What is Creation (जगत ,सृष्टि ,ब्रह्माण्ड ,कायनात )?
Creation ,Jagat is infinite .Hindus (सनातन धर्मी ,भारत धर्मी समाज )believe that this universe we live in has always existed and will always continue to exist . Unlike God ,who is subject to modification ,Nature (प्रकृति )is in a state of eternal and constant change .God is the cause for the existence of Prakriti (प्रकृति )just as He is the source of Atma's existence .Due to power of God alone ,Prakriti is undergoing a never -ending cycle of creation ,sustenance and dissolution .Creation ,when properly understood ,should be thought of as a projection of God Himself and not just his creation .
आदि गुरु शंकराचार्य ने कहा -ब्रह्म ही सत्य है जगत(प्रकृति ) मिथ्या है। यह जगत का मिथ्या होना साधारण अर्थों में नहीं है। जगत है दिखलाई देता है हमारा उसके साथ लेन देन है ट्रांजेक्शन है। वह व्यावहारिक सत्य है भले परम सत्य न सही क्योंकि निरंतर परिवर्तन शील है अस्थाई है। लेकिन वह है तो ,उसकी सत्ता से इंकार नहीं किया जा सकता।जो निरंतर बदले वही माया है मेरा आपका हम सबका यह शरीर, हमारी देह माया ही तो है आपका रिफ्लेक्शन आपकी छवि आपकी काया निरंतर बदलती है आपकी देह का होना एक अवधि है मात्र ६० -७० बरस। लेकिन आपका निजस्वरूप आत्मन (आत्मा )सनातन है।
यही माया है जो अभी है अभी नहीं है। लेकिन माया ब्रह्म की शक्ति है। त्रिमूर्ति उसका रिफ्लेक्शन है। रचयिता के रूप में ब्रह्मा ,पालक रूप में विष्णु और संहारक रूप में शिव (शंकर )कार्यरत रहते हैं। ब्रह्म ही त्रिमूर्ति का मूर्त रूप है प्राकट्य है। सगुण रूप है। मनिफेस्टेशन है।
शक्ति (feminine energy )ब्रह्मा का आधा अंश है,लक्ष्मी -सरस्वती -पार्वती रूपों में।
माया या प्रकृति ब्रह्म की शक्ति है। माया में प्रतिबिंबित ब्रह्म को ही ईश्वर कहा गया है त्रिदेव इसी माया में प्रतिबिंबित होता है।इसे ही बाइबिल में The Father ,The Son ,The Holy spirit कहा गया है। अल्लाह भी यही है वाहगुरु भी यही निर्गुण निराकार निर्विशेष ब्रह्म है।
पूरी कायनात में इसकी व्याप्ति है। कायनात इसका सगुण रूप है।
सगुण मीठो खांड सो ,निर्गुण कड़वो नीम ,
जाको गुरु जो परस दे ताहि प्रेम सो जीम
---------- महाकवि संत पीपा
आप कहते हैं फलां मर गया ,शरीर छोड़ गया। मरता तो शरीर भी नहीं है -स्थूल पांच तत्वों से बनी देह ही सूक्ष्म तत्व रूप में तब्दील भर हो जाती है। स्थूल देह रूप पांच तत्वों का यह विखंडन बार -बार होता रहता है। आकाश महाआकाश में ,वायु ,वायु में अग्नि ,अग्नि में जल ,जल में पृथ्वी अंश हमारी काया का पृथ्वी में मिल जाता है सुपुर्दे ख़ाक हो जाता है। अग्नि में विसर्जित हो जाता है।वायु की नमी के हवाले हो जाता है जल तत्व। थोड़ी सी आद्रता (नमी )बढ़ जाती है।
Creation ,Jagat is infinite .Hindus (सनातन धर्मी ,भारत धर्मी समाज )believe that this universe we live in has always existed and will always continue to exist . Unlike God ,who is subject to modification ,Nature (प्रकृति )is in a state of eternal and constant change .God is the cause for the existence of Prakriti (प्रकृति )just as He is the source of Atma's existence .Due to power of God alone ,Prakriti is undergoing a never -ending cycle of creation ,sustenance and dissolution .Creation ,when properly understood ,should be thought of as a projection of God Himself and not just his creation .
आदि गुरु शंकराचार्य ने कहा -ब्रह्म ही सत्य है जगत(प्रकृति ) मिथ्या है। यह जगत का मिथ्या होना साधारण अर्थों में नहीं है। जगत है दिखलाई देता है हमारा उसके साथ लेन देन है ट्रांजेक्शन है। वह व्यावहारिक सत्य है भले परम सत्य न सही क्योंकि निरंतर परिवर्तन शील है अस्थाई है। लेकिन वह है तो ,उसकी सत्ता से इंकार नहीं किया जा सकता।जो निरंतर बदले वही माया है मेरा आपका हम सबका यह शरीर, हमारी देह माया ही तो है आपका रिफ्लेक्शन आपकी छवि आपकी काया निरंतर बदलती है आपकी देह का होना एक अवधि है मात्र ६० -७० बरस। लेकिन आपका निजस्वरूप आत्मन (आत्मा )सनातन है।
यही माया है जो अभी है अभी नहीं है। लेकिन माया ब्रह्म की शक्ति है। त्रिमूर्ति उसका रिफ्लेक्शन है। रचयिता के रूप में ब्रह्मा ,पालक रूप में विष्णु और संहारक रूप में शिव (शंकर )कार्यरत रहते हैं। ब्रह्म ही त्रिमूर्ति का मूर्त रूप है प्राकट्य है। सगुण रूप है। मनिफेस्टेशन है।
शक्ति (feminine energy )ब्रह्मा का आधा अंश है,लक्ष्मी -सरस्वती -पार्वती रूपों में।
माया या प्रकृति ब्रह्म की शक्ति है। माया में प्रतिबिंबित ब्रह्म को ही ईश्वर कहा गया है त्रिदेव इसी माया में प्रतिबिंबित होता है।इसे ही बाइबिल में The Father ,The Son ,The Holy spirit कहा गया है। अल्लाह भी यही है वाहगुरु भी यही निर्गुण निराकार निर्विशेष ब्रह्म है।
पूरी कायनात में इसकी व्याप्ति है। कायनात इसका सगुण रूप है।
सगुण मीठो खांड सो ,निर्गुण कड़वो नीम ,
जाको गुरु जो परस दे ताहि प्रेम सो जीम
---------- महाकवि संत पीपा
आप कहते हैं फलां मर गया ,शरीर छोड़ गया। मरता तो शरीर भी नहीं है -स्थूल पांच तत्वों से बनी देह ही सूक्ष्म तत्व रूप में तब्दील भर हो जाती है। स्थूल देह रूप पांच तत्वों का यह विखंडन बार -बार होता रहता है। आकाश महाआकाश में ,वायु ,वायु में अग्नि ,अग्नि में जल ,जल में पृथ्वी अंश हमारी काया का पृथ्वी में मिल जाता है सुपुर्दे ख़ाक हो जाता है। अग्नि में विसर्जित हो जाता है।वायु की नमी के हवाले हो जाता है जल तत्व। थोड़ी सी आद्रता (नमी )बढ़ जाती है।
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