
जीवन क्षम ऊर्जा जागृत होती है। मन हल्का हो जाता है।प्रसन्न बदन
और प्रफुल्ल एक साथ। सर्वप्रकार संतुलित। अब तक यही ऊर्जा
रागद्वेष के चलते प्रसुप्त पड़ी थी।
दमा ,मधुमेह ,उच्च रक्त चाप (Hypertension ),जोड़ों के दर्द (arthritis ),पाचन सम्बन्धी विकारों में अलावा इसके कई लाइलाज
पुराने पड़े मानवीय संरचना से ताल्लुक रखने वाले रोगों में एक आनुषांगिक चिकित्सा के रूप में योग आसनों का अपना स्थान
बरकरार है।
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