कान्ह-कान्ह जकरी। सुनत जोग लागत है ऐसौ, ज्यौं करुई ककरी। सु तौ ब्याधि हमकौ लै आए, देखी सुनी न करी। यह तौ ‘सूर’ तिनहिं लै सौंपौ, जिनके मन चकरी।
शब्दार्थ : हमारैं - हमारे, हरि श्रीकृष्ण, हारिल = हारिल एक पक्षी है जो अपने पैरों में सदैव एक लकड़ी लिए रहता है, उसे छोड़ता नहीं है, लकड़ी = लकड़ी, क्रम = कर्म, बचन = वचन, नंद-नंदन = नंद बाबा का पुत्र अर्थात श्रीकृष्ण, उर = हृदय, पकरी =पकड़ कर रखता है, जागत = जागते हुए, सोवत = सोते हुए, स्वप्न = सपना, दिवस = दिन, निसि-रात, कान्हा = श्रीकृष्ण, जक री-रटती रहती हैं, तो = वह, लागत = लगता, ऐसौ - ऐसा, करुई- कड़वी, व्याधि व्याधि, रोग, हमकौं हमारे लिए, लै - लेकर, न करी न अपनाई गई, तौ - तो, सूर = सूरदास, तिनहिं = उनको, सौंप = सौंप दो, मन चकरी जिनका मन स्थिर नहीं हो, जो समर्पित नहीं हो।
सूरदास के पद का भावार्थ/हिंदी मीनिंग : गोपियाँ श्री कृष्ण जी से कह रही हैं की हमारे मन में कृष्ण के प्रति अनन्य और अटूट प्रेम है जो तुम्हारे योग के सन्देश से कम नहीं होगा अपितु अधिक बढ़ जाएगा. जैसे हारिल (एक पक्षी) अपने पंजों में विशेष प्रकार की लकड़ी को पकड़े रहता है वैसे ही हम ने अपने हृदय में श्री कृष्ण को मन वचन और क्रिया से पकड़ रखा है. रात दिन सोते -जागते हम ने कृष्ण जी को ही पकड़ रखा है.हमें कृष्ण का ही स्मरण रहता है। यही कारण है की तुम्हारा यह योग का सन्देश हम को कड़वी ककड़ी के समान लगता है. तुम जो ये ब्याधि (विकार) लाए हो इसका हमारे ऊपर कोई असर नहीं होने वाला है. तुम तो यह सन्देश उनको सुनाओ जिनका मन पूर्ण रूप से श्री कृष्ण के प्रति समर्पित नहीं है. हम श्री कृष्ण के प्रेम में पूर्ण रूप से रंगी हुई हैं इसलिए तुम्हारी बातों का हम पर कोई असर नहीं होने वाला है.गोपी भाव में गोपियाँ कृष्ण ही हो गई हैं।
विशेष :गोपियाँ प्रेमपंथ की पथिक थीं और उद्धव नीरस योग के साधक और समर्थक। ब्रह्मज्ञान के अभिमानी ,वह प्रेमपगी गोपियों की विरह वेदना को समझ पाने में असमर्थ थे। अत: गोपियों ने हारिल पक्षी के उदाहरण से अपनी बात आरम्भ की। उन्होंने उद्धव से कहा कि उनके लिए श्रीकृष्ण’ हारिल की लकड़ी’ के समान हैं। जैसे हारिल पक्षी सदा वृक्ष की टहनी पंजे में दबाए रहता है, उसी प्रकार गोपियों के जीवन में कृष्ण समाए हुए हैं। उन्हें त्याग कर योग पथ को अपनाना उनके लिए किसी भी प्रकार सम्भव नहीं है।Read more on Sarthaks.com - https://www.sarthaks.com/765046/
हमारे हरि हारिल की लकरी || सूरदास के पद || व्याख्या व सरलार्थ || hamare hari haril ki lakri || हमारे हरि हारिल की लकरी...महाकवि सूरदासजी...(10वीं कक्षा) हमारे हरि हारिल की लकड़ी # hamare hari jatil ki lakadi# सूर के पद #कक्षा दसवीं #क्षितिज भाग 2 हमारैं हरि हारिल की लकरी। सूरदास का पद-3 / दसवीं कक्षा /क्षितिज भाग-2 / प्रस्तुति- अरुण कैहरबा
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