मुलमान तो पहले से ही इस देश के नागरिक हैं (विभाजन के समय इनकी आबादी ढाई करोड़ ही थी जो अब बढ़के जो २०१८ में बढ़कर बीस करोड़ दस लाख हो गई थी। ज़ाहिर है सभी यहां आराम से हैं )भारत धर्मी समाज (वृहद् सनातनधर्मी समाज ,हिन्दू , सिख ,ईसाई ,पारसी ,जैन ,बौद्ध आदिक )के आधार पर देश का बंटवारा नहीं हुआ था ,हिन्दू मुसलमान के आधार पर हुआ था। देश के बच्चे आज भी पूछते हैं तब हुआ क्या था। बतलाते चलें किसी को ज़बरिया तौर पर पाकिस्तान नहीं भेजा गया था। जो भारत धर्मी समाज के लोग आज़ादी से पहले के उस इलाके में थे जो आज पाकिस्तान कहलाता है उन्हें भी आश्वस्त किया गया था वह सताये जाने पर किसी भी तरह के ज़ुल्म का शिकार होने पर आइंदा भी भारत आ सकेंगे। आज संशोधित नागरिकता एक्ट के तहत नागरिकता देने का सवाल सिर्फ और सिर्फ उनसे ही जुड़ा है। अलबत्ता यदि कोई पाक -बांग्लादेश -अफगानिस्तान का मुसलमान कहता है मुझे भी यहां सताया जा रहा है और भारत में शरण माँगता है तो उसे किसने कब इंकार किया है। स्वागत है उसका भी। लेकिन शेष पचास मुस्लिम बहुल देशों के एक अरब नब्बे करोड़ लोगों से हिन्दुस्तान का क्या लेना देना है ?
आज भी मुसलमानों में भी बस चंद ही लोग तैमूरलंगी सोच के हैं जो देश की संपत्ति को कांग्रेस के भड़काने पर आग के हवाले कर रहें हैं। हर्ज़ाना तो इन्हें देना पड़ेगा। अगर इनके घर को कोई आग लगाए तो क्या ये चुपचाप बैठेंगे। यह देश सबका है जेहादियों की खालाजी का घर नहीं है।
भारत धर्मी समाज का मानना है अगर यह सरकार भी देश की संपत्ति को मुसलमानों में चंद और सिर्फ चंद जेहादी तत्वों से नहीं बचाएगी जो अपने को पहले मुसलमान बाद में कुछ और कहकर गौरवान्वित महसूस करते हैं ,तो कोई भी सरकार आइंदा यह न कर सकेगी। वक्त है देश की संपत्ति को संरक्षित करने का कायदा क़ानून अब सुनिश्चित किया जाए। भारत धर्मी समाज ये तमाशा और नहीं देख सकता। दोहराते चलें सिर्फ -साढ़े तीन करोड़ मुसलमान विभाजन के समय वर्तमान हिन्दुस्तान में थे।
नेहरू कांग्रेसी और मार्क्सवादी बौद्धिक गुलाम कम्युनिस्टों के ,चंद जिहादियों के बहकावे में आकर कुछ लोग देश की संपत्ति को जला रहे हैं। तो क्या यदि उनके मकान दूकान को जलाया जाए तो वह ये काम चुप करके होने देंगें ?वे अपने आवास और व्यवसाय की रक्षा के लिए अपनी जान तक कुर्बान कर देंगें। इसका अभिप्राय यह है के उनका मकान और व्यवसाय देश से भी बड़ा है। फिर वह किस नैतिक आधार पर देश की संपत्ति को जला रहे हैं।
इन्हें यह बहकाया गया है ,हिन्दू, ,बौद्ध, जैन और साथ में पारसी और ईसाई धर्मावलम्बियों के नाम तो नागरिकता संशोधन एक्ट में हैं पर मुसलमान का नाम क्यों नहीं। इस तरह का तर्क कुछ मुस्लिम बच्चे भी पत्रकारों से करते हैं। ऐसे पत्रकारों का भी यह फ़र्ज़ बनता है के वह उन्हें इतिहासिक स्थिति बतलाएं। सन उन्नीस सौ सैंतालीस से पहले पाकिस्तान नाम का कोई मुल्क नहीं था और न ही बांग्ला देश था। ये तो देश के अंग्रेज़ों द्वारा करवाए गए देश विभाजन का कुपरिणाम था के अखंड भारत का एक टुकड़ा पाकिस्तान नाम से अलग हो गया।और तब भी जिन्ना द्वारा उन्नीस सौ छियालीस में डायरेक्ट एक्शन के नाम से मुसलमानों द्वारा बंगाल के दो स्थानों पर हिन्दुओं का निर्ममता पूर्वक नरसंहार करवाया गया था।जिसके दवाब में आकर गांधीजी को छोड़कर नेहरू कांग्रेस के सभी बड़े लोगों ने विभाजन की स्वीकृति दे दी थी। जिन्ना का तर्क था के मुसलमान गैर -मुसलमानों के साथ भारत में नहीं रह सकते। इसलिए उस कौम को अलग देश दिया जाए। विभाजन की इस इतिहासिक घटना के समय भारत धर्मी समाज के सभी धर्म और सम्प्रदाय जिनमें हिन्दू सिख और बौद्ध ,जैन ये सभी लोग शामिल थे - हिन्दू नाम से ही जाने जाते थे। इसलिए यह बंटवारा 'हिन्दू बनाम मुसलमान' का हुआ था। ये तो विभाजन के बाद की बात है के विघटन वादी कांग्रेसियों ने बौद्ध जैनियों और सिखों को हिन्दुओं से अलग घोषित कर दिया। जाते -जाते ये विघटनवादी कांग्रेसी लिंगायतों को शैवों से भी अलग करने की घोषणा कर गए। ये भारत की तुष्टिवादी राजनीति का परिणाम है। जबकि संविधान में भी इन सबके लिए हिन्दू शब्द प्रयुक्त हुआ है। संविधान उल्लेखित उन लोगों के नाम देखकर ही भ्रम फैलाने की कोशिश क्यों की जा रही है। यह देश की पारम्परिक उदारता का परिणाम था ,जिस आधार पर मुसलमानों के लिए अलग देश बनाया गया था वे लोग इस देश के सर्वधर्मभाव की समानता के प्रसाद को पाकर इस देश में बड़े आराम से रहते है।इस देश के उतने ही नागरिक हैं जितने हिन्दू सिख ईसाई जैन पारसी या अन्य कोई और है।
आज भी मुसलमानों में भी बस चंद ही लोग तैमूरलंगी सोच के हैं जो देश की संपत्ति को कांग्रेस के भड़काने पर आग के हवाले कर रहें हैं। हर्ज़ाना तो इन्हें देना पड़ेगा। अगर इनके घर को कोई आग लगाए तो क्या ये चुपचाप बैठेंगे। यह देश सबका है जेहादियों की खालाजी का घर नहीं है।
भारत धर्मी समाज का मानना है अगर यह सरकार भी देश की संपत्ति को मुसलमानों में चंद और सिर्फ चंद जेहादी तत्वों से नहीं बचाएगी जो अपने को पहले मुसलमान बाद में कुछ और कहकर गौरवान्वित महसूस करते हैं ,तो कोई भी सरकार आइंदा यह न कर सकेगी। वक्त है देश की संपत्ति को संरक्षित करने का कायदा क़ानून अब सुनिश्चित किया जाए। भारत धर्मी समाज ये तमाशा और नहीं देख सकता। दोहराते चलें सिर्फ -साढ़े तीन करोड़ मुसलमान विभाजन के समय वर्तमान हिन्दुस्तान में थे।
नेहरू कांग्रेसी और मार्क्सवादी बौद्धिक गुलाम कम्युनिस्टों के ,चंद जिहादियों के बहकावे में आकर कुछ लोग देश की संपत्ति को जला रहे हैं। तो क्या यदि उनके मकान दूकान को जलाया जाए तो वह ये काम चुप करके होने देंगें ?वे अपने आवास और व्यवसाय की रक्षा के लिए अपनी जान तक कुर्बान कर देंगें। इसका अभिप्राय यह है के उनका मकान और व्यवसाय देश से भी बड़ा है। फिर वह किस नैतिक आधार पर देश की संपत्ति को जला रहे हैं।
इन्हें यह बहकाया गया है ,हिन्दू, ,बौद्ध, जैन और साथ में पारसी और ईसाई धर्मावलम्बियों के नाम तो नागरिकता संशोधन एक्ट में हैं पर मुसलमान का नाम क्यों नहीं। इस तरह का तर्क कुछ मुस्लिम बच्चे भी पत्रकारों से करते हैं। ऐसे पत्रकारों का भी यह फ़र्ज़ बनता है के वह उन्हें इतिहासिक स्थिति बतलाएं। सन उन्नीस सौ सैंतालीस से पहले पाकिस्तान नाम का कोई मुल्क नहीं था और न ही बांग्ला देश था। ये तो देश के अंग्रेज़ों द्वारा करवाए गए देश विभाजन का कुपरिणाम था के अखंड भारत का एक टुकड़ा पाकिस्तान नाम से अलग हो गया।और तब भी जिन्ना द्वारा उन्नीस सौ छियालीस में डायरेक्ट एक्शन के नाम से मुसलमानों द्वारा बंगाल के दो स्थानों पर हिन्दुओं का निर्ममता पूर्वक नरसंहार करवाया गया था।जिसके दवाब में आकर गांधीजी को छोड़कर नेहरू कांग्रेस के सभी बड़े लोगों ने विभाजन की स्वीकृति दे दी थी। जिन्ना का तर्क था के मुसलमान गैर -मुसलमानों के साथ भारत में नहीं रह सकते। इसलिए उस कौम को अलग देश दिया जाए। विभाजन की इस इतिहासिक घटना के समय भारत धर्मी समाज के सभी धर्म और सम्प्रदाय जिनमें हिन्दू सिख और बौद्ध ,जैन ये सभी लोग शामिल थे - हिन्दू नाम से ही जाने जाते थे। इसलिए यह बंटवारा 'हिन्दू बनाम मुसलमान' का हुआ था। ये तो विभाजन के बाद की बात है के विघटन वादी कांग्रेसियों ने बौद्ध जैनियों और सिखों को हिन्दुओं से अलग घोषित कर दिया। जाते -जाते ये विघटनवादी कांग्रेसी लिंगायतों को शैवों से भी अलग करने की घोषणा कर गए। ये भारत की तुष्टिवादी राजनीति का परिणाम है। जबकि संविधान में भी इन सबके लिए हिन्दू शब्द प्रयुक्त हुआ है। संविधान उल्लेखित उन लोगों के नाम देखकर ही भ्रम फैलाने की कोशिश क्यों की जा रही है। यह देश की पारम्परिक उदारता का परिणाम था ,जिस आधार पर मुसलमानों के लिए अलग देश बनाया गया था वे लोग इस देश के सर्वधर्मभाव की समानता के प्रसाद को पाकर इस देश में बड़े आराम से रहते है।इस देश के उतने ही नागरिक हैं जितने हिन्दू सिख ईसाई जैन पारसी या अन्य कोई और है।
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