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प्रभु के स्मरण मात्र से ही लोक -परलोक सुधर जाते हैं। इस मृत्यु लोक से कुछ भी साथ नहीं जाता ,अगर
जाता है तो केवल कर्म का फल। भागवत की कथा का वाचन और श्रवण दोनों ही फलदायी हैं। प्रभु की स्तुति
,सत्संग और कर्म ही साथ रहते हैं।इसलिए जितना भी कर सको और उनका नाम जप सको उतना अधिक
लाभकारी है। प्रभु की कथा श्रवण करने और उनके स्मरण से अपना लोक और परलोक सुधारें ,राधे राधे का
जाप करें।
--------------------देवकीनंदन ठाकुर
कृष्ण यानी आकर्षित करने वाला
श्रद्धा से पुकारने पर भगवान दौड़े चले आते हैं। जिस प्रकार गज की पुकार पर भगवान श्री नारायण दौड़े -दौड़े आये ,उसी प्रकार श्रद्धा से यदि कोई उन्हें पुकारता है तो वे दौड़े चले आते हैं।
_____________ देवकीनंदन ठाकुर
न स गर्भ गता भूया : मुक्ति भागी न संशय :
कौशिकी संहिता में लिखा है कि श्रीमद्भागवत की कथा ही अमर कथा है। भगवान शिव ने पार्वती को अमर कथा सुनाई ,ये तो हम बार बार सुनते रहते हैं , पढ़ते रहते हैं . . लेकिन अमर कथा कौन सी है ......... तो वहाँ लिखा है कि श्रीमद्भागवत की कथा ही अमर कथा है ,और भागवत में लिखा है ......... न स गर्भ गता भूया : मुक्ति भागी न संशय : अर्थात जिसने भागवत की कथा श्रद्धा से सुन ली वह माँ के गर्भ में दोबारा नहीं आएगा। भगवान कृष्ण चाहते थे कि यह कथा मेरे भक्तों तक पहुँच जाए। भगवान शिव चाहते थे कि पार्वती जी और शिव के बीच में रहे....... और भगवान कृष्ण जानते थे कि कलियुग में लोग साधना तो कर नहीं पायेंगें और भगवान तो सबका भला चाहते हैं ....... . भगवान कृष्ण ने चाहा कि ये कथा मेरे भक्तों तक पहुँच जाए ,तो भगवान शुकदेव को तोते के रूप में ,बल्कि अंडे के रूप में वहाँ उपस्थित किया ...........तो विगलित अंडे के रूप में भगवान् शुकदेव वहाँ थे। शिव समाधि में पहुंचे और कथा सुनानी प्रारम्भ की।
यह शरीर छूटने के बाद वह वहाँ पहुँच जाएगा ,जहां से दोबारा फिर जन्म नहीं लेना पड़ेगा ,सदैव आनंद रहेगा। शुकदेव भगवान भी यह कथा सुनने लगते हैं ,पार्वतीजी सुनती जा रही हैं ,भगवान शंकर के नेत्र बंद थे ,समाधि में ......योग में स्थित होकर सुना रहे थे। भागवत समाधि भाषा कहलाती है ,समाधि की भाषा है। सभी लोग इसका अर्थ जल्दी नहीं समझ पाते......अच्छा !पार्वती अम्बा हूँ !हूँ ! करती रहीं और दसवां स्कंध समाप्त हुआ तो नींद आ गई उन्हें। शुकदेव भगवान हूँ !हूँ !करते रहे और बारहवें स्कंध के बाद जब आँख खुली ........पार्वतीजी सो रहीं थीं। हूँ ! हूँ ! कौन कर रहा था ?पार्वती से पूछा तो उन्होंने कहा प्रभु दशम स्कंध की समाप्ति तक मैंने बहुत सावधान होकर सुना .......फिर मेरी आँख लग गई। पर हूँ !हूँ !कौन कर रहा था फिर देखा तो शुकदेव तोते के रूप में .......शंकर ने चाहा इसको मार दें !तो शंकर ने त्रिशूल उठाया ,और चला दिया ,शुकदेवजी वहाँ से भागे और वेदव्यासजी की पत्नी पिंगला के पेट में चले गए ,वे बाल सुखा रहीं थीं ,उसी समय उनको जम्हाई आई।
पार्वतीजी बाद में बोलीं भगवान शंकर से ......प्रभु ,इसीलिए तो आपको लोग भोला शंकर कहते हैं एक ओर तो आप कहते हो जो भागवत की कथा सुन ले वो अमर हो जाता है ......औऱ दूसरी ओर आप शुकदेव को मारना चाहते हो ......जब वह अमर कथा सुन ही चुका है तो मरेगा कैसे !
ऐसा मान लो कि भगवान कृष्ण का ही संकल्प है। बारह वर्ष तक शुकदेव जी गर्भ में रहे ,ऐसा शास्त्र कहते हैं ,और वहीँ भगवत चिंतन ,आत्मचिंतन करते रहे . व्यासजी ने प्रार्थना की ,कौन ऐसा योगी ,पत्नी के गर्भ में आगया जो बाहर आना ही नहीं चाहता।
शुकदेव भगवान ने कहा मैं बाहर तब आऊंगा जब मुझे यह वचन मिलजाए कि भगवान की माया मुझपर हावी नहीं होगी। (हम सब माया के ही तो दास हैं जबकि माया भगवान की दासी है ,उनकी बहिरंगा शक्ति है एक्सटर्नल एनर्जी है ). जब शुकदेव भगवान प्रकट हुए और थोड़े समय के बाद वह जवान हुए .....इतने सुन्दर थे ,भगवान कृष्ण का चिंतन करते -करते स्वयं कृष्ण ही हो गए थे। भागवत में उनके स्वरूप का वर्णन किया गया है।
श्रीमद्भागवत का अर्थ
श्रीमद्भागवत में प्रयुक्त शब्द श्री का अर्थ है -ऐश्वर्य संपन्न भगवान ,मद शब्द स्वयं भगवान ने अपने लिए मेरा के अर्थ में प्रयोग किया है और भागवत शब्द में पञ्च महाभूतों का संकेत है।
भागवत =भ.अ.ग.व. त.=भ. का अभिप्राय भूमि से ,अ. का अग्नि से ,ग का गगन (आकाश )से ,व. का वायु से और त. का तोर अर्थात जल से है। इसीप्रकार भगवान में प्रयुक्त शब्दों का अभिप्राय है इसमें न शब्द का अर्थ नीर अर्थात जल है। इस प्रकार भगवान से आशय उस शक्ति से है जो पञ्च महाभूतों से निर्मित सृष्टि का नियंता है और श्रीमद्भागवत से आशय उस सर्वशक्ति संपन्न द्वारा पञ्च महाभूतों के कल्याण हेतु कहे गए वचनामृत से है।
भ शब्द भजन हेतु है। क शब्द कर्म का प्रतीक है। कर्म दो प्रकार के होते हैं। सकाम और निष्काम। इसमें सिर्फ निष्काम कर्म की ही महत्ता है अत : क शब्द आधा ही लिया गया है और ति शब्द त्याग की भावना दर्शाता है। अस्तु निष्काम करते हुए त्याग की भावना से जो भजन किया जाता है उसे ही भक्ति कहते हैं और भक्ति ही परमात्मा अथवा भगवान को प्राप्त करने का माध्यम है।
जिस कथा को हम श्रवण करते हैं हमें ज्ञात होना चाहिए कि देवतागण भी इस कथा को श्रवण करने पृथ्वी पर आये थे ,जब शुकजी महाराज राजा परीक्षित को कथा श्रवण करा रहे थे उस समय देवता अमृत लेकर आये और शुकजी महाराज से कहा कि ये अमृत आप राजा परीक्षित को पान करा दीजिये और इसके बदले में कथा का पान हमें करा दीजिये।
(ज़ारी )
प्रभु के स्मरण मात्र से ही लोक -परलोक सुधर जाते हैं। इस मृत्यु लोक से कुछ भी साथ नहीं जाता ,अगर
जाता है तो केवल कर्म का फल। भागवत की कथा का वाचन और श्रवण दोनों ही फलदायी हैं। प्रभु की स्तुति
,सत्संग और कर्म ही साथ रहते हैं।इसलिए जितना भी कर सको और उनका नाम जप सको उतना अधिक
लाभकारी है। प्रभु की कथा श्रवण करने और उनके स्मरण से अपना लोक और परलोक सुधारें ,राधे राधे का
जाप करें।
--------------------देवकीनंदन ठाकुर
कृष्ण यानी आकर्षित करने वाला
श्रद्धा से पुकारने पर भगवान दौड़े चले आते हैं। जिस प्रकार गज की पुकार पर भगवान श्री नारायण दौड़े -दौड़े आये ,उसी प्रकार श्रद्धा से यदि कोई उन्हें पुकारता है तो वे दौड़े चले आते हैं।
_____________ देवकीनंदन ठाकुर
न स गर्भ गता भूया : मुक्ति भागी न संशय :
कौशिकी संहिता में लिखा है कि श्रीमद्भागवत की कथा ही अमर कथा है। भगवान शिव ने पार्वती को अमर कथा सुनाई ,ये तो हम बार बार सुनते रहते हैं , पढ़ते रहते हैं . . लेकिन अमर कथा कौन सी है ......... तो वहाँ लिखा है कि श्रीमद्भागवत की कथा ही अमर कथा है ,और भागवत में लिखा है ......... न स गर्भ गता भूया : मुक्ति भागी न संशय : अर्थात जिसने भागवत की कथा श्रद्धा से सुन ली वह माँ के गर्भ में दोबारा नहीं आएगा। भगवान कृष्ण चाहते थे कि यह कथा मेरे भक्तों तक पहुँच जाए। भगवान शिव चाहते थे कि पार्वती जी और शिव के बीच में रहे....... और भगवान कृष्ण जानते थे कि कलियुग में लोग साधना तो कर नहीं पायेंगें और भगवान तो सबका भला चाहते हैं ....... . भगवान कृष्ण ने चाहा कि ये कथा मेरे भक्तों तक पहुँच जाए ,तो भगवान शुकदेव को तोते के रूप में ,बल्कि अंडे के रूप में वहाँ उपस्थित किया ...........तो विगलित अंडे के रूप में भगवान् शुकदेव वहाँ थे। शिव समाधि में पहुंचे और कथा सुनानी प्रारम्भ की।
यह शरीर छूटने के बाद वह वहाँ पहुँच जाएगा ,जहां से दोबारा फिर जन्म नहीं लेना पड़ेगा ,सदैव आनंद रहेगा। शुकदेव भगवान भी यह कथा सुनने लगते हैं ,पार्वतीजी सुनती जा रही हैं ,भगवान शंकर के नेत्र बंद थे ,समाधि में ......योग में स्थित होकर सुना रहे थे। भागवत समाधि भाषा कहलाती है ,समाधि की भाषा है। सभी लोग इसका अर्थ जल्दी नहीं समझ पाते......अच्छा !पार्वती अम्बा हूँ !हूँ ! करती रहीं और दसवां स्कंध समाप्त हुआ तो नींद आ गई उन्हें। शुकदेव भगवान हूँ !हूँ !करते रहे और बारहवें स्कंध के बाद जब आँख खुली ........पार्वतीजी सो रहीं थीं। हूँ ! हूँ ! कौन कर रहा था ?पार्वती से पूछा तो उन्होंने कहा प्रभु दशम स्कंध की समाप्ति तक मैंने बहुत सावधान होकर सुना .......फिर मेरी आँख लग गई। पर हूँ !हूँ !कौन कर रहा था फिर देखा तो शुकदेव तोते के रूप में .......शंकर ने चाहा इसको मार दें !तो शंकर ने त्रिशूल उठाया ,और चला दिया ,शुकदेवजी वहाँ से भागे और वेदव्यासजी की पत्नी पिंगला के पेट में चले गए ,वे बाल सुखा रहीं थीं ,उसी समय उनको जम्हाई आई।
पार्वतीजी बाद में बोलीं भगवान शंकर से ......प्रभु ,इसीलिए तो आपको लोग भोला शंकर कहते हैं एक ओर तो आप कहते हो जो भागवत की कथा सुन ले वो अमर हो जाता है ......औऱ दूसरी ओर आप शुकदेव को मारना चाहते हो ......जब वह अमर कथा सुन ही चुका है तो मरेगा कैसे !
ऐसा मान लो कि भगवान कृष्ण का ही संकल्प है। बारह वर्ष तक शुकदेव जी गर्भ में रहे ,ऐसा शास्त्र कहते हैं ,और वहीँ भगवत चिंतन ,आत्मचिंतन करते रहे . व्यासजी ने प्रार्थना की ,कौन ऐसा योगी ,पत्नी के गर्भ में आगया जो बाहर आना ही नहीं चाहता।
शुकदेव भगवान ने कहा मैं बाहर तब आऊंगा जब मुझे यह वचन मिलजाए कि भगवान की माया मुझपर हावी नहीं होगी। (हम सब माया के ही तो दास हैं जबकि माया भगवान की दासी है ,उनकी बहिरंगा शक्ति है एक्सटर्नल एनर्जी है ). जब शुकदेव भगवान प्रकट हुए और थोड़े समय के बाद वह जवान हुए .....इतने सुन्दर थे ,भगवान कृष्ण का चिंतन करते -करते स्वयं कृष्ण ही हो गए थे। भागवत में उनके स्वरूप का वर्णन किया गया है।
श्रीमद्भागवत का अर्थ
श्रीमद्भागवत में प्रयुक्त शब्द श्री का अर्थ है -ऐश्वर्य संपन्न भगवान ,मद शब्द स्वयं भगवान ने अपने लिए मेरा के अर्थ में प्रयोग किया है और भागवत शब्द में पञ्च महाभूतों का संकेत है।
भागवत =भ.अ.ग.व. त.=भ. का अभिप्राय भूमि से ,अ. का अग्नि से ,ग का गगन (आकाश )से ,व. का वायु से और त. का तोर अर्थात जल से है। इसीप्रकार भगवान में प्रयुक्त शब्दों का अभिप्राय है इसमें न शब्द का अर्थ नीर अर्थात जल है। इस प्रकार भगवान से आशय उस शक्ति से है जो पञ्च महाभूतों से निर्मित सृष्टि का नियंता है और श्रीमद्भागवत से आशय उस सर्वशक्ति संपन्न द्वारा पञ्च महाभूतों के कल्याण हेतु कहे गए वचनामृत से है।
भ शब्द भजन हेतु है। क शब्द कर्म का प्रतीक है। कर्म दो प्रकार के होते हैं। सकाम और निष्काम। इसमें सिर्फ निष्काम कर्म की ही महत्ता है अत : क शब्द आधा ही लिया गया है और ति शब्द त्याग की भावना दर्शाता है। अस्तु निष्काम करते हुए त्याग की भावना से जो भजन किया जाता है उसे ही भक्ति कहते हैं और भक्ति ही परमात्मा अथवा भगवान को प्राप्त करने का माध्यम है।
जिस कथा को हम श्रवण करते हैं हमें ज्ञात होना चाहिए कि देवतागण भी इस कथा को श्रवण करने पृथ्वी पर आये थे ,जब शुकजी महाराज राजा परीक्षित को कथा श्रवण करा रहे थे उस समय देवता अमृत लेकर आये और शुकजी महाराज से कहा कि ये अमृत आप राजा परीक्षित को पान करा दीजिये और इसके बदले में कथा का पान हमें करा दीजिये।
(ज़ारी )
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