वंशवेळ विज्ञान के माहिर भी चकराये
दुर्गा से बकरी मेमना तक का सफर
अक्सर एक श्रेष्ठ परम्परा श्रेश्ठता को ही जन्म देती है लेकिन राजनीति इसे झुठला देती है इसका अतिक्रमण कर जाती है। सिंह -वाहिनी दुर्गा का दर्ज़ा मिला था कभी कांग्रेस इंदिरा की पार्टी को। और वह भी तत्कालीन नेता प्रतिपक्ष श्री अटल बिहारी बाजपेयी से। आज लोग इसे बकरी -मेमना या फिर माँ -बेटा पार्टी भी कहने लगे हैं। कवियों की कृति का प्रतीक और बिम्ब विधान बन रही है आज बकरी मेमना पार्टी। एक रूपक बन गया है माँ -बेटा पार्टी का। शुक्रिया अदा किया जाए मेडम का ,जो काम आनुवंशिकी हज़ारों साल में भी नहीं कर सकती थी ,वह मेडम ने चंद सालों में कर दिखाया। वंशवेळ विज्ञानी जितना मर्जी माथा -पच्ची कर लें उन्हें ये गुत्थी समझ में नहीं आयेगी। राजनीति में कुछ भी हो सकता है।हद तो यह है एक सिंह परम्परा के परम पुरुष से बकरी मिमियाके निवाला छीनना चाहती है। कोई नादानी सी नादानी हैं।
और वह मेमना बाजू चढ़ाते चढ़ाते मिमियाना ही भूल जाता है। मेडम भाषण पढ़ती हैं तो लगता है कलमा पढ़ रही हैं। मर्सिया और कलमे में फिर भी लया ताल होती है यहाँ तो हिज्जे करके भी ठीक से बात स्पस्ट नहीं होती।
चर्च भी शर्मिंदा होगा इन्हें अपना एजेंट बनाके।
एक प्रतिक्रिया ब्लॉग पोस्ट :
जन्मदिन ये मुबारक हो
'' इंदिरा'' की जनता को ,
भारतीय नारी पर Shalini Kaushik
दुर्गा से बकरी मेमना तक का सफर
अक्सर एक श्रेष्ठ परम्परा श्रेश्ठता को ही जन्म देती है लेकिन राजनीति इसे झुठला देती है इसका अतिक्रमण कर जाती है। सिंह -वाहिनी दुर्गा का दर्ज़ा मिला था कभी कांग्रेस इंदिरा की पार्टी को। और वह भी तत्कालीन नेता प्रतिपक्ष श्री अटल बिहारी बाजपेयी से। आज लोग इसे बकरी -मेमना या फिर माँ -बेटा पार्टी भी कहने लगे हैं। कवियों की कृति का प्रतीक और बिम्ब विधान बन रही है आज बकरी मेमना पार्टी। एक रूपक बन गया है माँ -बेटा पार्टी का। शुक्रिया अदा किया जाए मेडम का ,जो काम आनुवंशिकी हज़ारों साल में भी नहीं कर सकती थी ,वह मेडम ने चंद सालों में कर दिखाया। वंशवेळ विज्ञानी जितना मर्जी माथा -पच्ची कर लें उन्हें ये गुत्थी समझ में नहीं आयेगी। राजनीति में कुछ भी हो सकता है।हद तो यह है एक सिंह परम्परा के परम पुरुष से बकरी मिमियाके निवाला छीनना चाहती है। कोई नादानी सी नादानी हैं।
और वह मेमना बाजू चढ़ाते चढ़ाते मिमियाना ही भूल जाता है। मेडम भाषण पढ़ती हैं तो लगता है कलमा पढ़ रही हैं। मर्सिया और कलमे में फिर भी लया ताल होती है यहाँ तो हिज्जे करके भी ठीक से बात स्पस्ट नहीं होती।
चर्च भी शर्मिंदा होगा इन्हें अपना एजेंट बनाके।
एक प्रतिक्रिया ब्लॉग पोस्ट :
अदा रखती थी मुख्तलिफ ,इरादे नेक रखती थी ,
वतन की खातिर मिटने को सदा तैयार रहती थी .
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मोम की गुड़िया की जैसी ,वे नेता वानर दल की थी ,,
मुल्क पर कुर्बां होने का वो जज़बा दिल में रखती थी .
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पाक की खातिर नामर्दी झेली जो हिन्द ने अपने ,
वे उसका बदला लेने को मर्द बन जाया करती थी .
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मदद से सेना की जिसने कराये पाक के टुकड़े ,
शेरनी ऐसी वे नारी यहाँ कहलाया करती थी .
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बना है पञ्च-अग्नि आज छुपी है पीछे जो ताकत ,
उसी से चीन की रूहें तभी से कांपा करती थी .
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जहाँ दोयम दर्जा नारी निकल न सकती घूंघट से ,
वहीँ पर ये आगे बढ़कर हुकुम मनवाया करती थी .
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कान जो सुन न सकते थे औरतों के मुहं से कुछ बोल ,
वो इनके भाषण सुनने को दौड़कर आया करती थी .
...........................................................................
न चाहती थी जो बेटी का कभी भी जन्म घर में हो ,
मिले ऐसी बेटी उनको वो रब से माँगा करती थी .
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जन्मदिन ये मुबारक हो उसी इंदिरा की जनता को ,
जिसे वे जान से ज्यादा हमेशा चाहा करती थी .
वतन की खातिर मिटने को सदा तैयार रहती थी .
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मोम की गुड़िया की जैसी ,वे नेता वानर दल की थी ,,
मुल्क पर कुर्बां होने का वो जज़बा दिल में रखती थी .
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पाक की खातिर नामर्दी झेली जो हिन्द ने अपने ,
वे उसका बदला लेने को मर्द बन जाया करती थी .
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मदद से सेना की जिसने कराये पाक के टुकड़े ,
शेरनी ऐसी वे नारी यहाँ कहलाया करती थी .
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बना है पञ्च-अग्नि आज छुपी है पीछे जो ताकत ,
उसी से चीन की रूहें तभी से कांपा करती थी .
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जहाँ दोयम दर्जा नारी निकल न सकती घूंघट से ,
वहीँ पर ये आगे बढ़कर हुकुम मनवाया करती थी .
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कान जो सुन न सकते थे औरतों के मुहं से कुछ बोल ,
वो इनके भाषण सुनने को दौड़कर आया करती थी .
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न चाहती थी जो बेटी का कभी भी जन्म घर में हो ,
मिले ऐसी बेटी उनको वो रब से माँगा करती थी .
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जन्मदिन ये मुबारक हो उसी इंदिरा की जनता को ,
जिसे वे जान से ज्यादा हमेशा चाहा करती थी .
शालिनी कौशिक
[कौशल ]
[कौशल ]
सोमवार, 18 नवम्बर 2013
जन्मदिन ये मुबारक हो
'' इंदिरा'' की जनता को ,
भारतीय नारी पर Shalini Kaushik
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