मान्यवर संपादकीय ,"टल गए ज़रूरी सवाल "(२५ अगस्त अंक )के संदर्भ में निवेदित है :कांग्रेस "नौ दिन चले अढ़ाई कोस "से आगे निकल आज वहां पहुँच गई है जहां लाज़िम तौर पर कहा जा सकता है इस बुढऊ पार्टी के बारे में जो अल्ज़ाइमर्स ग्रस्त प्रतीत होती रही है :
कुछ लोग इस तरह ज़िंदगानी के सफर में हैं ,
दिन रात चल रहे हैं ,मगर घर के घर में हैं।
सोनिया की कहानी सोनिया पे ही खत्म होती है कांग्रेस खुद एक ब्लॉग बन के रह गई है जहां लेखक ,मालिक , प्रूफ रीडर ,हॉकर ,रीडर ,खरीदार ,प्रशंशक ,खुद कांग्रेस ही बन के रह गई है ।
समझ में न आने वाली बात ये है इसमें कपिल सिब्बल ,मनीषतिवारी ,अभिषेक मनुसिंघवी जैसे उकील क्या कर रहे हैं ,जबकि अब वह एक परिवार के उकील भी नहीं दिखलाई देते ?कौन सी सल्तनत छूट जाने का डर है।गुलामनबी आज़ाद का कोई क्या बिगाड़ लेगा ,जबकि वह न तो किसी के गुलाम हैं न पराधीन ,अल्लाह के गुलाम है किसी सोनिया फोनिया के नहीं ऊपर से मुसलमान भी हैं।
वीरेंद्र शर्मा ,८७० ,भूतल,सेक्टर -३१ ,फरीदाबाद -१२१ ००१
अपनी मर्जी से कहाँ अपने सफर के हम हैं। रुख़ हवाओं का जिधर का है उधर के हम हैं। (ग़ज़ल निदा फ़ाज़ली साहब )अंतरा -१ पहले हर चीज़ थी अपनी मगर अब लगता है, पहले हर चीज़ थी अपनी मगर अब लगता है,
अपने ही घर में किसी दूसरे घर के हम हैं ... अपने ही घर में किसी दूसरे घर के हम . हैं .. रुख़ हवाओं का जिधर का है उधर के हम हैं अपनी मर्जी से कहाँ अपने सफर के हम हैं। अंतरा -२ वक्त के साथ है मिट्टी का सफ़र सदियों से. वक्त के साथ है मिट्टी का सफ़र सदियों से. किसको मालूम कहाँ के हैं किधर के हम हैं .. किसको मालूम कहा के है किधर के हम हैं ... रुख़ हवाओं का जिधर का है उधर के हम हैं अपनी मर्जी से कहाँ अपने सफर के हम हैं। अंतरा (३ ) चलते रहते हैं कि चलना है मुसाफिर का नसीब। चलते रहते हैं कि चलना है मुसाफिर का नसीब।
सोचते रहते हैं किस रहगुज़र के हम है. सोचते रहते हैं किस रहगुज़र के हम है. रुख हवाओं का जिधर का है उधर के हम हैं ... अपनी मर्जी से कहाँ अपने सफर के हम हैं। अपनी मर्जी से कहाँ अपने सफर के हम हैं। सन्दर्भ -सामिग्री :
सारसंक्षेप -भावसार-मंतव्य :जिधर प्रारब्ध ले जाए व्यक्ति पहुँच जाता है उसके हाथ में खुद कुछ नहीं होता। (परम्परा गत चिंतन )
दो मेड़ों के बीच की लड़ाई है मेरा ही 'कल का पुरुषार्थ '(प्रयत्न )और 'आज का पुरुषार्थ।' जिसका प्राबल्य होगा बाज़ी उसी के हाथ लग जायेगी। यानी वर्तमान का प्रबल पुरुषार्थ कल के प्रारब्ध को बदल भी सकता है। जहां हम खड़े होते हैं वहीँ से हवा चलती है। (अखंड रामायण / वशिष्ठ रामायण )
(१ )वक्त के साथ चीज़ें बदल जातीं हैं रुख बदल जाते हैं आदमजात के। और हवा कभी भी एक सी नहीं चलती। वक्त भी कब किसका यकसां रहा है यहां सब कुछ तेज़ी से बदल रहा है। सात साल में तो आदमी की सारी चमड़ी बदल जाती है। सुनिश्चित अंतराल के बाद तमाम बॉडी सेल्स भी (कोशिकाएं ) . ये शरीर मेरा घर ही तो है जब यही बदल जाता है तो बाहर से तो सब कुछ बदलेगा ही मलाल कैसा ,किसका ?
(२ )अनंत कोटि जन्म हो चुकें हैं मेरे ,ये कौन सा जन्म है कोई क्या जाने।कौन से जन्म में हम कहाँ थे किसे मालूम है फिर इस जन्म में कहाँ से हम आये हैं कोई क्या जाने।
गीता में श्री कृष्ण अर्जुन से कहते हैं :अर्जुन तेरे और मेरे अनेक अवतरण (जन्म )हो चुके हैं मैं उन सबको ( अवतरणों को )जानता हूँ तुझे नहीं मालूम।
(३ ) ये ज़िंदगी खुद मुसाफिर खाना है, सफर तो आना -जाना है।
पुनरपि जन्ममं पुनरपि मरणंम ,
पुनरपि जननी जठरे , शयनमं।
नदिया चले चले रे धारा ,चंदा चले चले रे तारा।
तुझको चलना होगा ...
द्रव्य के कण ,प्रति - कण , में इलेक्ट्रॉन ,एंटी -इलेक्ट्रॉन अनंत काल से गतिवान हैं अनंत का तक ऐसा ही होता रहेगा। सृष्टि का कोई भी कण विराम अवस्था में नहीं है।
गीता में श्री कृष्ण अर्जुन से कहते हैं : हम चाहे तो भी बिना कर्म किये पलांश भी नहीं रहे सकते ,फिर चाहे वह हमारी ,जागृत ,स्वप्न ,सुसुप्ति अवस्थाएं हों या तुरीय अवस्था। अर्जुन तू क्षत्री है बिना कर्म किये नहीं रह सकता अत : उठ खड़ा हो शस्त्र उठा।
हॉस्पिटल बोर्न इंफेक्शन ,सर्दी जुकाम फ़्लु सीज़न के दरमियान जब पानी का स्पर्श चमड़ी को जब तब नहीं सुहाता ,सेने-टाइज़र से निभ जायेगी ,घर आकर आप गुनगुने साफ़ पानी से नहाने का साधारण साबुन लेकर भले मुख प्रक्षालन भी कर लें।इस नाज़ुक विषय पर हमारी यही टिपण्णी समझी जाए। विशेष :वर्तमान दौर इश्तेहार का मारा हुआ है ,विज्ञापन का लोकलुभावन संसार ,विज्ञापन सुदर्शनायें ,सुदर्शन कुमार जो न कराएं सो कम। ९० फीसद एल्कोहाल संयुक्त कहकर जो सेनीटाइज़र्स बाज़ार में उछाले जा रहे हैं उनमें मेथेनॉल मिलाया जाता है जो एक हानिकारक पदार्थ है बच्चों के सॉफ्ट टॉयज उन्हें पी जाते हैं अक्सर शिशुओं के हाथों को विसंक्रमित करने की जुगत में हम यूज़फुल बैक्टीरिया का भी सफाया कर देते हैं ,बैक्टीरिया नाशी ही है सेनेटाइज़र्स वाइरस का तो इससे बच्चा भी न मरे ,कोरोना अदृश्य दैत्य की तो बात ही क्या है ? सौजन्य :डॉ हरषिंदर कौर और चैनेल d5 संवाद। हरे कृष्णा !
How effective is hand sanitizer in preventing disease? The answer may surprise you.
If you've visited a drug store lately, you probably noticed the empty shelves where hand sanitizers normally sit.
With the coronavirus (COVID-19) outbreak, it's not surprising that many people are taking extra steps to stay safe, including stocking up on sanitizing sprays, gels and soaps. But are hand sanitizers the best defense against bacteria and viruses like coronavirus and influenza?
Companies that market these products (which are sometimes labeled "antibacterial" or "antimicrobial") say yes. But some consumer advocates say no, arguing that they aren't effective and have the potential to engender bacterial strains that resist antibiotics.
As it turns out, the best answer is to take a common-sense approach.
How useful are hand sanitizers?
They're useful in the hospital, to help prevent the transfer of viruses and bacteria from one patient to another by hospital personnel. Beyond a hospital setting, it's very difficult to show that hand sanitizing products are useful.
Outside of the hospital most people catch respiratory viruses from direct contact with people who already have them, and hand sanitizers won't do anything in those circumstances. And they haven't been shown to have more disinfecting power than just washing your hands with soap and water.
Convenient cleaning
The portable hand sanitizers do have a role during peak respiratory virus season [roughly November to April] because they make it much easier to clean your hands.
It's much more difficult when you sneeze to wash your hands than it is to use a hand sanitizer, especially when you are outdoors or in a car. The hand sanitizers are much more convenient, so they make it more likely that people will clean their hands, and that's better than not cleaning at all.
According to the Centers for Diseae Control (CDC), however, for hand sanitizer to be effective it must be used correctly. That means using the proper amount (read the label to see how much you should use), and rubbing it all over the surfaces of both hands until your hands are dry. Do not wipe your hands or wash them after applying.
Are all hand sanitizers created equal?
It's important to make sure any hand sanitizer you do use contains at least 60 percent alcohol.
Studies have found that sanitizers with lower concentrations or non-alcohol-based hand sanitizers are not as effective at killing germs as those with 60 to 95 percent alcohol.
In particular, non-alcohol-based sanitizers may not work equally well on different types of germs and could cause some germs to develop resistance to the sanitizer.
Are hand sanitizers and other antimicrobial products bad for you?
There is no proof that alcohol-based hand sanitizers and other antimicrobial products are harmful.
They could theoretically lead to antibacterial resistance. That's the reason most often used to argue against using hand sanitizers. But that hasn't been proven. In the hospital, there hasn't been any evidence of resistance to alcohol-based hand sanitizers.
However, while there aren't any studies showing that hand sanitizers definitely pose a threat, there also isn't any evidence that they do a better job of protecting you from harmful bacteria than soap.
So while hand sanitizers have their place — in hospitals or when you can't get to a sink — washing with soap and warm water is almost always a better choice.
When to avoid hand sanitizers
You should always clean with soap and water if your hands are visibly dirty, or if you've touched chemicals.
When hands are heavily soiled or greasy — such as after playing outdoor sports or working at a construction site — the CDC cautions that hand sanitizers may not work well at all.
Benefits of soap and water
Whenever you can, just wash your hands — for at least 20 seconds — with non-bacterial soap and warm water.
The CDC says soap and water are more effective than hand sanitizers at removing certain types of germs. They also do a better job of preserving the flora, or "good" bacteria, on your hands.
Your whole body is covered with bacteria, and if you remove those good bacteria, they can be replaced by other, potentially harmful, bacteria. Natural bacteria are there for a reason.
The best defense: cleanliness
What does your room look like? What does the bathroom look like? How about your phone? There's a good chance all of these things need to be cleaned. It's not necessary to use antimicrobial products: The important thing is to keep everything clean on a regular basis.
On the other hand, some people are concerned about hygiene to an extreme extent. We try to assure them that if they do the usual things like practicing good hygiene — rather than taking extraordinary measures — they'll be fine.
The portable hand sanitizers do have a role during peak respiratory virus season [roughly November to April] because they make it much easier to clean your hands.
Ned Herrmann is an educator who has developed models of brain activity and integrated them into teaching and management training. Before founding the Ned Herrmann Group in 1980, he headed management education at General Electric, where he developed many of his ideas. Here is his explanation.
It is well known that the brain is an electrochemical organ; researchers have speculated that a fully functioning brain can generate as much as 10 watts of electrical power. Other more conservative investigators calculate that if all 10 billion interconnected nerve cells discharged at one time that a single electrode placed on the human scalp would record something like five millionths to 50 millionths of a volt. If you had enough scalps hooked up you might be able to light a flashlight bulb.
Even though this electrical power is very limited, it does occur in very specific ways that are characteristic of the human brain. Electrical activity emanating from the brain is displayed in the form of brainwaves. There are four categories of these brainwaves, ranging from the most activity to the least activity. When the brain is aroused and actively engaged in mental activities, it generates beta waves. These beta waves are of relatively low amplitude, and are the fastest of the four different brainwaves. The frequency of beta waves ranges from 15 to 40 cycles a second. Beta waves are characteristics of a strongly engaged mind. A person in active conversation would be in beta. A debater would be in high beta. A person making a speech, or a teacher, or a talk show host would all be in beta when they are engaged in their work.
The next brainwave category in order of frequency is alpha. Where beta represented arousal, alpha represents non-arousal. Alpha brainwaves are slower, and higher in amplitude. Their frequency ranges from 9 to 14 cycles per second. A person who has completed a task and sits down to rest is often in an alpha state. A person who takes time out to reflect or meditate is usually in an alpha state. A person who takes a break from a conference and walks in the garden is often in an alpha state.
The next state, theta brainwaves, are typically of even greater amplitude and slower frequency. This frequency range is normally between 5 and 8 cycles a second. A person who has taken time off from a task and begins to daydream is often in a theta brainwave state. A person who is driving on a freeway, and discovers that they can't recall the last five miles, is often in a theta state--induced by the process of freeway driving. The repetitious nature of that form of driving compared to a country road would differentiate a theta state and a beta state in order to perform the driving task safely.
Individuals who do a lot of freeway driving often get good ideas during those periods when they are in theta. Individuals who run outdoors often are in the state of mental relaxation that is slower than alpha and when in theta, they are prone to a flow of ideas. This can also occur in the shower or tub or even while shaving or brushing your hair. It is a state where tasks become so automatic that you can mentally disengage from them. The ideation that can take place during the theta state is often free flow and occurs without censorship or guilt. It is typically a very positive mental state.
The final brainwave state is delta. Here the brainwaves are of the greatest amplitude and slowest frequency. They typically center around a range of 1.5 to 4 cycles per second. They never go down to zero because that would mean that you were brain dead. But, deep dreamless sleep would take you down to the lowest frequency. Typically, 2 to 3 cycles a second.
When we go to bed and read for a few minutes before attempting sleep, we are likely to be in low beta. When we put the book down, turn off the lights and close our eyes, our brainwaves will descend from beta, to alpha, to theta and finally, when we fall asleep, to delta.
मन के बाद 'न' जड़ दो तो हो गया 'मनन' (चिंतन ),मुसिंग्स ,यानी चिंतन के क्षण ,पर अगर मन के पहले 'न' आये तो 'नमन ',और अगर हिंदी वर्ण माला का पहला स्वर 'अ 'आये तो अमन हो जाता है। यहां अमन के कई अर्थ हैं प्रचलित अर्थ है पीस ,शान्ति ,सुख -चैन ,दूसरा 'अ -मन' यानी जब मन का लोप हो जाए मन 'अ -मन 'हो जाए। मन की 'डेल्टा' 'अवस्था इसके नज़दीकतर मानी जा सकती है। मन जैसा और जितना भी मेरी समझ में है वह इस भौतिक शरीर ह्यूमन एनाटोमी में तो है सूक्ष्म शरीर का संबंधी है , जबकि स्थूल शरीर का संबंध हमारे दिमाग से मस्तिष्क से है।
भाषागत प्रयोग में भले हम बोल देते हैं जो कुछ भी हमारे दिलोदिमाग में खदबदाता रहता है वही बाहर आता है। लेकिन दिल और दिमाग अलग अलग हिस्से हैं हमारे शरीर के। मन हमारी चेतना का 'अवेयरनेस' का सम्बन्धी है ,सूक्ष्म शरीर की एक शक्ति है। विचार सरणियाँ यहीं उठती रहती हैं २४ x७ x३६५ पहर। साठ हज़ार से ज्यादा विचार मन पैदा करता है रोज़ाना। इनमें से में एक भी विचार मैं नहीं हूँ तो भी उफनती नदी की उद्दाम वेगवती धारा उत्तेजना की स्थिति में मुझे बहा ले जाती है।
चेतन ,अवचेतन(नींद ) ,अचेतन (सुसुप्ति )और 'तुरीय' मन की ही प्रावस्थाएँ हैं जिनमें से चौथी मेरे रीअल सेल्फ ,रीअल आई Real Self /being के सम्भवतया बेहद करीब है। यही अवस्था दृष्टा है यही मन मस्तिष्क की अवस्था आलोकित करती है शेष तीनों अवस्थाओं को।मन हमारे अध्यात्म जगत से ताल्लुक रखता है। मस्तिष्क स्थूल शरीर का कण्ट्रोल रूम है नियामक है।
मस्तिष्क एक विद्युत - रासायनिक अवयव है जो बिजली बना लेता है अल्पांश में ही सही। यही विद्युत् स्पंदें संचार सेतु खड़ा कर लेती हैं संवाद का ,और इनकी बाढ़ एपिलेप्सी एपिसोड की वजह बन जाती है। उत्तेजना के क्षणों में मसलन प्रश्नोत्तरी ,क्विज संचालन ,कार्यक्रम संचालन ,टीवी टॉक कसर शोज़ आदिक के वक्त संचालक के दिमाग में १५ -४० हर्त्ज़ की तरंगें बनती हैं इनका एम्पलीट्यूड (आयाम )कम रहता है ,दूसरी और गहन योग की स्थिति में यही आवृत्ति घट के चार छ: हर्त्ज़ तथा प्रबल आयाम अधिकतम एम्पलीट्यूड लिए होतीं हैं। चित्त प्रशांत रहता है। यह मस्तिष्क की डेल्टा प्रावस्था है। योगीजन मन की इसी मौज़ में रहते हैं।ब्रह्माकुमारी आश्रम की दादी तथा वरिष्ठ दीदी योग की इसी प्रावस्था में अक्सर देखीं जा सकतीं हैं।
अल्फा तरंगें स्लो रहती हैं अधिक आयामीय रहतीं हैं दिमाग की गैर -उत्तेजित अवस्था की खबर देतीं हैं अल्फा तरंगें। आवृत्ति इनकी ९-१४ साइकिल प्रति सेकिंड होती है। यहां एक हर्त्ज़ का मतलब है एक साइकिल प्रतिसेकिंड से है ।
यह कार्य संपन्न कर लेने या टाइम आउट लेने वाली दिमागी प्रावस्था कहलाती है।
आयाम के बढ़ते हुए क्रम तथा फिक्युएंसी के घटते हुए अगले चरण की तरंगें थीटा नाम से जानी जाती हैं। पांच से लेकर आठ हर्त्ज़ तक की हो सकतीं हैं ये तरंगें।
टाइम ऑफ लेने के बाद दिवास्वप्न की प्रावस्था है यह मस्तिष्क की (मन -मस्तिष्क की भी कह देते हैं ),दिलो -दिमाग ,मनमस्तिष्क या ज़हन भाषा की अर्थच्छटाएँ भर हैं।
उजाले की तरह साफ़ है :हमारा दिमाग एक इलेक्ट्रोकेमिकल ऑर्गन है। एक टाइनी बिजलीघर एक टेलीफोन एक्सचेंज है। जबकि मन - चित्त -अहंकार ,mind ,memory ,impression and intellect आत्मा की चेतन शक्ति के मातहत हैं। जब व्यक्ति स्थूल शरीर ड्राप करता है यह सूक्ष्म शरीर साथ जाता है। ज़ाहिर है हमारा मन पौराणिक है अनादि काल से है ,तभी से है यह सूक्ष्म शरीर जबसे आत्मा है माया है भगवान् हैं ,परमात्मा हैं न कोई वरिष्ठ है न कनिष्ठ शाश्वत हैं यह तिकड़ी आत्मा परमात्मा और माया की।
परमात्मा सब आत्माओं का भी आत्मा है। माया परमात्मा की नौकरानी है। आत्मा शुद्ध रूप में परमात्मा का ही अंश हैं शरीर में आने के बाद मायाधीन हो जाता है जीव ,जीवात्मा।
It is a well known fact that humans dream in 90 minute cycles. When the delta brainwave frequencies increase into the frequency of theta brainwaves, active dreaming takes place and often becomes more experiential to the person. Typically, when this occurs there is rapid eye movement, which is characteristic of active dreaming. This is called REM, and is a well known phenomenon.
When an individual awakes from a deep sleep in preparation for getting up, their brainwave frequencies will increase through the different specific stages of brainwave activity. That is, they will increase from delta to theta and then to alpha and finally, when the alarm goes off, into beta. If that individual hits the snooze alarm button they will drop in frequency to a non-aroused state, or even into theta, or sometimes fall back to sleep in delta. During this awakening cycle it is possible for individuals to stay in the theta state for an extended period of say, five to 15 minutes--which would allow them to have a free flow of ideas about yesterday's events or to contemplate the activities of the forthcoming day. This time can be an extremely productive and can be a period of very meaningful and creative mental activity.
In summary, there are four brainwave states that range from the high amplitude, low frequency delta to the low amplitude, high frequency beta. These brainwave states range from deep dreamless sleep to high arousal. The same four brainwave states are common to the human species. Men, women and children of all ages experience the same characteristic brainwaves. They are consistent across cultures and country boundaries.
Research has shown that although one brainwave state may predominate at any given time, depending on the activity level of the individual, the remaining three brain states are present in the mix of brainwaves at all times. In other words, while somebody is an aroused state and exhibiting a beta brainwave pattern, there also exists in that person's brain a component of alpha, theta and delta, even though these may be present only at the trace level.
It has been my personal experience that knowledge of brainwave states enhances a person's ability to make use of the specialized characteristics of those states: these include being mentally productive across a wide range of activities, such as being intensely focused, relaxed, creative and in restful sleep.
या न भूय: अज : नित्य : शाश्वत अयं पुराण न। (श्रीमदभगवद्गीता २ . २ ० )
अयं -यह आत्मा ,कदाचित -किसी काल में , न -न , जायते -जन्मता है , म्रियते -मरता है , वा -अथवा ,न -न अयं -यह आत्मा , भूत्वा -हो करके , भूय : -फिर , भविता -होने वाला है ,(क्योंकि )अज: -अजन्मा , नित्य : नित्य (सदैव ) , शाश्वत - शाश्वत(निरंतर कायम रहने वाला ,स्थायी ) और , पुराण: -पुरातन है , शरीरे -शरीर के ,हन्यमाने -नाश होने पर भी , (यह )न हन्यते -नाश नहीं होता है।
विशेष :सरयू किनारे यही नियम है न की अपवाद ,राममंदिर निर्माण भूमि पूजन के बाद अयोध्या फैज़ाबाद जुड़वां शहर ने फिर आर्थिक तौर पर अंगड़ाई ली है। खुदा हाफ़िज़ सबका।
(३ )ज़र्रा ज़रा में खुदा का जहूर है ,
अल्लाह हो कुरआन में रामायण में राम।
(४ )साँच कहूं सुन लेओ सभइ ,
जिन प्रेम कियो , तिन ही प्रभ पायो। (गुरु गोविन्द सिंह )
(५ )रामहि केवल प्रेमु पियारा ,
जानै लेउ जो ,जाननि हारा।
(६) बोले लखन मधुर मृदु बानी ,
ज्ञान बिराग भगति रस सानी ,
काहु न कोउ सुख दुःख कर दाता ,
निज कृत करम भोग सबु भ्राता।
(७ )सोइ जानै जेहि देहु जनाई ,
जानत तुम्हहिं तुम्हइ होइ जाई।
(८ )कलियुग केवल हरिगुन गाहा ,
गावत नर पावहि थाहा।
(९ )कलियुग कीर्तन ही परधाना ,
गुरमुख जप ले ल्याए ध्याना।
(१० )मिलहिं न रघुपति बिन अनुरागा ,
किये जोग तप ज्ञान बिरागा।
(११ )बड़े भाग मानुस तनु पावा ,
सुर दुर्लभ सब ग्रंथहिं गावा।
साधन धाम मोच्छ कर द्वारा ,
पाई न जेहिं परलोक सिधारा।
( १२ )जनम मरन सब दुःख भोगा ,
हानि लाभ प्रिय मिलन बियोगा।
काल करम बस होहिं गोसाईं ,
बरबस रति दिवस की नाईं। .
(१३ )सुनहु भरत भावी प्रबल बिलखि कहेउ मुनि नाथ ,
हानि लाभु जीवन मरनु जसु अपजसु बिधि हाथ।
जद्यपि सम नहीं राग न रोषू ,
गहहि न पाप पूनु ,गुन दोषू।
(१४ )करम प्रधान बिस्व करि राखा,
जो जस करइ सो तस फलु चाखा।
दोनों प्रकार का दर्शन चिंतन रहा है पौरबत्य धारा में :प्रारब्ध ,नियतिवाद की भी चर्चा है मानस में -तो श्री अखंड रामयाण (वशिष्ट रामायण ) -पुरुषार्थ की बात करते हुए कहती है -दो जंगली बकरों की लड़ाई है कल का और आज का पुरुषार्थ। यदि आज का पुरुषार्थ (प्रयत्न ,एफर्ट )ताकतवर है तो वह अतीत के पुरुषार्थ को पटखनी देकर नया पुरुषार्थ भी गढ़ सकता है ,प्रारब्ध को बदल सकता है।
जयश्री कृष्णा जैश्री राम ,जय हिन्द की सेना प्रणाम !
हरे कृष्णा !प्रभुजी ,नारायणी जी।