सत्संग के फूल
भगवान (विष्णु रूप में श्रीकृष्ण )की दो पत्नियां हैं -एक भूदेवी (भूमि जिन्हें जगत माता कहा गया है )दूसरी श्रीदेवी (लक्ष्मी जी जो हम सबकी दूसरी माता हैं,विष्णु पत्नी होने के नाते ).
भगवान कहते ही उसे हैं जो भूमि -गगन -वायु -अग्नि -नीर (भ +ग +व+आ +न )(I की मात्रा ,आ का डंडा से अग्नि ,न से नीर ,ग से गगन ,भ से भूमि ) को नियंत्रित करता है।
दशरथ उसे कहा गया है जो दसों इन्द्रियों का स्वामी बन गया है जिसने इन्द्रिय (ऐंद्रीय )विजय प्राप्त कर ली है दसों इन्द्रियों को जीत लिया है उनका रथी (सारथी )बन गया है।हमारी देह को भी दशरथ कहा गया है।नवद्वारपुर भी कहा गया है क्योंकि इसके नौ द्वार हैं -दो नासिका छिद्र (नथुने ) ,दो कान ,दो आँख ,एक मुंह ,और मल और मूत्र द्वार।
रावण उसे कहा गया है जो संताप दे अपने दसों मुखों से चुभन दे ,कैक्टस हों जिसकी अहंकार से सनी वाणी में।
दशरथ पुत्र जन्म, सुन काना ,
मानों ,ब्रह्मानंद समाना।
दशरथ ने जब राम जन्म की बात सुनी तो वह आनंद से भर गए। आनंद हमारा निज स्वरूप है।सुख तो अस्थाई है मन की वस्तु है। इन्द्रियों का भोगविषय है। आनंद स्थाई है।
जो कानों से पी जाती है उसे कथा कहते हैं। कथा सुनने से दृष्टि बदल जाती है। पुत्र जन्म का समाचार सुनकर दशरथ की दृष्टि बदल गई। भागे भागे गुरु वशिष्ठ जी के पास गए -बोले मुझे आनंद हो गया। भाव यह है भक्ति ,ज्ञान से आदमी का दृष्टिकोण बदल जाता है।परमात्मा को देखके दशरथ खुद आनंद हो गए।
वशिष्ठ जी के पास पुन : गए बोले इन बालकों के नाम रखिये -
साधुता सार्थक हुई गुरुदेव की -उन्हें सच्चिदानंद मिल गए। आज जीवन धन्य हो गया इसी बात के लिए तो जी रहे थे। आज नारायण मिल गए। उन्होंने बालक को हाथों में उठाया और पहले चुपके से उसके चरण छू लिए -ये ही तो वह चरण हैं जहां से गंगा निकलीं हैं। थोड़ा ऊपर जाकर नाभि का स्पर्श किया -यही तो वह स्थान है जहां से भगवान के नाभि कमल से ही ब्रह्मा की उत्पत्ति होती है। जब भगवान की आँखों में देखा तो गुरु वशिष्ठ की समाधि लग गई।
जो जीव को मुक्ति देता है आनंद देता है जिनके अनेक नाम हैं पहले उनका नाम रखा -राम।जो जीव को आनंद देता है पूर्णता देता है जो भारत की भोर का पहला स्वर है-वह राम है । भारत के लोग तो जब किसी बेकार के आदमी की बात सुनाने लगो तो कहते हैं छोड़ो - छोड़ो राम राम राम क्या राग छेड़ दिया बंद करो यानी निंदा किसी की करते हैं तो भी राम राम कहते हैं ,आश्चर्य में भी भारत का आदमी राम राम कहता है शमशान में भी राम का नाम साथ जाता है -हरि का नाम सत्य है राम नाम सत्य है।सत्य में ही गति है। प्रसव की पीड़ा में माँ राम कहती है।दुःख में सब राम को ही याद करते हैं। राम के बाद क्रम में भरत का जन्म हुआ है। गुरु एवं सभी उनके नाम के बारे में कहते हैं - ये बालक बिलकुल रूप रंग में राम जैसा श्याम वर्णी है ।
विश्व भरण पोषण कर जोई
ताकर नाम भरत अस होई ।
पहले गुरुदेव ने सबसे छोटे बालक चौथे शिशु का नाम रखा। तीसरे बालक का सबसे बाद में बतलाया।
जाके सिमरन से रिपु नाशा,
नाम शत्रुघ्न वेदप्रकाशा।
जो अंत : बाह्य शत्रुओं से अयोध्या को बचाएगा ,वेद आदि की रक्षा करेगा वह शत्रुघन है।जो सब प्रकार से रक्षा करेगा अयोध्या की।
सबसे अंत में गुरु ने तीसरे बालक का नाम बतलाया -लक्षमण वैराग्य है। संत ,सतगुरुओं का धन वैराग्य है स्त्री का धन उसकी शीलता है लज्जा है मर्यादा है शील संकोच मर्यादा ही है उसका धन। वैसे ही सन्यासी का धन वैराग्य है। जिसके पास वैराग्य नहीं है उसकी साधुता शिथिल हो जाती है।
ब्राह्मण का धन जैसे ज्ञान है सदगुरु के पास धन है वैराग्य। गुरु के पास धन था वैराग्य का इसीलिए उन्होंने लक्षमण का नाम अंत में रखा -पति -पत्नी के बीच में भी जो रहता है 24 x7 जो लक्ष्मी जी को भी प्रिय है नारायण को भी। जिसके बिना दोनों सो नहीं सकते -जो शेष शैया है नारायण की वह लक्षमण है।लक्षमण वैराग्य का प्रतीक हैं। एक पल वो लक्ष्मण के बिना नहीं रहते ,जो उनकी प्रिवेसी में दखल नहीं देता और लक्षमण भी जिनके बिना एक पल भी न रह सके वह लक्षण धाम लक्ष्मण हैं। वह लक्षमण है शेष नाग।
लक्षण धाम राम प्रिय,
सकल जगत आधार ,
गुरु वशिष्ठ कही राखा
लक्षमण नाम उदार।
उसीके माथे पे तो ये सारी धरती टिकी है।ये सारा ब्रह्माण्ड उसी के मस्तक पर तो टिका है। वही तो सारे जगत का आधार हैं।
भगवान (विष्णु रूप में श्रीकृष्ण )की दो पत्नियां हैं -एक भूदेवी (भूमि जिन्हें जगत माता कहा गया है )दूसरी श्रीदेवी (लक्ष्मी जी जो हम सबकी दूसरी माता हैं,विष्णु पत्नी होने के नाते ).
भगवान कहते ही उसे हैं जो भूमि -गगन -वायु -अग्नि -नीर (भ +ग +व+आ +न )(I की मात्रा ,आ का डंडा से अग्नि ,न से नीर ,ग से गगन ,भ से भूमि ) को नियंत्रित करता है।
दशरथ उसे कहा गया है जो दसों इन्द्रियों का स्वामी बन गया है जिसने इन्द्रिय (ऐंद्रीय )विजय प्राप्त कर ली है दसों इन्द्रियों को जीत लिया है उनका रथी (सारथी )बन गया है।हमारी देह को भी दशरथ कहा गया है।नवद्वारपुर भी कहा गया है क्योंकि इसके नौ द्वार हैं -दो नासिका छिद्र (नथुने ) ,दो कान ,दो आँख ,एक मुंह ,और मल और मूत्र द्वार।
रावण उसे कहा गया है जो संताप दे अपने दसों मुखों से चुभन दे ,कैक्टस हों जिसकी अहंकार से सनी वाणी में।
दशरथ पुत्र जन्म, सुन काना ,
मानों ,ब्रह्मानंद समाना।
दशरथ ने जब राम जन्म की बात सुनी तो वह आनंद से भर गए। आनंद हमारा निज स्वरूप है।सुख तो अस्थाई है मन की वस्तु है। इन्द्रियों का भोगविषय है। आनंद स्थाई है।
जो कानों से पी जाती है उसे कथा कहते हैं। कथा सुनने से दृष्टि बदल जाती है। पुत्र जन्म का समाचार सुनकर दशरथ की दृष्टि बदल गई। भागे भागे गुरु वशिष्ठ जी के पास गए -बोले मुझे आनंद हो गया। भाव यह है भक्ति ,ज्ञान से आदमी का दृष्टिकोण बदल जाता है।परमात्मा को देखके दशरथ खुद आनंद हो गए।
वशिष्ठ जी के पास पुन : गए बोले इन बालकों के नाम रखिये -
साधुता सार्थक हुई गुरुदेव की -उन्हें सच्चिदानंद मिल गए। आज जीवन धन्य हो गया इसी बात के लिए तो जी रहे थे। आज नारायण मिल गए। उन्होंने बालक को हाथों में उठाया और पहले चुपके से उसके चरण छू लिए -ये ही तो वह चरण हैं जहां से गंगा निकलीं हैं। थोड़ा ऊपर जाकर नाभि का स्पर्श किया -यही तो वह स्थान है जहां से भगवान के नाभि कमल से ही ब्रह्मा की उत्पत्ति होती है। जब भगवान की आँखों में देखा तो गुरु वशिष्ठ की समाधि लग गई।
जो जीव को मुक्ति देता है आनंद देता है जिनके अनेक नाम हैं पहले उनका नाम रखा -राम।जो जीव को आनंद देता है पूर्णता देता है जो भारत की भोर का पहला स्वर है-वह राम है । भारत के लोग तो जब किसी बेकार के आदमी की बात सुनाने लगो तो कहते हैं छोड़ो - छोड़ो राम राम राम क्या राग छेड़ दिया बंद करो यानी निंदा किसी की करते हैं तो भी राम राम कहते हैं ,आश्चर्य में भी भारत का आदमी राम राम कहता है शमशान में भी राम का नाम साथ जाता है -हरि का नाम सत्य है राम नाम सत्य है।सत्य में ही गति है। प्रसव की पीड़ा में माँ राम कहती है।दुःख में सब राम को ही याद करते हैं। राम के बाद क्रम में भरत का जन्म हुआ है। गुरु एवं सभी उनके नाम के बारे में कहते हैं - ये बालक बिलकुल रूप रंग में राम जैसा श्याम वर्णी है ।
विश्व भरण पोषण कर जोई
ताकर नाम भरत अस होई ।
पहले गुरुदेव ने सबसे छोटे बालक चौथे शिशु का नाम रखा। तीसरे बालक का सबसे बाद में बतलाया।
जाके सिमरन से रिपु नाशा,
नाम शत्रुघ्न वेदप्रकाशा।
जो अंत : बाह्य शत्रुओं से अयोध्या को बचाएगा ,वेद आदि की रक्षा करेगा वह शत्रुघन है।जो सब प्रकार से रक्षा करेगा अयोध्या की।
सबसे अंत में गुरु ने तीसरे बालक का नाम बतलाया -लक्षमण वैराग्य है। संत ,सतगुरुओं का धन वैराग्य है स्त्री का धन उसकी शीलता है लज्जा है मर्यादा है शील संकोच मर्यादा ही है उसका धन। वैसे ही सन्यासी का धन वैराग्य है। जिसके पास वैराग्य नहीं है उसकी साधुता शिथिल हो जाती है।
ब्राह्मण का धन जैसे ज्ञान है सदगुरु के पास धन है वैराग्य। गुरु के पास धन था वैराग्य का इसीलिए उन्होंने लक्षमण का नाम अंत में रखा -पति -पत्नी के बीच में भी जो रहता है 24 x7 जो लक्ष्मी जी को भी प्रिय है नारायण को भी। जिसके बिना दोनों सो नहीं सकते -जो शेष शैया है नारायण की वह लक्षमण है।लक्षमण वैराग्य का प्रतीक हैं। एक पल वो लक्ष्मण के बिना नहीं रहते ,जो उनकी प्रिवेसी में दखल नहीं देता और लक्षमण भी जिनके बिना एक पल भी न रह सके वह लक्षण धाम लक्ष्मण हैं। वह लक्षमण है शेष नाग।
लक्षण धाम राम प्रिय,
सकल जगत आधार ,
गुरु वशिष्ठ कही राखा
लक्षमण नाम उदार।
उसीके माथे पे तो ये सारी धरती टिकी है।ये सारा ब्रह्माण्ड उसी के मस्तक पर तो टिका है। वही तो सारे जगत का आधार हैं।
mazza aa gaya sharma ji
जवाब देंहटाएंSriradhe
हटाएंOm namo narayan
हटाएंसत्संग से स्वभाव परिवर्तित होता ही है. जय श्री राम
जवाब देंहटाएंHmm I got the meaning of my name Bharat .....thank you sir
जवाब देंहटाएंआज के परिवेष में कई ब्राह्मण युवा भी सवाल कर देते हैं कि क्या भगवान भी होते हैं ,ये भारतवर्ष की दुर्दशा कैसे हुई,(होइहि सोई जो राम रचि राखा,कौ करि तर्क बढ़ावै साखा) जय सियाराम
जवाब देंहटाएंSatsang se man pavitra hota hai. Jai shree ram jai shree ram
जवाब देंहटाएंजय जय श्री राम
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